सरकार का लोकसभा में बयान, करणन पर फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट एमओपी के प्रारूप में सुधार लाए

LiveLaw News Network

28 Dec 2017 1:51 PM GMT

  • सरकार का लोकसभा में बयान, करणन पर फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट एमओपी के प्रारूप में सुधार लाए

    सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति सीएस करणन पर दिए गए उसके फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट को मेमोरेंडम ऑफ़ प्रोसीजर के प्रारूप में सुधार करना चाहिए। केंद्रीय क़ानून और न्याय मंत्री ने बुधवार को लोकसभा में यह बात कही।

    मंत्री ने यह बात एआईएडीएमके के सांसद जेजेटी नैटरजी द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में कही। सांसद ने पूछा था कि जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता बरतने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

    इस प्रश्न के उत्तर में क़ानून एवं न्याय राज्यमंत्री पीपी चौधरी ने कहा, “जरूरी विचार विमर्श के बाद भारत सरकार ने योग्यता के आधार, पारदर्शिता, सचिवालय की स्थापना और शिकायतों से निपटने की व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए वर्तमान एमओपी में परिवर्तन सुझाए हैं। सरकार नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी, निष्पक्ष, उत्तरदायी के साथ साथ न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान एमओपी में सुधार लाना चाहती है...

    ...भारत सरकार ने 11 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट को लिखे अपने पत्र के माध्यम से एमओपी में सुधार करने की जरूरत के बारे में अपनी राय से अवगत कराया है।”

    सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने कलकाता हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति करणन को न्यायालय की अवमानना का दोषी मानते हुए उन्हें छह माह के कैद की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने इसके बाद इस बात को रेखांकित किया था कि उम्मीदवारों की नियुक्ति से पहले यह पता किया जाए कि वे नियुक्ति के योग्य हैं कि नहीं। कोर्ट ने कहा था, “यह मामला, हमारी समझ से तात्कालिक समस्या से आगे की है। यह दो मामलों की ओर हमारा ध्यान खींचता है(1) संवैधानिक अदालतों में जजों और सभी स्तरों पर न्यायपालिका के किसी भी सदस्य का चयन और उसकी नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार और (2) एक ऐसी उचित कानूनी व्यवस्था स्थापित करने की जरूरत ताकि वह किसी संवैधानिक कोर्ट के जज के व्यवहार को महाभियोग लगाकर हटाने के अलावा अन्य तरीके से सुधारने की जरूरत पूरी कर सके।

    बेंच में पदोन्नति देने के बाद से ही अवमानना के दोषी इस जज का व्यवहार विवादित रहा है। जाहिर है कि बेंच में पदोन्नति देने के समय ही उनके व्यक्तित्व के आकलन में चूक हुई। हमारा उद्देश्य उन लोगों पर उंगलियाँ उठाना नहीं है जिन्होंने उनका नाम पदोन्नति के लिए आगे बढ़ाया। हमारा उद्देश्य व्यवस्था की खामियों को उजागर करना है जो इस तरह के आकलन के लिए किसी तरह की उपयुक्त व्यवस्था नहीं बनाई है। एक व्यक्ति जिसको संवैधानिक कोर्ट्स में नियुक्त किया जाना है उसका आकलन कैसे किया जाए यह इससे जुड़े सभी साझीदारों जैसे बार, बेंच, सरकार और नागरिक समाज के बीच उचित विचार विमर्श से निर्धारित किया जा सकता है। पर इसकी जरूरत है इस बारे में कोई प्रश्न ही नहीं उठ सकता।”


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