सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ का अंतिम रूप से फैसला आने तक केंद्र को एससी /एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण की मौखिक अनुमति दी

LiveLaw News Network

5 Jun 2018 2:58 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ का अंतिम रूप से फैसला आने तक केंद्र  को एससी /एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण की मौखिक अनुमति दी

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र  सरकार को संविधान पीठ का फैसला आने तक एससी /एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में क़ानून के अनुरूप आरक्षण देने की मौखिक अनुमति दे दी।

    न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अवकाशकालीन पीठ ने केंद्र सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई के दौरान यह अनुमति दी।  यह याचिका 13 अगस्त 1997 को जारी डीओपीटी के एक ऑफिस मेमोरेंडम पर दिल्ली हाईकोर्ट की अगस्त 2017 में रोक के खिलाफ दायर की गयी। इस मेमोरेंडम में पदोन्नति में आरक्षण को अनिश्चितकाल तक के लिए जारी रखने की बात कही गई थी।  दिल्ली हाईकोर्ट ने एम नागराज (2006) मामले में सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले के आलोक में इस मेमोरेंडम को निरस्त किया।

    एएसजी मनिंदर सिंह के यह कहने पर कि  14 हजार रिक्तियां हैं, इस मामले को शीघ्र सुनवाई के लिए सूचीबद्ध  किया गया।

    मंगलवार को एएसजी मनिंदर सिंह ने कहा, “दो आदेश हैं - पहला, संविधान पीठ का (महाराष्ट्र  राज्य बनाम विजय घोगरे, नवम्बर 15, 2017) और दूसरा, दो जजों की पीठ का फैसला जो 17 मई को (जरनैल सिंह बनाम लछमी नारायण गुप्ता मामले में ) दिया गया। जैसा की यथास्थिति पहले थी, मैं प्रार्थना करता हूँ कि  यही स्थिति बना रहे ताकि प्रोन्नति नहीं देने की जो स्थिति बना दी गई है उसको ठीक किया जा सके…”

    17  मई को न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनागौदार की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा ओएम के एक ऐसे ही आदेश को निरस्त करने के खिलाफ एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि “इस विशेष अनुमति याचिका का  लंबित होना केंद्र सरकार द्वारा ‘आरक्षित से आरक्षित’ और ‘अनारक्षित से अनारक्षित’ और योग्यता के आधार पर प्रोन्नति देने के रास्ते में आड़े नहीं आएगा।”

    न्यायमूर्ति भूषण  ने कहा, “यह अंतरिम आदेश फैसले पर स्थगन नहीं है।”

    इस पर वरिष्ठ वकील शान्ति भूषण  ने 14 नवम्बर 2017 को एक अन्य खंडपीठ द्वारा  त्रिपुरा राज्य बनाम जयंत चक्रवर्ती  मामले में दिए गए फैसल का उदाहरण दिया और इंदिरा सावनी (1992), ईवी चिनैया (2005) और एम नागराज मामलों में अनुच्छेद 16  के खंड 4, 4A और 4B की व्याख्या की और ध्यान दिलाया और इस मामले में दिए गए फैसले को उद्धृत किया, “... यद्यपि वकील ने अंतरिम राहत देने की मांग की है, हमारा मानना है कि इस स्थिति पर भी संविधान पीठ को गौर करना है। सभी पक्ष मुख्य न्यायाधीश के समक्ष मामले के अर्जेन्ट होने की बात कहने को स्वतंत्र हैं।”
    इस बात का उल्लेख मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ द्वारा दिए गए आदेश में भी किया गया।

    एएसजी ने कहा, “... मैं तो क़ानून के अनुरूप प्रोन्नति चाहता हूँ।”

    “अगर आप कह रहे हैं की यही क़ानून है तो इसका पालन कीजिये… आपको यह बताने की जरूरत नहीं थी,” ऐसा कहना था न्यायमूर्ति गोयल का।

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