जज लोया मामले की सुनवाई : सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकीलों के बीच एक बार फिर हुई गरमागरम बहस

LiveLaw News Network

6 March 2018 12:19 PM GMT

  • जज लोया मामले की सुनवाई : सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकीलों के बीच एक बार फिर हुई गरमागरम बहस

    जज लोया की मौत के बारे में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई शुरू हुई और वरिष्ठ एडवोकेट दुष्यंत दवे ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, डीवाई चंद्रचूड़ और एएम खानविलकर के समक्ष अपनी दलील पेश की।

    दवे ने कहा, “शशि थरूर के मामले में 23 फरवरी का एक आदेश (सुनंदा पुष्कर की मौत की जांच के मामले में दिल्ली पुलिस का पक्ष जानने को लेकर) है...केरल का भी एक मामला है जिसमें इस अदालत ने एनआईए जांच का आदेश दिया ...मैं उम्मीद करता हूँ कि इस मामले में भी कुछ ऐसा ही किया जाएगा”।

    दवे ने दलील दी, “तथ्यों को रिकॉर्ड पर अवश्य ही लाया जाए ताकि आरोपों की जाँच की जा सके...अगर कोई हलफनामा दायर नहीं किया गया है तो किसी को भी आप इसके लिए उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते...”।

    “बॉम्बे हाई कोर्ट के दो वर्तमान जज न्यायमूर्ति भूषण गवई और सुनील शुक्रे ने 27 नवंबर 2017 को इंडियन एक्सप्रेस को एक साक्षात्कार दिया और कहा कि जज लोया की मौत में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। इस मामले की गहन जांच रिपोर्ट जिसे कोर्ट में एक दिन बाद पेश किया गया और इसके अलावा चार जिला जजों के बयान जिसमें उन्होंने वही बातें कही हैं जो हाई कोर्ट के दोनों जज कह चुके हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि निचली अदालत के जज हाई कोर्ट जजों द्वारा कही गई बातों के उलट बात कहें?,” दवे ने पूछा।

    फिर, उन्होंने इस बीच बॉम्बे हाई कोर्ट के एकल जज द्वारा सोहराबुद्दीन हत्या मामले में अन्य आरोपियों को रिहा किए जाने के खिलाफ अपील की सुनवाई के दौरान पिछले दो सप्ताह के दौरान हुई घटनाओं के बारे में पीठ को बताया। उन्होंने कहा कि सीबीआई भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को बरी किए जाने के मामले में एक अपील के संदर्भ में मामले को अकारण स्थगित किए जाने की मांग कर रही है।

    दवे ने कहा, “विगत में भी प्रतिवादियों के रास्ते में आने वाले जज रहस्यमय परिस्थितियों से घिरे रहे हैं जैसे कि इशरत जहां मुठभेड़ मामले में न्यायमूर्ति पटेल को ही लें जबकि उनकी मर्जी के अनुरूप काम करने वाले जजों को पुरस्कृत किया गया है”।

    इस पर दवे और प्रतिवादियों के वकीलों के बीच बहस शुरू हो गई।

    एएसजी तुषार मेहता : “इस अदालत का एक अधिकारी होने के नाते किसी वर्तमान जज के खिलाफ इस तरह की बातों पर आपत्ति करना मेरा फर्ज है”।

    दवे : “इस अदालत के अधिकारी के रूप में नहीं, पिछले 15 सालों से अमित शाह के वकील के रूप में जो कि अब महाराष्ट्र सरकार की और से मुकुल रोहतगी और हरीश साल्वे की मदद कर रहे हैं”।

    दवे : “जांच रिपोर्ट पेश किए जाने से एक दिन पहले हाई कोर्ट के दो वर्तमान जजों ने इंडियन एक्सप्रेस को कैसे इंटरव्यू दिया?”

