अपील दायर करने में होने वाली देरी को दूर करने के लिए अमिकस क्यूरी के सुझावों को सुप्रीम कोर्ट की सैद्धांतिक मंजूरी [रिपोर्ट पढ़ें]

LiveLaw News Network

27 April 2018 3:21 PM GMT

  • अपील दायर करने में होने वाली देरी को दूर करने के लिए अमिकस क्यूरी के सुझावों को सुप्रीम कोर्ट की सैद्धांतिक मंजूरी [रिपोर्ट पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अमिकस क्यूरी और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) की विभा दत्ता मखीजिया के सुझावों को सिद्धांततः मान लिया। ये सुझाव सजायाफ्ता लोगों द्वारा दायर की जाने वाली अपील में होने वाली देरी से निपटने के बारे में है।

    कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस रिपोर्ट को इससे जुड़े लोगों और संस्थाओं के सुझावों/प्रतिक्रियाओं को जानने के लिए वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया जा चुका है। कोर्ट ने डिजिटल समाधान के लिए एक कमिटी बनाने का सुझाव भी दिया है।

    बलात्कार की पीड़ित एक महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक रिपोर्ट तैयार किये जाने का निर्देश दिया था. दो साल की देरी के बाद सुप्रीम कोर्ट की विधिक सहायता समिति के माध्यम से यह याचिका दायर करने की बात सामने आने पर यह निर्देश दिया गया था। इस बात पर गौर करते हुए कि इस तरह की देरी अमूमन होती है, कोर्ट ने एक ऐसी व्यवस्था बनाने पर विचार किया ताकि इस देरी को ख़त्म किया जा सके जो कि आरोपी को उसके अधिकारों के बारे में बताया जा सके। जो रिपोर्ट सौंपी गई है उसके दो हिस्से हैं, और इस मामले पर जुलाई के तीसरे सप्ताह में आगे किसी कार्रवाई की बात कही गई है।

    रिपोर्ट के पहले हिस्से में अपील को समय पर दायर करने की प्रक्रिया के बारे में कदम-दर-कदम जिक्र है। इसमें इससे जुड़े सभी लोगों की भूमिका और उनको पेश आने वाली मुश्किलों का ब्योरा है।

    इसके दूसरे हिस्से में मामले के स्थाई डिजिटल समाधान के लिए उठाए जाने वाले कदमों का जिक्र है। कहा गया है कि इसके तहत वांछित परिणाम प्राप्त करने में अभी और वक्त लगेगा और इस पर काम चल रहा है।

    रिपोर्ट में उस प्रमाणपत्र का नमूना भी दिया गया है जिसमें सुनवाई अदालत और अपीली अदालत सुधार कर सकते हैं।

    भाग -1

    इस हिस्से में अपील दायर करने में होने वाली देरी के कारणों का जिक्र है। जिन कारणों को गिनाया गया है उनमें जेल प्राधिकरण का आरोपी को यह नहीं बता पाना है कि उनको कौन सी मुफ्त कानूनी सेवाएं उपलब्ध हैं। सुनवाई अदालत का इन लोगों को यह नहीं बता पाना कि एक आरोपी के रूप में उनके कौन कौन से अधिकार हैं और यह कि अपील पर कोई खर्च नहीं आएगा। इन लोगों को सुनवाई अदालत के रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होते।

    कमिटी के सुझाव मोटे तौर पर निम्न हैं -

    सुनवाई अदालत में सत्र और मजिस्ट्रेटी अदालत दोनों शामिल हैं




    • सजायाफ्ता को फैसले/सजा/रिकॉर्ड की कॉपी देना

    • उनको अपील के अधिकार के बारे में बताना

    • सुनवाई अदालत के रिकॉर्ड का डिजीटाईजेशन सुनिश्चित किया जाना

    • सत्र अदालत द्वारा सभी सजायाफ्ता लोगों का रिकॉर्ड रखना


    जिला विधिक सेवा प्राधिकरण




    • वकीलों का पैनल सुनवाई के बारे में सभी फाइल रखेगा

    •  सुनवाई अदालत की सम्पूर्ण फाइल सजायाफ्ता व्यक्ति को दिया जाए।

    • डीएलएसए सभी रिकॉर्ड रखेगा

    •  हर सजा के बारे में आंकड़े जेल का दौरा करने वाले वकीलों को उपलब्ध होगा

    • डीएलएसए  के सचिव जेल का नियमित दौरा करेंगे


    हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति




    • एचसीएलएससी के वकील सजायाफ्ता व्यक्ति से बात करेंगे

    • एचसीएलएससी के वकील और जेल प्राधिकरण के बीच सहयोग

    • सुनवाई अदालत के रिकॉर्ड को देशी भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद

    • अपील की ड्राफ्टिंग और अपील दाखिल करना


    सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति




    •  सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति दो विधिक सहायक की सेवा लेंगे जो कि 36 एसएलएसए के विधिक सहायकों से सहयोग करेंगे ताकि सुप्रीम कोर्ट में अपील समय पर दायर की जा सके।


    जेल प्राधिकरण




    •    सजा पाए व्यक्ति को अपील के अधिकार के बारे में बताएगा

    •     सजा पाए व्यक्ति का जेल नहीं बदलेगा

    •   कानूनी मदद दिलाने के लिए सजा पाए व्यक्ति को ले जाना

    • जेल अधीक्षक अतरिक्त कदम उठाएंगे


    रिपोर्ट के अनुसार, केस इनफार्मेशन सिस्टम (सीआईएस) एक केस रेफेरेंस नंबर (सीआरएन) नंबर चार्ज शीट दायर होने के बाद देगा। इस स्तर के बाद ही आपराधिक मामले की पहचान हो पाएगी। यह कहा गया है कि सभी जेलों में बंद 68% विचाराधीन कैदी हैं जिनके खिलाफ चार्ज शीट भी दाखिल नहीं हुए हैं।

    नालसा ने एनआईसी को एक सॉफ्टवेर तैयार करने को कहा है जिस पर जेल का दौड़ा करने वाले एडवोकेट अपनी जानकारी अपलोड कर सकें। ऐसा होने से जेल से आपराधिक न्यायालय को डिजिटल आवेदन भेजा जा सकेगा। सिर्फ हलफनामा और वकालतनामा की ही हार्ड कॉपी भेजी जाएगी। नालसा को इससे जुड़े अन्य लोगों के साथ “स्थाई डिजिटल समाधान” का मुख्य केंद्र बनाने का प्रस्ताव है।


     



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