CrPC धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते वक्त जांच एजेंसी की तरह काम नहीं कर सकता हाईकोर्ट :SC [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

10 Jan 2018 2:06 PM GMT

  • CrPC धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते वक्त जांच एजेंसी की तरह काम नहीं कर सकता हाईकोर्ट :SC [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने दिनेशभाई चन्दूभाई पटेल  बनाम गुजरात मामले में कहा है कि हाईकोर्ट आपराधिक प्रक्रिया संहिता ( CrPC) की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए ये जांचने के लिए कि FIR की  सामग्री किसी प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध को प्रकट करती है या नहीं, एक जांच एजेंसी की तरह कार्य नहीं कर सकता और ना ही वो अपीलीय अदालत जैसी शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता है।

    दरअसल सुप्रीम कोर्ट शिकायतकर्ता और आरोपी द्वारा हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था  जिसमें FIR  के कुछ हिस्से को रद्द कर दिया था। आरोपी ने भारतीय दंड संहिता और अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के कई खंडों के तहत विभिन्न अपराधों को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

    जस्टिस आरके अग्रवाल और जस्टिस ए.एम. सपरे की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट  ने अपने फैसले में FIR  के कुछ हिस्से को रद्द कर दिया और  89-पेज फैसले को एक निष्कर्ष पर पहुंचा दिया कि कानून में एफआईआर का कुछ हिस्सा बुरा है क्योंकि यह किसी भी अभियुक्त के खिलाफ किसी भी संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करता।  जबकि एफआईआर का केवल एक हिस्सा अच्छा है जो आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया का खुलासा करता है और इसलिए सिर्फ उसी हद तक कानून के अनुसार आगे की जांच की जरूरत है।

    बेंच ने कहा "ऐसा करते समय, हाईकोर्ट  ने हमारे विचार में, जांचकर्ता प्राधिकरण या / और अपीलीय प्राधिकारी की तरह  सभी मुद्दों का निर्णय लिया है और उसने जरा सा ही अहसास किया कि इस चरण में हाईकोर्ट इस मामले में कोड की धारा 482 के तहत अपने अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर रहा था।"

    बेंच ने आगे कहा, “ एफआईआर की वास्तविक सामग्रियों से किसी प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराधों का खुलासा होता है  या नहीं, यह जांचने के लिए कि हाईकोर्ट जांच एजेंसी की तरह कार्य नहीं कर सकता और ना ही अपीलीय न्यायालय की तरह शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता है। हमारी राय में, एफआईआर की सामग्री को देखते हुए और कोई सबूत की आवश्यकता नहीं है, यदि कोई है, तो इस सवाल की जांच की जानी चाहिए।

     सुप्रीम कोर्ट  ने कहा कि  FIR  में किसी भी संज्ञेय अपराध के होने का खुलासा होता है तो  अदालत को अपने हाथ रोक लेने चाहिए और जांच मशीनरी को तय कोड के मुताबिक प्रक्रिया के तहत अपराध के पर्दाफाश के लिए कदम उठाने देना चाहिए।

    बेच ने कहा, "इस मामले में हाईकोर्ट बारीक पहलु  गया और FIR के एक हिस्से को रद्द करने के लिए 89 पन्नों का फैसला लिखा और इसी वजह से हमारा ध्यान नतीजे पर गया कि हाईकोर्ट ने अपनी अंतर्निहित अधिकारिता संहिता की धारा 482 के तहत  क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर फैसला दिया है। हम हाईकोर्ट के इस दृष्टिकोण से सहमत नही हो सकते। “


     
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