गुंडों के एडवोकेट बनने पर मद्रास हाई कोर्ट नाराज, बार काउंसिल को इसके लिए दोषी बताया [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

17 Oct 2017 4:52 AM GMT

  • गुंडों के एडवोकेट बनने पर मद्रास हाई कोर्ट नाराज, बार काउंसिल को इसके लिए दोषी बताया [आर्डर पढ़े]

    मद्रास हाई कोर्ट ने वकीलों पर गुंडों की तरह व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए इसके लिए बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया (बीसीआई) को दोषी ठहराया है। कोर्ट ने कहा है कि इस पेशे में औसत दर्जे के लोगों के आने के लिए बीसीआई जिम्मेदार है जिसने मनमाने ढंग से लॉ कॉलेजों को मान्यता देकर समाज में वकीलों की मांग और उनकी आपूर्ति में असंतुलन पैदा कर दिया है।

    मद्रास हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति ने भारत में जिस आसानी से क़ानून की डिग्री मिलती है उस पर कठोर टिपण्णी की और बीसीआई से पूछा कि उसने किस आधार पर देश में लॉ कॉलेजों की संख्या को 175 (2010) से बढ़ाकर 800 (2014) कर दिया है।

    अन्नाई मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के एमबीबीएस छात्र की याचिका पर सुनवाई में कोर्ट ने वकील के गुंडा की तरह पेश आने की समस्या पर गौर किया। पिछले साल शुरू हुए मेडिकल कॉलेज के इस छात्र ने अपनी याचिका में कहा है कि उन्हें सरकारी संस्थानों में लिया जाना चाहिए क्योंकि बैंकों से लिए गए कर्ज नहीं चुकाने के कारण उनके मेडिकल कॉलेज के अधिकाँश कर्मचारियों ने इस्तीफा दे दिया है और कॉलेज बंद हो गया है।

    मेडिकल कॉलेज प्रबंधन में आपस में विवाद (पुराने और नए न्यासियों के बीच) है और इससे संबंधित एक मामला सिविल कोर्ट में लंबित है।

    सुनवाई के दौरान आवेदनकर्ता की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील सिराजुद्दीन और न्यासियों की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील आर सिंगरावेलन ने कुछ फोटो पेश किए जिसमें काले और सफ़ेद कपड़े में  कुछ लोग कॉलेज के भवन में मौजूद थे।

    जब कोर्ट ने इस बारे में ज्यादा जानना चाहा तो नए न्यासियों ने बताया कि इन वकीलों को पुराने न्यासियों ने अस्पताल पर कब्जा बनाए रखने के लिए रखा था जबकि पुराने न्यासियों का कहना था कि इन्हें नए न्यासियों ने रखा है ताकि वे इस अस्पताल को अपने कब्जे में ले सकें।

    कांचीपुरम के एसपी की रिपोर्ट में कहा गया कि दोनों ही पक्षों ने 20 सितंबर और 6 अक्टूबर को इन वकीलों को काम पर लगाया था।

    न्यायमूर्ति किरुबाकरण ने कहा, “...यह स्पष्ट है कि दोनों ही पक्षों को तो न्यायपालिका पर विश्वास है और ही पुलिस पर और कब्जे के लिए उन्होंने क़ानून को अपने हाथों में ले लिया, उन्होंने ऐसे लोगों को काम पर लगाया जो खुद को वकील बताते हैं और जो काले और सफ़ेद लिबास में हैं।”

    “कुछ पक्षों के लिए विवाद सुलझाने के लिए तथाकथित वकीलों को काम पर लगाने की बात आम है। पुलिस ने भी कुछ वकीलों के नाम बताए थे। हालांकि, न्यायालय में मौजूद डीएसपी ने बताया कि पुराने न्यासियों के वकील पद्मनाभन और विल्सन कोर्ट द्वारा पारित आदेश के बारे में पुलिस को बता रहे थे और इसी तरह नए न्यासियों के वकील रामकृष्ण, बालाजी और नीतिकुमार भी कोर्ट के आदेशों के बारे में बता रहे थे।

    “इसलिए उपरोक्त इन वकीलों के अलावा जो अन्य लोग फोटो में दिख रहे हैं और जिनके नाम कांचीपुरम के एसपी ने बताए हैं, वे सब के सब इस तरह के गैरकानूनी कारवाई के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए दोनों पक्षों को सिविल मामले सुलझाने के लिए तथाकथित वकीलों को काम पर रखने से बाज आना चाहिए।

