केरल हाई कोर्ट ने सरकार से कहा, देवास्वोम बोर्ड में नामांकन की प्रक्रिया और चुनाव को खुला और पारदर्शी बनाएं [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

5 April 2018 3:16 PM GMT

  • केरल हाई कोर्ट ने सरकार से कहा, देवास्वोम बोर्ड में नामांकन की प्रक्रिया और चुनाव को खुला और पारदर्शी बनाएं [निर्णय पढ़ें]

    अब समय गया है कि कार्यपालिका और विधायिका एक ऐसी व्यवस्था बनाएं ताकि बोर्ड के सदस्यों के चुनाव और उनके नामांकन की प्रक्रिया को खुला और पारदर्शी बनाया जा सके।

    केरल हाई कोर्ट ने हाल में अपने एक फैसले में कहा कि देवास्वोम बोर्ड के सदस्यों के नामांकन और चुनाव को खुला उअर पारदर्शी बनाने की जरूरत है।

    sabar की पीठ ने सरकार से कहा कि वह ऐसे नियम बनाए ताकि आम लोग भी बोर्ड में सदस्य के रूप में चुनकर आ सकें या फिर प्रमुख लोगों के नाम सुझा सके जिन्हें बोर्ड में स्थान दिया जा सके जिनको एक निर्धारित लोगों के नामांकन का समर्थन प्राप्त हो।

    टीजी मोहन दास की याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ ने उक्त विचार व्यक्त किए। याचिका में ट्रावनकोर-कोचीन हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम, 1950 की धारा 4(1) और 63 को चुनौती दी गई थी।

    यद्यपि कोर्ट ने इस याचिका की मुख्य मांग को पलट दिया, पर उसने वरिष्ठ वकील मोहन परासरन की कुछ प्रमुख दलील के बारे में कुछ बातें कही जिन्होंने याचिकाकर्ता के पैरवी की। परासरन ने कहा कि टीडीबी और सीडीबी दोनों ही संस्थाओं में नामांकन और चुनाव की प्रक्रिया रहस्य के घेरे में है और जनता को इसकी भनक तक नहीं लगती है और वे इसकी छानबीन तक नहीं कर सकते। वरिष्ठ वकील ने कहा कि उम्मीदवारों का चुनाव किसी उपयुक्त प्रक्रिया द्वारा नहीं होती बल्कि इनका चुनाव मंत्रियों और विधायकों द्वारा गुप्त आधारों पर होता है।

    इस दलील के बाद पीठ ने कहा, “...मंत्रियों और विधायकों द्वारा उम्मीदवारों को चुनने से पक्षपात और भाईभतीजावाद, संरक्षणवाद और कुनबा-परस्ती का अंदेशा पैदा होता है”।

    पीठ ने कहा कि अधिनियम मंत्रियों द्वारा नामांकित होने के लिए उम्मीदवारों के चयन के तरीकों के बारे में कुछ नहीं कहता। अधिनयम सिर्फ इतना ही कहता है कि विधायक योग्य व्यक्ति को नामित कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा, “निस्संदेह, विधायक और मंत्री अपनी पसंद के व्यक्ति को नामित कर सकते हैं जबकि अगर कोई आम व्यक्ति इस बोर्ड के माध्यम से भगवान की सेवा करना चाहता है तो उसको इस तरह का मौक़ा नहीं मिल सकता...”

    न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने कहा : “इस मामले में पारदर्शिता और खुलापन समय की मांग है और हमें विश्वास है कि कोई भी सरकार जो कि लोकतंत्र की गरिमा में विश्वास करता है वह इस कार्य के लिए बिना किसी हिचक के अपनी बुद्धि का प्रयोग करेगा। हम इस आशा के साथ इस याचिका को बंद करते हैं”।


     
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