केजरीवाल सरकार बनाम एलजी : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, उप राज्यपाल सरकार के दैनिक कार्य में दखल नहीं दे सकता

LiveLaw News Network

8 Nov 2017 5:07 AM GMT

  • केजरीवाल सरकार बनाम एलजी : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, उप राज्यपाल सरकार के दैनिक कार्य में दखल नहीं दे सकता

    सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र ने मंगलवार को कहा कि राज्य सरकार के दैनिक कार्य में उप राज्यपाल हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मौखिक रूप से 7 नवंबर को यह कहा कि वह एक ऐसी स्थिति की अपेक्षा करता है जब उप राज्यपाल और राज्य मंत्रिमंडल के बीच काम सौहार्दपूर्ण तरीके से हो और भावना आपसी “भागीदारी” की होनी चाहिए। दिल्ली को विशेष अधिकार दिलाने वाले संविधान के अनुच्छेद 229 की व्याख्या मंगलवार को दूसरे दिन भी जारी रहा।

    पांच जजों की संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति मिश्र ने कहा, “प्रशासन भागीदारी पर आधारित होना चाहिए। इसमें सामंजस्य का होना जरूरी है। हाँ, सरकार के दैनिक कार्य में राज्यपाल का हस्तक्षेप कतई नहीं होना चाहिए। अगर कोई हस्तक्षेप होता है या कोई बातचीत होती है तो उसमें भी एक तरह की अक्लमंदी होनी चाहिए...यह मूल्य आधारित होना चाहिए..तर्क आधारित होना चाहिए...हमारी भूमिका अंतिम व्याख्याकार की है...हम स्वविवेक के लिए कोई अलग क्षेत्र नहीं बना सकते...संसद की परिकल्पना के मुताबिक इसको व्यवस्थित होना चाहिए...संशोधन से जो अपेक्षा की गई थी उसको अव्यवस्थित नहीं किया जा सकता...अभिप्राय का आदर होना चाहिए।”

    पीठ दिल्ली सरकार द्वारा दायर कई याचिकाओं की एक साथ सुनवाई कर रहा है जो उसने इस वर्ष अगस्त में दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि उप राज्यपाल दिल्ली का “प्रशासनिक प्रमुख है” और कहा कि वह मंत्रिमंडल की मदद और सलाह को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

    सुप्रीम कोर्ट का यह बयान चार दिन पहले आए उसके इस बयान के बाद आया है जब उसने यह कहा था कि “प्रथम दृष्टया” संविधान दिल्ली के मामलों में उप राज्यपाल के साथ खड़ा दिखता है, लेकिन कहा कि उप राज्यपाल चुनी हुई सरकार द्वारा अनुमोदन के लिए भेजे गए फाइलों पर कुंडली मारकर नहीं बैठ सकता।

    सुप्रीम कोर्ट, ऐसा लगता है, कि इस विचार से सहमत है। उसने कहा कि “जमीन, पुलिस और व्यवस्था” दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है। फिर भी, “एलजी कार्यपालिका के निर्णय वाले फाइलों को आगे नहीं बढ़ाकर निष्फल नहीं कर सकता। उसे अपने अधिकारों का प्रयोग एक वाजिब समय के भीतर करना चाहिए।”

    बेंच ने कहा कि मतांतर मामूली बातों पर नहीं हो सकता। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “एलजी नागरिकों के विश्वास को ध्यान में रखते हुए मंत्रिमंडल के विचारों से अलग विचार रख सकता है और उसे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वह एक ऐसा प्रमुख है जिसके प्रति लोगों के मन में श्रद्धा होती है।”

    गोपाल सुब्रमण्यम की दलील

    बेंच की प्रतिक्रया दिल्ली सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम की दलील के बाद आई जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि एलजी राज्य सरकार के दैनिक प्रशासन में हस्तक्षेप कर रहे हैं जिसकी वजह से अनावश्यक रूप से विलंब हो रहा है और इसने सरकार को पंगु बना दिया है।

    सुब्रमण्यम ने कहा, “वह सभी फाइलों पर अपनी राय देना चाहते हैं...वह दिखाना चाहते हैं कि उन्हें हस्तक्षेप करने का अधिकार है...वह यह भी सोचते हैं कि राष्ट्रपति को भेजे बिना उन्हें सरकार के निर्णयों को पलटने का अधिकार है। यहाँ तक कि हाई कोर्ट ने भी उनके अधिकार को जायज ठहराया और यही वह बात है जो हमें तकलीफ़ पहुंचा रही है।”

    इसके बाद मुख्य न्यायाधीश मिश्र ने सुब्रमण्यम से पूछा, “तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि सरकार कोई भी निर्णय ले और एलजी से कहे कि वह उसको अपनी अनुमति दे दें...अगर वे सहमत हैं तो ठीक है और अगर नहीं तो इसे राष्ट्रपति को भेजा जाना चाहिए...लेकिन अब आप कह रहे हैं फैसला एकपक्षीय रूप से उपराज्यपाल द्वारा लिया जाना चाहिए।”

    सुब्रमण्यम ने कहा, “हर एक फाइल को वह तलब करते हैं...सरकार के अंतिम निर्णय को पलटने का वह निर्देश देते हैं। और इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।”

    सुब्रमण्यम ने अपनी दलील में आगे कहा, “दैनिक प्रशासनिक कार्यों में वह हस्तक्षेप नहीं कर सकते। हर एक फाइल को अपने पास लाने को कहना और उस पर निर्णय लेना एक गंभीर मामला है...वह नाममात्र के प्रधान हैं...और वे कहाँ हस्तक्षेप कर सकते हैं इस बारे में स्पष्ट रूप से कहा गया है...नियम सीमा के उल्लंघन के प्रति एक रक्षात्मक उपाय है”।

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