सुप्रीम कोर्ट ने कहा, न्यायिक पुनरीक्षण उसी स्थिति में संभव अगर फैसले के अनुचित, तर्कहीन, मनमाना, भेदभावपूर्ण या बदनीयत होने का अंदेशा है [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

28 March 2018 4:22 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा, न्यायिक पुनरीक्षण उसी स्थिति में संभव अगर फैसले के अनुचित, तर्कहीन, मनमाना, भेदभावपूर्ण या बदनीयत होने का अंदेशा है [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने म्युनिसिपल कारपोरेशन, उज्जैन बनाम बीवीजी इंडिया लिमिटेड मामले में इस बात को दोहराया है कि जब तक यह पता नहीं चलता कि निर्णय लेने की प्रक्रिया या प्रशासनिक अथॉरिटीज के निर्णय में बदनीयती, मनमानापन या किसी को लाभ पहुंचाने का अंदेशा है, संवैधानिक कोर्ट निर्णय लेने की प्रक्रिया या प्रशासनिक अथॉरिटीज के निर्णय में कोई दखलंदाजी नहीं करेगा विशेषकर अगर इसका संबंध किसी ठेके को स्वीकार करने और किसी को कोई कार्य सौंपने से है।

    न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति आर बनुमथी और न्यायमूर्ति मोहन एम शंतानागौदर की पीठ ने न्यायिक पुनरीक्षण के बारे में निम्न बातें कहीं –

    न्यायिक समीक्षा के तहत किसी निविदाकर्ता की तकनीकी योग्यता के बारे में किसी विशेषज्ञ के फैसले पर हाई कोर्ट सामान्यतः हस्तक्षेप नहीं कर सकता है;




    • जब कोई निविदाकर्ता यह कहते हुए निविदा भरता है कि ऐसा वह स्वतंत्र रूप से कर रहा है और उसके साथ कोई साझीदार, कंसोर्टियम या संयुक्त उपक्रम नहीं है तो वह किसी तीसरे पक्ष की तकनीकी योग्यता पर भरोसा नहीं कर सकता है।

    • यह कोर्ट का काम नहीं है कि वह एक अपीली अथॉरिटी के रूप में विभिन्न पक्षों की तकनीकी निविदा और वित्तीय निविदा का स्वतंत्र आकलन करे बशर्ते कि उसमें पक्षपात, पूर्वाग्रह, मनमानेपन, तर्कहीनता या विकृति का अंदेशा न हो औरजहां निर्णय केवल सार्वजनिक हित को देखते हुए लिया जाता है, अदालत को सामान्य तौर पर न्यायिक संयम बरतना चाहिए।


    इस तरह पीठ ने हाई कोर्ट के खिलाफ अपील की अनुमति दी जिसमें उज्जैन नगर निगम द्वारा घर घर जाकर ठोस कचरे का संग्रहण और उसको ले जाने का ठेका ग्लोबल वेस्ट मैनेजमेंट सेल प्राइवेट लिमिटेड को देने के फैसले को निरस्त कर दिया था।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि संबंधित प्राधिकरण यह जानने के लिए बेहतर स्थिति में होता है कि काम को कौन बेहतर और कम से कम पैसे में कर सकता है और यह देखते हुए काम का ठेका किसे दिया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का तकनीकी निविदा का आकलन करने के दौरान निविदाकर्ता को 73 कारण बताओ नोटिस जारी करना गलत था।

    पीठ ने आगे कहा कि अगर ठेका देना आम हित में है, कोर्ट अपने न्यायिक पुनरीक्षण का प्रयोग करते हुए इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा इसके बावजूद कि ठेका देने में किसी तरह की प्रक्रियागत गड़बड़ी की बात सामने आती है।


     
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