    यह जानते हुए कि ये तथाकथित वकील दोनों पक्षों के कहने पर ही इस परिसंपत्ति में दखल देने आए, कोर्ट ने कहा, “पुराने और नए दोनों ही न्यासी कोर्ट के समक्ष शपथपत्र दाखिल कर उन वकीलों के नाम बताएंगे जिन्हें उन्होंने इस सिलसिले में काम पर रखा है और वे उन वकीलों में शामिल नहीं हैं जिन्हें कोर्ट से छूट मिली हुई है।”

     न्यायमूर्ति किरुबाकरण ने कहा, “कोर्ट को यह जानकर आश्चर्य नहीं हुआ है कि पुराने न्यासियों ने एक कोर्ट के आदेश का हवाला देकर अन्नाई मेडिकल कॉलेज, श्रीपेरुमबुदुर पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए ‘तथाकथित वकीलों’ की सेवाएं ली है या नए न्यासियों ने इस पर जबरन कब्जा करने के लिए उन्हें काम पर रखा है।”

    जज ने कहा, “यह सच है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग नियमित रूप से कॉलेज चलाए बिना पैसे लेकर क़ानून की डिग्री बेचने वाले विशेषकर आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के लेटर पैड कॉलेजों से क़ानून की डिग्री खरीदकर इस पेशे में प्रवेश कर रहे हैं।”

    न्यायमूर्ति किरुबाकरण ने सुप्रीम कोर्ट के एसएम अनंत मुरुगन बनाम बार काउंसिल अध्यक्ष के फैसले को उद्धृत किया और कहा, “न तो कानूनी पेशा किसी अपराधी का पनाहगार है और न ही क़ानून की डिग्री उनकी आपराधिक गतिविधियों के लिए ढाल है” और “गुंडा जैसे तत्त्व किसी वकील का अवतार नहीं ले सकते”।

    न्यायमूर्ति किरुबाकरण ने इस सुझाव पर जोर दिया और कहा कि “सरकार अधिवक्ता क़ानून में उचित संशोधन करे और उसमें ऐसे लोगों को अयोग्य घोषित करने का प्रावधान शामिल करे जो गैरजमानती अपराधों में शामिल रहे हैं और उनके लिए तीन साल  की सजा का प्रावधान करे या फिर इस तरह के लोगों के लॉ कॉलेजों में प्रवेश लेने या उनके इस पेशे में प्रवेश शामिल होने पर इनके लिए ज्यादा बड़ी सजा का प्रावधान करे क्योंकि ऐसा करना जरूरी हो गया है।”

    बीसीआई का बड़े पैमाने पर लॉ कॉलेजों खोलना खतरनाक

    कोर्ट ने इस खतरनाक धारणा पर अपनी चिंता दुहराई कि दूसरे पेशे के लोग कक्षा में बैठे बिना ही लैटर पैड कॉलेजों से डिग्रियाँ ले रहे हैं और बीसीआई यह पता किए बिना कि और कॉलेजों की जरूरत है या नहीं, नए कॉलेजों को मान्यता दिए जा रहा है। 

    कोर्ट ने कहा, “लॉ की डिग्री लेने में एक अन्य धारणा यह देखी गई है कि सरकार के पूर्णकालिक कर्मचारी, निजी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने वाले और संपत्तियों की खरीद-फरोख्त करने वाले लोग भी ऐसे कॉलेजों से क़ानून की डिग्रियाँ ले रहे हैं जो उनके घर से सैकड़ों मील दूर है।”

    बीसीआई औसतपन को सांस्थागत रूप दे रहा है

    लॉ कॉलेजों की संख्या में हो रही भारी बढ़ोतरी और बीसीआई द्वारा इनको मान्यता देने पर चिंता जाहिर करते हुए न्यायमूर्ति किरुबाकरण  ने कहा, “वर्ष 2010 में देश में 800 लॉ कॉलेज थे और बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया के तत्कालीन पदेन अध्यक्ष गोपाल सुब्रमण्यम ने उस समय कहा था कि देश में जरूरत से ज्यादा लॉ कॉलेज हैं और वास्तव में देश में सिर्फ 175 लॉ कॉलेज की ही जरूरत है और ऐसे कदम उठाने चाहिएं कि इनकी संख्या फिर 175 ही हो जाए।”

    “पर उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद, उनके प्रस्ताव के उलट, बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया के नए पदाधिकारियों ने कॉलेजों की संख्या को 800 से बढ़ाकर दो साल में ही 1200 करने की अनुमति दे दी। 2014 में तो बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने हर तीसरे दिन एक नए कॉलेज को मान्यता दी। क़ानूनी शिक्षा को उत्कृष्ट बनाने के बजाए बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने इसे औसत दर्जे का बना दिया।”