    साल्वे : “माननीय, इसकी अनुमति नहीं दी जाए। यह सुनवाई कहीं और जा रहा है”।

    दवे : “कृपया साल्वे को इस मामले में पेश होने की अनुमति नहीं दीजिये”।

    उस इंटरव्यू के बाबत बात को आगे बढाते हुए दवे ने कहा, “दो हाई कोर्ट जजों ने जो बातें कही हैं वही बातें चार जिला जजों ने भी दुहराई हैं...न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि उनको हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने फोन करके सूचना दी और उसके बाद वह न्यायमूर्ति शुक्रे के साथ मेडीट्रिना अस्पताल पहुंचे...रवि भवन एक वीआईपी गेस्टहाउस है ...बाहर पार्किंग में किसी सचिव या मंत्री की कार जरूर ही खड़ी रही होगी...कुछ पुलिस वाले भी वहाँ रहे होंगे ...तो जज बरदे को जज लोया को लेने के लिए अस्पताल आना पड़ा जबकि उनको वहाँ पहुँचने में 10-15 मिनट लगे होंगे ...रजिस्ट्रार जनरल तो उसी गेस्टहाउस में ठहरे हुए थे. जज बरदे की बजाय उनको क्यों नहीं बुलाया गया?”

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, “हम जो आरोप लगा रहे हैं उसके बारे में हमें सावधान रहना चाहिए. इंडियन एक्सप्रेस में साक्षात्कार 27 नवंबर 2017 को प्रकाशित हुआ जबकि न्यायमूर्ति मोदक और कुलकर्णी सहित चार जिला जजों के बयान इससे पहले ले लिए गए थे। जज बरदे के बयान 24 नवंबर 2017 का है”।

    दवे ने कहा, “माननीय मामले को कुछ ज्यादा ही सरल बता रहे हैं...यह संभव है कि हाई कोर्ट के दोनों जजों ने जिला जजों से पहले ही बात कर ली हो...क्या हाई कोर्ट के जजों को प्रेस से बात करने के लिए हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या देश के मुख्य न्यायाधीश से अनुमति लेने की जरूरत पड़ती है?”

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “हमारे हाई कोर्ट के जजों के बारे में इस तरह की अविश्वास भरी बातें नहीं कही जा सकतीं”।

    दवे ने कहा, “तो क्यों ये जज यह नहीं कह रहे हैं कि इसके बावजूद कि यह एक स्वाभाविक मौत थी, इसकी स्वतंत्र जांच होनी चाहिए? निश्चित रूप से, दो हाई कोर्ट जज, चारों जिला जज, राज्य सरकार और राज्य की खुफिया मशीनरी और ये वकील कुछ छिपा रहे हैं”।

    रोहतगी ने कहा, “आप वकीलों के बारे में इस तरह की बात न करें। हम सिर्फ अपनी दलील दे रहे हैं जो हमारा कर्तव्य है ...इन याचिकाओं का उद्देश्य न्यायपालिका को बचाना नहीं बल्कि एक व्यक्ति को निशाना बनाना है ...सुनवाई के कई सत्र पूरे हो चुके हैं...इन याचिकाओं को अब या तो खारिज कर देनी चाहिए या इस पर आगे की कार्रवाई हो”।

    दवे के यह कहने पर कि उन्होंने ऐसा कोई मामला नहीं देखा है जिसमें पूरी न्यायिक सेवा ने एक व्यक्ति के पक्ष में अपनी पूरी ताकत लगा दी है, न्यायमूर्ति खानविलकर ने उनको ऐसा दुबारा नहीं कहने की हिदायत दी।

    जब दवे ने बॉम्बे हाई कोर्ट में रोस्टर में बदलाव लाने की बात उठाई तो न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “अलग अलग हाई कोर्ट में रोस्टर की अवधि अलग है...जैसे बॉम्बे में यह 8 सप्ताह का है...इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उन्होंने यह व्यवस्था लागू की थी कि कोई भी ऐसा मामला जिसकी थोड़ी सुनवाई हुई है, रोस्टर में बदलाव के कारण प्रभावित न हो...ऐसे भी मामले हुए हैं जब जमानत की अर्जी की 2-3 माह से सुनवाई करनवाले जज ने मुख्य न्यायाधीश से उनको कोई और मामला देने का आग्रह किया ...कोई भी इस पर सवाल नहीं उठा सकता ...कृपया इस तरह के आरोप न लगाएं”।

    इस पर दवे ने कहा, “इसका मतलब यह है कि (जहाँ तक प्रतिवादियों की बात है) कई तरह के संयोग पैदा हो रहे हैं”।

