मरने के पहले दिए गए बयान को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि इसे बयान देने वाले को पढ़कर सुनाया नहीं जा सका :बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

30 March 2018 5:11 AM GMT

  • मरने के पहले दिए गए बयान को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि इसे बयान देने वाले को पढ़कर सुनाया नहीं जा सका :बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने कहा है कि किसी व्यक्ति के मरने से पहले दिए गए बयान को इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि यह बयान उस व्यक्ति को पढ़कर सुनाया नहीं जा सका।

    न्यायमूर्ति आरके देशपांडे, एसबी शुक्रे और एमजी गिरात्कर की नागपुर पीठ ने भी वही राय व्यक्त की जो हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने जिसने एक बड़ी पीठ को इस प्रश्न का निर्णय करने को दिया था कि क्या किसी व्यक्ति के मरने से पहले के उसके बयान को इस आधार पर रद्द किया जा सकता है कि इस बयान को उस व्यक्ति को पढ़कर सुनाया नहीं जा सका जबकि घोषणा करने वाला यह कह रहा है कि इसको ठीक ठीक रिकॉर्ड किया गया था।

     पृष्ठभूमि

    शिवाजी पुत्र तुकाराम पतदुखे बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में पीवी हरदास की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा रिकॉर्ड किए गए मरने से पहले बयान को रद्द कर दिया था। जिसके आधार पर सत्र न्यायाधीश ने उसकी सजा रिकॉर्ड की थी। पर कोर्ट ने उस व्यक्ति को दोषमुक्त कर दिया और अभियुक्त को बरी कर दिया यह कहते हुए कि मरने से पहले दिया गया बयान मृतक को कभी पढ़कर नहीं सुनाया गया।

    इसी तरह के एक मामले में न्यायमूर्ति पीवी हरदास की अध्यक्षता वाली पीठ ने मरते हुए व्यक्ति के बयान को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी और इसके बिना कोर्ट इस पर कोई भरोसा नहीं कर सकता।

    न्यायमूर्ति एबी चौधरी और पीएन देशमुख की पीठ ने भी इसी तरह के मामले (गनपत बकारामजी लाड बनाम महाराष्ट्र राज्य) में उपरोक्त दो निर्णयों से अलग मत व्यक्त किया था।  खंडपीठ का मत था कि मरने वाले के पूरी तरह प्रमाणित और विश्वस्त बयान को पूर्ण रूप से सिर्फ इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता कि उसे मरने वाले व्यक्ति को पढ़कर सुनाया नहीं जा सका और उस व्यक्ति ने उसको सही घोषित नहीं किया।

    गनपत लाड और अन्य मामलों में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा :

    तो साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) और ही सुप्रीम कोर्ट का कोई निर्णय ही कोई फॉर्मेट के बारे में बताया है जिसके अनुरूप किसी व्यक्ति का मृत्युपूर्व बयान रिकॉर्ड किया जाए। यह मौखिक हो सकता है या फिर लिखित। जहाँ तक मौखिक बयान का सवाल है, तो इसका अस्तित्व या इसको मरने वाले व्यक्ति को सुनाने और विस्तार से इसे समझाने का मुद्दा नहीं उठता। अगर यह ऐसा है तो फिर लिखित बयान के बारे में इस पर जोर कैसे डाल सकते हैं?

    सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले में यह नहीं कहा गया है कि मरने वाले व्यक्ति के बयान में एक कॉलम ऐसा हो जिसमें यह लिखा जाए कि इस बयान को उस व्यक्ति को पढ़कर सुनाया गया है जिसने यह बयान दिया है और इसे सही और सत्य पाया गया है। हम इसलिए इस तरह की जरूरत को आवश्यक नहीं मानते और यह कि इसकी अनुपस्थिति में मरने वाले व्यक्ति का बयान अविश्वसनीय या अस्थिर हो जाएगा। इसलिए हम गणपत लाड मामले में व्यक्त किए गए कोर्ट के मत से सहमति जताते हैं।”


     
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