    कोर्ट ने खेद जाहिर करते हुए कहा, बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने यह जाने बिना इन कॉलेजों को मान्यता दी कि इनके पास सुविधाएँ हैं कि नहीं...आंध्र प्रदेश में 200 से ज्यादा कॉलेज हैं और कर्नाटक में लगभग 125 हैं। इस कोर्ट को यह समझ नहीं आ रहा कि आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में इतने ज्यादा कॉलेजों की क्या जरूरत है।”

     कॉलेजों में बायोमेट्रिक उपस्थिति को अनिवार्य किया जाए

    “समय आ गया है कि बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया लॉ कॉलेजों में बायोमेट्रिक उपस्थिति को अनिवार्य रूप से लागू करे और शिक्षकों का एक केंद्रीकृत पोर्टल तैयार करे ताकि इनके बारे में जानकारियाँ देश भर के लॉ कॉलेजों/संस्थानों में उपलब्ध हो सके। कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया को निर्देश दिया है कि वे प्रवेश से पहले लोगों के बारे में जानकारियों का सत्यापन कराएं क्योंकि भारी संख्या में उम्मीदवारों ने लैटर पैड कॉलेजों से लॉ डिग्रियाँखरीदी हैं जो कि तमिलनाडू के पड़ोसी राज्यों जैसे कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मौजूद हैं।

    “इस तरह के लोग लैटर पैड संस्थानों से डिग्रियां खरीद लेते हैं और वे किसी कोर्ट में प्रैक्टिस करना पसंद नहीं करते, वे सिविल मामलों को हल करने की आड़ में “कट्टा पंचायत” को ज्यादा तरजीह देते हैं। हालत यह हो गई है कि दूसरे पक्षों की पैरवी करने वाले वकीलों को धमकियाँ दी जाती हैं। जब कोर्ट के अंदर जहाँ न्यायिक फैसले सुनाए जाते हैं, यह हालत है तो कोर्ट के बाहर के हालात कैसे होंगे इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है”।

    वकीलों की मांग और उनकी आपूर्ति

    न्यायमूर्ति किरुबाकरण ने बताया कि कैसे देश में वकीलों की संख्या उनकी जरूरतों से ज्यादा है जिसके कारण कई वकीलों के पास काम नहीं है और कई आपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो जाते हैं और वर्तमान मामला इसका ही एक उदाहरण है।

    “बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया के पास इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है जिससे वह जान सके कि समाज को कितने वकीलों की जरूरत है और वर्तमान में उनकी कितनी आपूर्ति हो रही है जैसा कि चार्टर्ड अकाउंटेंट काउंसिल ने किया है जिसने यह आकलन किया कि देश में किसी विशेष वर्ष में चार्टर्ड अकाउंटेंट की मांग क्या होगी और इसके अनुरूप वह जो परिक्षा आयोजित करता है उसमें सिर्फ सात से आठ प्रतिशत ही छात्रों को पास होने देता है। बार काउंसिल को भी इसी तरह का रवैया अपनाना चाहिए।”

    “…समय आ गया है जब बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया और तमिलनाडु एवं पुदुचेरी के बार काउंसिल को वास्तविकता को समझना चाहिए कि काम नहीं मिलने पर ये तथाकथित वकील पैसा कमाने और ज़िंदा बचे रहने के लिए इस तरह के गैरकानूनी रास्तों को अपनाएंगे।”

    उन्होंने तमिलनाडु डॉ. आंबेडकर लॉ यूनिवर्सिटी का उदाहरण दिया जहाँ 80 प्रतिशत से अधिक अंक लाने वालों को क़ानून के विषय में प्रवेश मिलना मुश्किल हो रहा है।

    “यही हाल तमिलनाडु के दूसरे लॉ कॉलेजों का है। लेकिन दूसरे राज्यों के लॉ कॉलेजों में कम अंक पाने वाले छात्रों को प्रवेश दे दिया जाता है जिसकी वजह से इस पेशे में औसत दर्जे के लोगों का पैठ बन जाता है। इसलिए बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया बारहवीं या सीएलएटी की परीक्षा में न्यूनतम 75 प्रतिशत अंक लाने वालों को ही देश भर के लॉ कॉलेजों में प्रवेश देने का प्रावधान करे।

    कोर्ट ने बीसीआई अध्यक्ष, तमिलनाडु, पुदुचेरी और चेन्नई के बार काउंसिल अध्यक्ष,क़ानून एवं न्याय मंत्रालय, क़ानून सचिव, तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक, मायलापुर और चेन्नई के पुलिस आयुक्त को पक्षकार बनाया है ताकि वे उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर सकें जोकि कथित रूप से कट्टा पंचायत और मेडिकल कॉलेज को अपने कब्जे में करने जैसे गतिविधियों में संलग्न हैं।

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