    इसके बाद दवे ने रुबाबुद्दीन शेख बनाम गुजरात राज्य [(2010) 2 SCC 200] मामले का जिक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई जांच का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा, “...चार्ज शीट और आठ एटीआर रिपोर्ट से लगता है कि हत्या के उद्देश्य, जो कि जांच रिपोर्ट के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, की ठीक तरह से जांच नहीं की गई ...जांच अधिकारी सुश्री जोहरी का कोर्ट को बताए बिना तुलसीराम प्रजापति की मौत की जांच नहीं किए जाने का आज तक कोई कारण पता नहीं चला...यह सुनिश्चित करने के लिए कि न्याय न केवल किया जाता है बल्कि यह भी लगना चाहिए कि न्याय हो रहा है, राज्य के पुलिस अधिकारियों विशेषकर गुजरात के उच्च अधिकारियों के इसमें शामिल होने को देखते हुए, आज भी हम यही कह रहे हैं कि सीबीआई को इस मामले की जांच करनी चाहिए।”

    दवे ने कहा, “इससे पहले कि सुश्री (गीता) जोहरी, पुलिस महानिरीक्षक (अपराध) तुलसीराम प्रजापति (सोहराबुद्दीन हत्या काण्ड का मुख्य गवाह) से पूछताछ करती, उनको हटा दिया गया”।

    इसके बाद दवे ने सीबीआई बनाम अमित शाह मामले [(2012) 10 SCC 545], का जिक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन हत्या के मामले को गुजरात के बाहर महाराष्ट्र में ट्रांसफर कर दिया था।

    “क्या जज उत्पट का ट्रांस्फर करने से पहले प्रशासनिक समिति को सुप्रीम कोर्ट से नहीं पूछना चाहिए था? अगर कार्यपालिका ने इस तरह की कार्रवाई की होती तो उसकी आलोचना होती। संविधान के अनुच्छेद 141 और 144 के तहत हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बंधा होता है। कमिटी द्वारा ट्रांस्फर करने के निर्णय को पीठ के सामने रखना चाहिए भले ही यह हमें नहीं दिखाया जाए”, दवे ने कहा।

    मुख्य न्यायाधीश ने आश्वस्त करते हुए कहा, “अगर थोड़ा भी संदेह हुआ, हम जांच का आदेश देंगे”।

    इस पर दवे ने कहा, “आप संतुष्ट न हों, तो भी जांच का आदेश दीजिए। जज लोया और उनकी बहन की विडियो रिकॉर्डिंग है। और अब यह बयान पेश किया जा रहा है कि वे जांच नहीं चाहते। इन लोगों ने आरोप लगाए हैं कि बॉम्बे हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने जज लोया को घूस देने का प्रस्ताव दिया था...चलिए हम मानते हैं कि उनकी मौत ह्रदय गति रुक जाने से हुई...उन पर (अमित शाह को) बरी करने का दबाव था”।

    इसके बाद उन्होंने जज लोया के बटे अनुज लोया द्वारा अपने ही हाथों फरवरी 2015 में लिखे पत्र की चर्चा की : “आज न्यायमूर्ति मोहित शाह पिताजी की मौत के ढाई महीने बाद हमारे घर आए ...मैंने उनके चेहरे पर कोई पश्चाताप नहीं देखा ...उनको मैंने अपने पिता से जुड़ी सारी बातें बताई...मैंने उनसे पिताजी की मौत की जांच कराने का आगरा किया...जब मैंने उनसे प्रश्न पूछे तो उन्होंने मुझे कहा कि मेरे तथ्य गलत हैं...ये राजनीतिक लोग हमारे परिवार के किसी भी सदस्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं ...अगर मेरी माँ, मेरे दादाजी या मेरे परिवार के किसी भी व्यक्ति को यहाँ तक कि मेरे साथ भी कुछ हो जाता है, तो इसके लिए मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह जिम्मेदार होंगे”।

    इसके बाद दवे ने जज लोया के पिता और उनकी बहन के साथ पत्रकार निरंजन टाकले के साक्षात्कार का अंश सुनाया।

    इस इंटरव्यू में जज लोया के बहन अनुराधा बियानी के बयान को उद्धृत करते हुए दवे ने पढ़ा : मेरे भाई को देर रात बुलाकर कहा गया कि वह 30 दिसंबर 2014 तक (बरी करने का) फैसला सुना दें ...उनको 100 करोड़ रुपए का घूस देने का प्रस्ताव दिया गया...”

