प्रतिवादी मुकदमा वापस लेने के वादी के निर्णय का विरोध नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

2 Dec 2017 4:46 AM GMT

  • प्रतिवादी मुकदमा वापस लेने के वादी के निर्णय का विरोध नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने अनिल कुमार सिंह बनाम विजय पाल सिंह के मामले में कहा है कि प्रतिवादी को यह अधिकार नहीं है कि वह वादी द्वारा मामले की वापसी का विरोध करते हुए वादी पर केस को पूरा करने के लिए दबाव डाले।

    न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल और न्यायमूर्ति एएम सप्रे की पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि अगर वादी मामले को वापस लेने की अर्जी इस अपील के साथ डालता है कि उसे इसी मुद्दे पर एक नया मामला दायर करने की इजाजत मिले, तो उस स्थिति में प्रतिवादी वादी के इस अपील का विरोध नहीं कर सकता है।

    वर्तमान मामले में, वादी के इस पर रोक लगाने और मामला वापस लेने के उसके आवेदन पर सुनवाई अदालत ने अपनी सहमति दे दी थी। यद्यपि पुनर्विचार अदालत ने अपनी सहमति दुहराई, हाई कोर्ट ने प्रतिवादी द्वारा दायर याचिका पर आदेश को रद्द कर दिया और वादी को निर्देश दिया कि वह मामले से जुड़ी जमीन को प्रतिवादी को सौंप दे।

    कोर्ट ने कहा कि बिना कुछ मांगे महज मामले को वापस ले लेने की अनुमति कभी भी दी जा सकती है क्योंकि नियम 1(1) के तहत मुकदमा वापस लेने की अर्जी के लिए वादी उसी विषय पर एक नया मुकदमा दायर करने के लिए किसी भी तरह की विशेष अनुमति नहीं चाहता है। नियम 1 को आदेश XXIII के साथ पढने पर यह पता चलता है कि वादी को मुकदमा दायर करने के बाद अपना मुकदमा वापस लेने या उससे पल्ला झाड़ लने का अधिकार है।

    इस स्थिति में वादी मुकदमे से अपना पैर खींचते हुए एक नया मुकदमा दायर करने की छूट पर कोर्ट ने कहा, “यह कोर्ट को निर्णय करना है कि वापसी की अनुमति वादी को मिलनी चाहिए या नहीं, और अगर दी जानी चाहिए, तो इसके लिए नियम 1 के उप-नियम (3) के तहत वे 10 शर्तें क्या हैं।”

    हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट को रिट याचिका की परिधि के तहत उसे सिर्फ यह निर्णय करना था कि सुनवाई अदालत और पुनरीक्षण कोर्ट का वादी को नियम 1 के आदेश XXIII के तहत आवेदन की अनुमति देना उचित था या नहीं। और ऐसा करते हुए हाई कोर्ट को खुद को सिर्फ इस जांच तक खुद को सीमित रखना चाहिए था कि नियम 1 आदेश XXIII का पालन हुआ या नहीं और कहीं यह इससे आगे तो नहीं चला गया।

    बेंच ने कहा, “हाई कोर्ट को यह देखना चाहिए था कि रोक की अनुमति का मुद्दा रिट याचिका का विषय नहीं था और इसीलिए मामले की वापसी से इसका कोई लेना देना नहीं था।”


     
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