कोर्ट संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट पर सबूत के तौर पर भरोसा नहीं कर सकती : हरीश साल्वे

LiveLaw News Network

25 Oct 2017 5:09 AM GMT

  • कोर्ट संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट पर सबूत के तौर पर भरोसा नहीं कर सकती : हरीश साल्वे

    वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ के सामने कहा कि किसी लंबित याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट पर सबूत के तौर पर भरोसा नहीं कर सकती।

    मंगलवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस ए एम खानवेलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस अशोक भूषण की संविधान पीठ से सामने दलील दी कि अगर संसद कोई कार्रवाई नहीं करती तो कोर्ट सरकार को ऐसी रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाही करने के आदेश जारी नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट सबूतों का आधार नहीं होती और हर संस्थान को अपनी सीमा में काम करना होता है। कोर्ट संसद को ये आदेश नहीं दे सकती कि उसे कैसे काम करना है या रिपोर्ट पर क्या कदम उठाना है।

    साल्वे ने दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और दूसरे देशों के फैसलों का हवाला देते हुए बेंच को बताया कि ऐसी रिपोर्ट किसी भी उद्देश्य के लिए कोर्ट नहीं जा सकती क्योंकि ये रिपोर्ट सलाहकारी होती हैं जो संसद को कदम उठाने के लिए रास्ता दिखाती हैं।

    सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ सुनवाई कर रही है कि क्या कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 32 या अनुच्छेद 136 के तहत दाखिल याचिका पर कोर्ट संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट को रेफरेंस के तौर ले सकती है और इस पर भरोसा कर सकती है ?

    साथ ही क्या ऐसी रिपोर्ट को रेफरेंस के उद्देश्य से देखा जा सकता है और अगर हां तो किस हद तक इस पर प्रतिबंध रहेगा। ये देखते हुए कि संविधान के अनुच्छेद 105, 121, और 122 में विभिन्न संवैधानिक संस्थानों के बीच बैलेंस बनाने और 34 के तहत संसदीय विशेषाधिकारों का प्रवधान दिया गया है।

    दरअसल जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया औप इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा ह्युमन पापिलोमा वायरस ( HPV) के लिए टीके  की इजाजत देने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। ये टीका ग्लैक्सो स्मिथ क्लिन एशिया लिमिटेड और एमएसडी फार्मास्यूटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड बना रहे थे जो महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए था और टीके के लिए प्रयोग पाथ इंटरनेशनल की मदद से गुजरात व आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा किया जा रहा था। ये मामला इस दौरान कुछ लोगों  की मौत होने और मुआवजा देने के मुद्दा उठा।

    सुनवाई के दौरान कोर्ट को 22 दिसंबर 2014 को दी गई संसदीय स्थाई समिति की 81 वीं रिपोर्ट के बारे में बताया गया। बार की ओर से मुद्दा उठाया गया कि क्या अनुच्छेद 32 के तहत  याचिका पर न्यायिक सुनवाई करते वक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर गौर कर सकती है ?

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