लवलीन केस : सुप्रीम कोर्ट चौथे आरोपी की अर्जी पर 27 अक्टूबर को करेगा सुनवाई

LiveLaw News Network

16 Oct 2017 1:08 PM GMT

  • लवलीन केस :  सुप्रीम कोर्ट चौथे आरोपी की अर्जी पर 27 अक्टूबर को करेगा सुनवाई

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रामना और जस्टिस अमितावा राय की बेंच लवलीन केस में चाथे आरोपी की एसएलपी पर सुनवाई करने का फैसला किया है। आरोपी ने इस मामले में केरल हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को पलट दिया था।

     केरल हाई कोर्ट ने 23 अगस्त 2017 को दिए फैसले में क्रिमिनल रिविजन को आंशिक तौर पर स्वीकार करते हुए तीनों आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को स्वीकार कर लिया था। आरोपियों में केरल के मुख्यमंत्री पिनराइ विजयन भी शामिल हैं।

     याचिकाकर्ता के वकील लिज मैथ्यू की अर्जी में निम्नांकित दो सवालों को उठाया गया है। पहला सवाल यह उठाया गया है कि अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 397 के तहत पुनरीक्षण के अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए क्या वह आदेश में किसी तरह की कोई गड़बड़ी पाए बिना क्या इस तरह से फैसले को पलट सकती है। याचिका में आदेश की कानूनी वैधता पर भी सवाल उठाया गया है और कहा गया है कि पहली नजर में केस नहीं बनता और इस बारे में बिना किसी टिप्पणी के आदेश को पारित किया गया और निचली अदालत के आदेश को पलट दिया गया। इस मामले में सिर्फ अभियोजन पक्ष ने उन्ही तथ्यों को रखा जो ट्रायल कोर्ट के सामने रखा था और रिविजनल कोर्ट ने उसे पलट दिया।

    दूसरा सवाल यह उठाया गया है कि क्या हाई कोर्ट सीआरपीसी की धारा 397 के तहत पुनरीक्षण अधिकार का इस्तेमाल करते हुए दो अलग-अलग आरोपियों के लिए अलग-अलग मानदंड अपना सकता है। आरोपी नंबर एक, सात और आठ को आरोपमुक्त किए जाने को कोर्ट ने सही ठहराया था। लेकिन बाकी को आरोपमुक्त किए जाने के आदेश को पलट दिया और इसके लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया था और न ही कोई टिप्पणी की थी कि पहली नजर में केस बनता है औऱ केस को ट्रायल के लिए भेजना जरूरी है।

     याचिकाकर्ता का कहना है कि एकल बेंच को यह ध्यान में रखना चाहिए था कि बरी किए जाने के कौन से आधार हैं और उसे आरोपियों को बरी करने के ठोस कारणों का उल्लेख करना चाहिए था। उसने अपने आवेदन में कहा था कि अभियोजन पक्ष द्वारा सुनवाई के दौरान जो मामले उठाए गए थे उस पर ध्यान न देना, और आरोप तय करने और सुनवाई शुरू करने के बारे में किसी भी तरह की ठोस सफाई नहीं देना पुनरीक्षण सुनवाई की खामियां हैं और यह सीआरपीसी की धारा 397 के प्रावधानों के खिलाफ है। अभियुक्त नंबर एक, सात और आठ को आरोपमुक्त करने के लिए के लिए जो तर्क दिया गया वही तर्क दूसरे अभियुक्तों के लिए भी लागू होना चाहिए था। पर पुनरीक्षण सुनवाई की प्रक्रिया के दौरान ऐसा नहीं करना गैरकानूनी है।

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