सुप्रीम कोर्ट ने मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर(MOP) में हो रही देरी और जजों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

8 Nov 2017 2:47 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर(MOP) में हो रही देरी और जजों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर   मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर(MOP) में हो रही देरी पर दाखिल याचिका को आखिरकार खारिज कर दिया।

    हालांकि इस पर 14 नवंबर को सुनवाई होनी था लेकिन बुधवार को इसे चीफ जस्टिस दीपक मि़श्रा की बेंच में सुनवाई के लिए रखा गया और कोर्टरूम में चली सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि इस मामले की न्यायिक सुनवाई की जरूरत नहीं है। इसलिए इसे खारिज किया जाता है।जब याचिकाकर्ता आरपी लूथरा ने इसका विरोध किया तो बेंच ने कहा कि इस मुद्दे पर कदम उठाए गए हैं और क्या किया जा रहा है, ये बताने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि वो हाईकोर्ट के फैसले ये सहमत हैं कि इस याचिका में मेरिट नहीं है और कोर्ट इस याचिका को लंबित नहीं रखना चाहता।

    हालांकि एमिक्स क्यूरी के वी विश्वनाथन ने कोर्ट से याचिका को लंबित रखने का आग्रह किया क्योंकि हाईकोर्ट में जजों की रिक्तियां चिंताजनक हैं। लेकिन बेंच ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि न्यायिक तौर पर इस मामले में कुछ करने की जरूरत नहीं है।

    गौरतलब है कि इस मामले  में 27 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर  मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर(MOP) में हो रही देरी पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।

    जस्टिस आदर्श कुमार गोयल व जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने वकील आरपी लूथरा द्वारा दाखिल इस याचिका पर 14 नवंबर को अगली सुनवाई के दौरान AG के के वेणुगोपाल को कोर्ट में मौजूद रहने को कहा था और वरिष्ठ वकील के वी विश्वनाथन को एमिक्स क्यूरी बनाया था।

    सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो हाईकोर्ट की इस बात से सहमत है कि सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकार्ड एसोसिएशन व अन्य बनाम भारत सरकार केस के फैसले के बाद MOP ना होने की वजह से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को चुनौती देने में कोई आधार नहीं है। हालांकि कोर्ट ये जरूर देखेगा कि जनहित में MOP को तैयार होने में और देरी ना हो। हालांकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने कोई समय सीमा नहीं दी थी लेकिन MOP को अनिश्चितकाल के लिए लटकाए नहीं रखा जा सकता। ये आदेश 16 दिसंबर 2015 के थे और पहले ही एक साल 10 महीने बीत चुके हैं।

    दरअसल लूथरा ने MOP के बिना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट के याचिका खारिज करने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की।

    बेंच ने ये भी कहा था कि याचिका में इस मांग में भी दम है कि MOP को एक मैकेनिज्म देना चाहिए ताकि हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस की नियुक्तियों में देरी ना हो। कोर्ट ने कहा था कि इसमें कोई संदेह नहीं कि पद रिक्त होने से पहले ही कॉलिजियम द्वारा नियुक्ति की प्रक्रिया शुरु कर देनी चाहिए ताकि इन रिक्तियों को वक्त पर पूरा किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकार्ड एसोसिएशन व अन्य बनाम भारत सरकार केस,1993 के फैसले के मुताबिक बने MOP के पैरा 5 के तहत हाईकोर्ट में एक्टिंग चीफ जस्टिस का कार्यकाल एक महीने से ज्यादा नहीं होगा।

    दरअसल पिछले साल जनवरी से ही सुप्रीम कोर्ट और सरकार MOP को फाइनल करने की कोशिश कर रहे हैं।नेशनल ज्यूडिशियल अपाइंटमेंट कमिशन को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियों में पारदर्शिता के लिए MOP बनाने को तैयार हो गया था। ये कानून दो दशक से चल रहे कॉलिजियम सिस्टम को खत्म करने के लिए लाया गया था जिसमें कार्यपालिका को ज्यादा अधिकार दिए गए।

    22 मार्च, 2016 से अभी तक ड्राफ्ट MOP नेशनल सिक्योरिटी और सचिवालय के मुद्दे पर कॉलिजियम और केंद्र सरकार के बीच भटक रहा है।

    मार्च में कॉलिजियम ने साफ कर दिया था कि नेशनल सिक्योरिटी और जनहित के नाम पर सरकार जज की नियुक्ति की सिफारिश को वापस भेजेगी तो कॉलिजियम का फैसला अंतिम होगा।

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