सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बहुराष्ट्रीय एकाउंटिंग फर्म प्रथम दृष्टया क़ानून का उल्लंघन कर रहे हैं; केंद्र को विशेषज्ञों की समिति बनाने का निर्देश दिया [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

24 Feb 2018 2:50 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बहुराष्ट्रीय एकाउंटिंग फर्म प्रथम दृष्टया क़ानून का उल्लंघन कर रहे हैं; केंद्र को विशेषज्ञों की समिति बनाने का निर्देश दिया [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने भारत में काम कर रहे बहुराष्ट्रीय एकाउंटिंग फर्मों के कार्यकलापों की जांच के लिए शुक्रवार को केंद्र से विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने को कहा।

    न्यायमूर्ति एके गोएल और यूयू ललित की पीठ ने कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका और अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र को यह आदेश दिया। इन याचिकाओं में जो मुद्दे उठाए गए थे वे एक ही तरह के थे

    “क्या ये एकाउंटिंग फर्म भारत में गुपचुप तरीके से क़ानून का उल्लंघन कर रहे हैं और इसके क़ानून को लागू करने की कोई कोशिश नहीं की जा रही है। अगर हाँ, तो उक्त क़ानून को लागू कराने के लिए किस तरह के आदेश की जरूरत है”।

    विभिन्न पक्षों की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने कहा, “प्रवर्तन निदेशालय, इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया (आईसीएआई) और केंद्र सरकार को रिजर्व बैंक/एफडीआई नीतियों और सीए अधिनियम का ‘गुप्त तरीकों’ से उल्लंघन की जांच करनी चाहिए”।

    इसके बाद कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह लगता है कि एमएएफ देश में वैधानिक प्रावधानों और नीतियों का उल्लंघन कर रहे हैं। उसने कहा कि एमएएफ इनका पालन सिर्फ नाम भर के लिए कर रहे हैं – जैसे भारतीय साझेदारों के साथ मिलकर साझेदारी फर्म स्थापित करना जबकि इसका वास्तविक लाभ विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंसी फर्मों को ही मिलता है। इस तरह की साझेदारी वाले फर्म क़ानून तोड़ने के लिए एक चेहरा भर होता है”।

    कोर्ट ने जिस अन्य बात की ओर ध्यान दिलाया वह था सीए फर्मों में एफडीआई के नियमों का उल्लंघन करते हुए निवेश करना और साझीदारों को ब्याजमुक्त ऋण उपलब्ध कराने के लिए गैरकानूनी तरीके अपनाना।

    कोर्ट ने कहा, “...व्यक्ति का जो चेहरा होता है उसका कोई महत्त्व नहीं होता और इसका वास्तविक मालिक या गैरकानूनी कार्यों का लाभार्थी क़ानून की पकड़ में आने से बच जाता है। जैसे कि पहले ही कहा जा चुका है, अध्ययन समूह और विशेषज्ञ समूह की रिपोर्ट ये बताते हैं कि प्रवर्तन का तरीका पर्याप्त और प्रभावी नहीं है। इस पक्ष पर सरकार में बैठे विशेषज्ञों द्वारा ध्यान देने की जरूरत है”।

    इसके बाद कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए :

    (i) केंद्र सरकार तीन सदस्यों वाली एक विशेषज्ञ समिति गठित करे जो कि इस मामले की जांच करे कि सीए अधिनियम की धारा 25 और 29 को पूरी तरह लागू करने के लिए क्या करने होंगे और सीए के लिए आचार संहिता को और मजबूत करना होगा। समिति सर्बेन्स ओक्स्ले एक्ट, 2002 और डॉड फ्रैंक वाल स्ट्रीट रिफार्म और अमरीका के कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2010 की तरह का क़ानून या किसी अन्य तरीकों पर गौर कर सकती है। समिति इन मामलों के बारे में जरूरी उपाय सुझा सकती है जिस पर उचित अथॉरिटी कार्रवाई कर सकता है। समिति सभी संबंधित लोगों और संस्थाओं से सलाह ले सकती है। इस समिति को दो महीने के भीतर गठित की जाएगी। समिति की रिपोर्ट इसके तीन महीने बाद सौंपी जा सकती है। यूओआई इस रिपोर्ट पर आगे की कार्रवाई करेगा।

    (ii) ईडी तीन महीने के भीतर लम्बित मामलों की जांच पूरी करेगा;

    (iii) अगर जरूरी हुआ तो आईसीएआई उचित स्तरों पर जहाँ तक संभव हो, संबंधित मामलों की तीन महीनों के भीतर जांच कर सकता है।


     
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