    सुश्री बियानी जो कि खुद एक डॉक्टर हैं, के बयान को आगे पढ़ा : “उनके गर्दन पर खून के धब्बे थे ...उनका चश्मा टेढा था...उनके बेल्ट का बकल गलत दिशा में था ...उनका जबड़ा टेढा था ...ऐसा उनको ऑक्सीजन देने के समय नहीं हो सकता जैसा कि हमें बताया गया था ...यहाँ तक कि उनका मोबाइल फ़ोन भी 3-4- दिन बाद प्राप्त हुआ और उसमें सब कुछ डिलीट कर दिया गया था” ।

    दवे ने इस साक्षात्कार से जज लोया की दूसरी बहन सरिता मंधानी के बयान भी पढ़कर सुनाए।

    दवे ने कहा, “जज लोया की मौत 5 बजे सुबह हुई। दांडे और मेडीट्रिना अस्पताल के बारे में कहानी तो बाद की बातें हैं।

    “जब किसी के दोस्त या सहयोगी को हृदयाघात होता है, तो यह अपेक्षित है कि उसको सबसे बेहतर अस्पताल में ले जाया जाए। फिर जज लोया को नागपुर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज या लता मंगेशकर हॉस्पिटल क्यों नहीं ले जाया गया जबकि ये दोनों ही रवि भवन से 4-5 किलोमीटर की दूरी पर हैं? उनको दांडे अस्पताल क्यों ले जाया गया जो कि पहले तल पर स्थित है और जहां ईसीजी कथित रूप से काम नहीं कर रहा था”, दवे ने पूछा।

    उन्होंने आगे कहा, “परिवार न्यायमूर्ति शाह के बारे में झूठ क्यों बोलेगा? और अगर वे झूठ बोल रहे हैं तो इस कोर्ट से होने वाली जांच में यह पकड़ी जाएगी”।

    दवे ने पूछा, “बॉम्बे हाई कोर्ट के कार्यवाहक़ मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लुर को लोया के पुत्र को अपने कक्ष में बुलाने की क्या जरूरत थी और फिर इसके बाद यह प्रेस बयान जारी करना कि वह नहीं चाहता कि इस मामले की कोई जांच हो”?

    उन्होंने कहा, “यह पूरी तरह सुनियोजित है...यह लोकतंत्र और न्यायपालिका पर एक धब्बा है”।

    दवे ने कहा, “जज लोया के पिता और उनकी बहन का बयान दबाव में लिया गया है। माननीय, मैं आपको यह पूरे दावे के साथ कह रहा हूँ कि आप इनसे अपने कक्ष में वकीलों की अनुपस्थिति में मिलिए”।

    पीठ को वीडियो रिकॉर्डिंग का पेन-ड्राइव सौपते हुए उन्होंने आग्रह किया “माननीय मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि आप अगली सुनवाई से पहले इन पर गौर कीजिए। मृतक के परिवार के सदस्यों के स्वाभाविक आचरण के बारे में आपको पता चल जाएगा ...”

    मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “जब हम जांच का निर्देश देते हैं, तो फैसले की भाषा स्पष्ट होनी चाहिए – या तो यह एक स्वतंत्र जांच होगी या फिर एक पूर्ण जांच क्योंकि नई बातें इस बीच हुई होंगी ...अपनी और से कुछ भी बयान देना काफी नहीं होगा”।

    अंत में एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सीपीआईएल की और से दायर हस्तक्षेप याचिका के तहत पीठ का ध्यान आरटीआई द्वारा प्राप्त की गई अतिरिक्त जानकारियों की ओर दिलाया -

    “जज लोया के ह्रदय के नमूने (मांसपेशी और आर्टरी के ऊतक) हिस्टोपैथोलॉजी जांच के लिए भेजे गए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि हर बात सामान्य है जबकि यह सर्वविदित है कि हृदयाघात की स्थिति में एक हिस्से का मांसपेशी मर जाता है। फिर, ईसीजी रिपोर्ट से यह लगता है कि वह ऐसे व्यक्ति का ईसीजी नहीं है जिसे आधा घंटा पहले हार्ट अटैक आया हो”।

    इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को जारी रहेगी।

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