दिवाला और दिवालापन संहिता 2016 को लेकर सुप्रीम कोर्ट का पहला बडा कदम [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

1 Sep 2017 10:09 AM GMT

  • दिवाला और दिवालापन संहिता 2016 को लेकर सुप्रीम कोर्ट का पहला बडा कदम [निर्णय पढ़ें]

    दिवाला और दिवालापन संहिता 2016 को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पहला बडा फैसला सुनाया है। जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन और जस्टिस संजय किशन कौल ने इस नए नियम पर गहन विश्लेषण किया है।

    दरअसल सुप्रीम कोर्ट M/S इनोवेटिव इंडस्ट्रीज की उस अपील पर सुनवाई कर रहा था जिसमें ICICI बैंक द्वारा शुरु की गई दिवाला प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी। कोड के मुताबिक वो डिफाल्टर घोषित हो गई थी और उसका ये कहना था कि कानूनी तौर पर कोई कर्ज बकाया नहीं है क्योंकि महाराष्ट्र रिलीफ अंडरटेकिंग ( स्पेशल प्रोविजन एक्ट), 1958 के तहत एक साल के लिए सब देनदारी निलंबित हो गई हैं। ये निलंबन फिर एक और साल के लिए बढा दिया गया है। ये भी दलील दी गई कि कंपनी कॉर्पोरेट ऋण पुनर्गठन के दौर से गुजर रही है और मास्टर  ऋण पुनर्गठन के माध्यम से चल रही प्रक्रिया में करार के तहत फंड रिलीज नहीं हो रहे हैं।

    NCLT ने कंपनी की इन दलीलों को ठुकरा दिया था और कहा था कि महाराष्ट्र रिलीफ अंडरटेकिंग ( स्पेशल प्रोविजन एक्ट), 1958 पर INB कोड प्रभावी होंगे क्योंकि ये संसदीय विधान हैं।

    इस फैसले की अपील  NCLAT में की गई और वहां भी दलील खारिज हो गई। इस फैसले में कहा गया कि कंपनी कर्ज चुकाने में नाकाम रही है इसलिए उसे महाराष्ट्र एक्ट के तहत राहत नहीं दी जा सकती। चूंकि अंतरिम प्रस्तावक प्रोफेशनल ( IRP) नियुक्त किया गया था तो फाइनेंसियल क्रेडिटर का ये सवाल था कि क्या कोर्ट में ये अपील सुनवाई योग्य है ? उसका कहना था कि अपील पर सुनवाई नहीं हो सकती क्योंकि इसके निदेशक अब प्रबंधन में नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को माना लेकिन ये तय किया गया कि इस मुद्दे पर विस्तृत आदेश जारी किया जाए ताकि देशभर के कोर्ट और ट्राइब्यूनल इस नए कानून के तहत सुनवाई के दौरान तथ्यों को ध्यान में रखें।

    इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिका और ब्रिटेन के दिवाला संबंधी कानून भी देखे कि किस तरह वो भारत के कानून से अलग हैं। कोर्ट ने संसद में कानून पेश करते वक्त मंत्री के बयान और दिवालापन कानून रिफार्म कमेटी की कारवाई पर भी नजर डाली।

    इस नई संहिता के मुख्य बिंदुओं को देखने के बाद कोर्ट ने उस मामलों पर नजर डाली जो संविधान के अनुच्छेद 254 के तहत विसंगतियां पैदा करते हैं। अंत में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र रिलीफ अंडरटेकिंग ( स्पेशल प्रोविजन एक्ट), 1958 और INB कोड का विश्लेषण करने के बाद कोर्ट ने संसदीय फैसले को बनाए रखा। यानी महाराष्ट्र रिलीफ अंडरटेकिंग ( स्पेशल प्रोविजन एक्ट), 1958 पर INB कोड प्रभावी होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को खारिज कर दिया।

    सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला दिवाला प्रक्रिया के दौरान आने वाली विसंगतियों के हल के लिए एक बडा कानूनी कदम है।


     
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