बोफोर्स मामला : जस्टिस खानविलकर ने सुनवाई से खुद को अलग किया

LiveLaw News Network

13 Feb 2018 11:12 AM GMT

  • बोफोर्स मामला : जस्टिस खानविलकर ने सुनवाई से खुद को अलग किया

    बोफोर्स मामले को फिर से खोलने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ए एम खानविलकर ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। अब दूसरी बेंच 28 मार्च को मामले की सुनवाई करेगी।a

    चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने जैसे ही मंगलवार को मामले की सुनवाई शुरु की, सीबीआई की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने बेंच को बताया कि इस मामले में सीबीआई ने भी 2005 के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की अपील दाखिल कर दी है लेकिन ये अभी रजिस्ट्री में लंबित है क्योंकि कुछ सुधार किए जाने हैं। लेकिन इसी दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि जस्टिस खानविलकर इसकी सुनवाई नहीं करना चाहते। लिहाजा 28 मार्च को मामले की सुनवाई होगी।

    इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल कर मांग की गई कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा बहुचर्चित बोफोर्स घोटाले मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लें।

     सुप्रीम कोर्ट के वकील अजय अग्रवाल द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि इस मामले में कार्यवाही के दौरान उनके आचरण ने अधिवक्ताओं और मीडियाकर्मियों के दिमाग में संदेह पैदा कर दिया कि वह "इस मामले को मेरिट पर सुने बिना मामले को खारिज करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। " उन्होंने इस संबंध में 16 जनवरी को इस मामले में अंतिम सुनवाई की ओर इशारा करते हुए कहा है कि जब कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल को इस मामले में अग्रवाल की कड़ी आपत्ति के बावजूदकिसी भी अर्जी के बिना हस्तक्षेप करने की अनुमति दी गई थी।

     याचिका में कहा गया है,“ इस आवेदन के माध्यम से अपीलार्थी भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश से सुनवाई से खुद को अलग करने  की मांग कर रहा है, क्योंकि इस मामले की आखिरी सुनवाई के  दिन यानी 16 जनवरी, 2018 को अपीलकर्ता / आवेदक के दिमाग में न केवल संदेह उठाया गया बल्कि इस माननीय न्यायालय में उस समय उपस्थित अधिवक्ता और मीडियाकर्मी मानते हैं कि माननीय मुख्य न्यायाधीश इस मामले की योग्यता पर सुनवाई के बिना मामले को खारिज करने के लिए पक्षपातपूर्ण और प्रतिबद्ध हैं।”

    अग्रवाल ने कहा, पूर्व कानून मंत्री और वर्तमान में कांग्रेस प्रवक्ता वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल को उस दिन बीच में कूदकर  बोलने की इजाजत दी गई और अपीलकर्ता / आवेदक की आपत्ति के बाद भी  बोलने से रोका नहीं गया था। ऊपर उल्लिखित मामले ( उस दिन आइटम 103 ) के दौरान कपिल  सिब्बल पहले से ही वकीलों के संबोधन मंच पर बायीं ओर सामने  बैठे थे और उन्होंने इस माननीय न्यायालय को संबोधित करना शुरू कर दिया और कहा कि मामला 31 साल पुराना है और अपीलार्थी के पास कोई लोकस नहीं है। " अग्रवाल कहते हैं कि वो तुरंत आगे आए और पूछा कि सिब्बल किसका  प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तो वो चुप हो गए। “ वर्तमान अपीलकर्ता / आवेदक ने सिब्बल से पूछने के लिए माननीय सीजीआई से अनुरोध किया कि वो किसके लिए पेश हो रहे हैं। अगर वो किसी के लिए पेश नहीं हो रहे हैं तो उन्हें  यह माननीय न्यायालय इस माननीय न्यायालय की कार्यवाही में हस्तक्षेप / हस्तक्षेप करने से तुरंत रोकें। परन्तु माननीय मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से रोका नहीं। “

    दरअसल विभिन्न अदालतों में क्वात्रोकि के खिलाफ मुकदमा चलाने वाले अग्रवाल ने आवेदन में कहा है कि CJI मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इस मामले को निपटाने की जल्दी में है क्योंकि बेंच ने कहा था कि 2 फरवरी को अगली सुनवाई के दिन मामले को खत्म कर दिया जाएगा।

    इससे पहले अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट से करोडों के घोटाले मामले में जल्द सुनवाई की मांग की थी।

    उन्होंने 2005 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है जिसमें हिंदुजा बंधुओं को एक क्लीन चिट दी गई थी। यह मामला 1 9 86 की बोफोर्स तोप के सौदे का थी जिसमें राजीव गांधी सरकार को झटका लगा था।

    सुनवाई के दौरान बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा था कि आपराधिक मामले में तीसरा पक्ष कैसे अपील दाखिल कर सकता है ? बेंच ने उन्हें इस संबंध में फैसले लाने को कहा था।

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