सिनेमाघरों में राष्ट्रगान का मामला : केंद्र ने SC में कहा फिलहाल ना हो अनिवार्य [शपथ पत्र पढ़े]

LiveLaw News Network

8 Jan 2018 4:14 PM GMT

  • सिनेमाघरों में राष्ट्रगान का मामला : केंद्र ने SC में कहा फिलहाल ना हो अनिवार्य [शपथ पत्र पढ़े]

    देशभर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने के अंतरिम आदेश पर अब एक नया मोड आ गया है।

    मंगलवार को सुनवाई से एक दिन पहले हलफनामा दाखिल कर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि फिलहाल राष्ट्रगान को अनिवार्य ना बनाया जाए। केंद्र सरकार ने इंटर मिनिष्ट्रियल कमेटी बनाई है जो छह महीने में अपने सुझाव देगी और इसके बाद सरकार तय करेगी कि कोई नोटिफिकेशन या सर्कुलर  जारी किया जाए या नहीं।

     केंद्र सरकार ने कहा है कि तब तक 30 नवंबर 2016 के राष्ट्रीय गान के अनिवार्य करने के आदेश से पहले की स्थिति बहाल हो।

    गौरतलब है कि 23 अक्तूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने केंद्र  सरकार को कहा था कि सिनेमाघरों व अन्य जगहों पर राष्ट्रगान बजाने को लेकर वो ही निर्णय ले।

     सुनवाई के दौरान केरल फिल्मकारों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी यू सिंह समेत कई लोगों ने इस आदेश का विरोध किया था। सिंह ने कहा था कि ये आदेश न्यायिक विधान है और कोर्ट को इसे वापस लेना चाहिए क्योंकि सिनेमाघर मनोरंजनस्थल है। ये काम सरकार का है।

    वहीं चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि वो आदेश में संशोधन कर अनिवार्यता को खत्म कर सकते हैं लेकिन AG के के वेणुगोपाल ने कहा कि ये केंद्र सरकार का अधिकारक्षेत्र है और केंद्र पर इसे छोड दिया जाए। हालांकि AG ने कहा कि देश में विभिन्न धर्मों के लोग हैं और क्षेत्रीय और जातियों में विविधता है। ऐसे में अगर ये व्यवस्था रहेगी तो लोग सिनेमाघर से बाहर आएं तो वो सब भारतीय होंगे।

    वहीं बेंच में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा था कि लोग सिनेमाघर सिर्फ मनोरंजन के लिए जाते हैं। हम क्यों देशभक्ति का तमगा लटकाकर घूमें। ये सब मामले मनोरंजन के हैं। सरकार आदेश जारी करे। कोर्ट क्यों इसका बोझ उठाए?

    जस्टिस चंद्रचूड ने कहा था कि लोग शॉर्टस पहनकर भी सिनेमा जाते हैं क्या ये कहा जा सकता है कि वो राष्ट्रगान का सम्मान नहीं करते।  जो राष्ट्रगान के लिए खडे नही होते तो वो देशभक्त नहीं होते ?या जो नहीं गाते या खडे नहीं वो भी कम देशभक्त नहीं हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि ये भी देखना चाहिए कि सिनेमाघर में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं। ऐसे में देशभक्ति का क्या पैमाना हो, इसके लिए कोई रेखा तय होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के नोटिफिकेशन या नियम का मामला संसद का है। ये काम कोर्ट पर क्यों थोपा जाए ?

    गौरतलब है कि 30 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने ही राष्ट्रीय गान से जुड़े एक अहम अंतरिम आदेश में कहा था कि देशभर के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रगान बजते समय सिनेमाहॉल के पर्दे पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाया जाना भी अनिवार्य होगा तथा सिनेमाघर में मौजूद सभी लोगों को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना होगा। हालांकि बाद में कोर्ट ने लाचार और बीमार लोगों को छूट दे दी थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रगान राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक देशभक्ति से जुड़ा है। कोर्ट के आदेश के मुताबिक, ध्यान रखा जाए कि किसी भी व्यावसायिक हित में राष्ट्रगान का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसके अलावा किसी भी तरह की गतिविधि में ड्रामा क्रिएट करने के लिए भी राष्ट्रगान का इस्तेमाल नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल श्याम नारायण चौकसे की याचिका में कहा गया था कि किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए राष्ट्रगान के चलन पर रोक लगाई जानी चाहिए,और एंटरटेनमेंट शो में ड्रामा क्रिएट करने के लिए राष्ट्रगान को इस्तेमाल न किया जाए।  याचिका में यह भी कहा गया था कि एक बार शुरू होने पर राष्ट्रगान को अंत तक गाया जाना चाहिए और बीच में बंद नहीं किया जाना चाहिए। याचिका में कोर्ट से यह आदेश देने का आग्रह भी किया गया था कि राष्ट्रगान को ऐसे लोगों के बीच न गाया जाए, जो इसे नहीं समझते। इसके अतिरिक्त राष्ट्रगान की धुन बदलकर किसी ओर तरीके से गाने की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए।

    याचिका में कहा गया कि इस तरह के मामलों में राष्ट्रगान नियमों का उल्लंघन है और यह वर्ष 1971 के कानून के खिलाफ है.  इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। केंद्र सरकार ने इस कदम का समर्थन करते हुए कहा था कि इसे सभी शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया जाना चाहिए।


    Next Story