वृंदावन और मथुरा के मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से विधवा महिलाएं बनाएंगी इत्र और अगरबत्ती, सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों के फूल आश्रमों तक पहुंचाने के निर्देश दिए

LiveLaw News Network

28 March 2018 4:54 AM GMT

  • वृंदावन और मथुरा के मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से विधवा महिलाएं बनाएंगी इत्र और अगरबत्ती, सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों के फूल आश्रमों तक पहुंचाने के निर्देश दिए

    देशभर की विधवाओं के हालात पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया है कि मथुरा और वृन्दावन के मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले फूलों को वृंदावन के आश्रमों में रहने वाली  बेहसहारा और विधवा महिलाओं को भेजा जाए।

    इन फूलों से विधवा आश्रमों में इत्र, गुलाल, धूप और सुगन्धित जल बनाया जा सकेगा जिससे  बेहसहारा और विधवा महिलाओं को रोजगार मिलेगा। पीठ ने साफ किया कि ये फूल और मालाएं अब यमुना या कूड़ेदान में नहीं फेंके जाएंगे।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी व्यवस्था बनारस, तिरूपति जैसे नगरों में भी करने के प्रयास हों सभी राज्य अपने विधवा आश्रमों की संख्या, रहने वाली महिलाओं और उनके कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी की रिपोर्ट दाखिल करेंगे।

    मंगलवार को सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से पेश वकील ऐश्वर्या भाटी ने राज्य सरकार के महिला कल्याण विभाग की प्रमुख सचिव रेणुका कुमार के पत्र की ओर दिलाया। इसमें उन्होंने बताया था कि विधवा महिलाओं के लिए 1.67 करोड़ रुपये की लागत से इन उत्पादों के लिए उद्योग लगाए जाएंगे।कन्नौज के इत्र उद्योग विकास निगम और उत्तरप्रदेश महिला कल्याण निगम के साझा प्रयास के इस प्रोजेक्ट की निगरानी ज़िला अधिकारी करेंगे। विधवा महिलाओं को इसके लिए कन्नौज से  प्रशिक्षण भी दिलाया जा रहा है। लेकिन ये प्रोजेक्ट तभी सफल होगा जब मंदिरों से फूल इन आश्रमों तक पहुंचेंगे।

    इसके लिए अधिकारी ने स्थानीय प्राधिकरण और मंदिर प्रशासन को निर्देश जारी करने की गुहार लगाई थी।

    सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में उत्तरप्रदेश सरकार ने बताया कि कोर्ट को ये भी बताया गया कि एक विशेष नोडल एजेंसी बनाई गई है जिसके जरिए मंदिरों से फूल इकट्ठा कर इन आश्रमों तक लाए जाएंगे। यहाँ उनकी छंटाई के बाद उचित प्रोसेस होगा और तब इनको अलग अलग उत्पाद के लिए कारखानों में भेजा जाएगा। फिलहाल वृन्दावन में प्रदेश सरकार की ओर से चलाए जा रहे आश्रमों में 500 से अधिक विधवाएं रह रही हैं।सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद ये निर्देश जारी कर दिए।

    पिछली आठ फरवरी को देश भर में विधवाओं की बदतर हालत पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के उदासीन रवैये पर निराशा जताई थी। जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने ये भी कह दिया कि राज्य कोर्ट का वक्त बर्बाद कर रहे हैं। बेंच ने कहा कि 28 फरवरी तक सभी राज्य विस्तृत योजना दें और एक्सपर्ट कमेटी को अपने सुझाव भेजें। साथ ही एग्रीड एक्शन प्लान पर भी अपना हलफनामा दाखिल करें।

    बेंच ने कहा कि ये दुखद है कि एक पक्ष कहता है कि उसने दस्तावेज भेज दिए जबकि दूसरा कहता है कि ये दस्तावेज नहीं मिले। 21 वीं सदी में ईमेल जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

    दरअसल सात दिसंबर 2017 को देशभर की विधवाओं के हालात पर क्या कदम उठाए गए, इस पर जवाब ना देने पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 राज्यों व एक केंद्रशासित प्रदेश पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए दो-दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।

    इनमें उतराखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, मिजोरम, असम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, तमिलनाडू और अरूणाचल प्रदेश के अलावा केंद्रशासित दादर व नगर हवेली शामिल हैं।

    जस्टिस मदन बी लोकुर की बेंच ने विधवाओं के लिए उठाए गए कल्याणकारी कदम  पर केंद्र सरकार को रिपोर्ट ना देने पर ये जुर्माना लगाया था। जिन राज्यों ने आधी अधूरी रिपोर्ट दी, उन पर भी एक- एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया।

    गौरतलब है कि 11 अगस्त को 2017 उत्तर प्रदेश के वृंदावन और देश के दूसरे आश्रमों में रहने वाली विधवाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन विधवाओं के जीवन में रोशनी होनी चाहिए और उन्हें भी आत्मसम्मान से जीवन जीने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समाज की विधवाओं के पुनर्विवाह पर स्टीरियोटाइप सोच को बदलने की भी जरूरत है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो उन बेआवाज विधवाओं की आवाज बना है और ये आदेश जारी कर अपनी संवैधानिक डयूटी को निभा रहा है ताकि ये महिलाएं गरिमापूर्ण जीवन जी सकें। इसमें भी कोई संदेह नहीं या कुछ संदेह हो सकता है कि कई हिस्सों में विधवाएं सामाजिक रूप से वंचित हैं या पूरी तरह बहिस्कृत हैं। इसी उम्मीद में वो वृंदावन या दूसरे आश्रम आती हैं लेकिन वहां भी वो आत्मसम्मान नहीं मिलता जिसकी वो हकदार हैं।

    18 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि सामाजिक बंधनों की परवाह ना करते हुए  वो ऐसी विधवाओं के पुनर्वास से पहले पुनर्विवाह के बारे में योजना बनाए जिनकी उम्र  कम है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि पुनर्विवाह भी  विधवा कल्याकारी योजना का हिस्सा होना चाहिए।
    साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति में भी बदलाव करने की बात कही है। अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय नीति 2001 में बनी थी और इसे 16 वर्ष बीत चुके हैं लिहाजा इसमें बदलाव की जरूरत है।

     दरअसल देश में विधवा महिलाओं के कल्याण को लेकर  NGO इनवायरमेंट एंड कंज्यूमर प्रोटेक्शन फाउंडेशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इसमें अतुल सेठी की किताब " वाइट शेडो आफ वृंदावन " का हवाला भी दिया गया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वृंदावन में रहने वाली विधवा महिलाओं के रहने और मेडिकल आदि के लिए आदेश जारी किए थे और फिर मामले को सारे राज्यों से जोड दिया था।

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