निजता मौलिक अधिकार, सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने जोडा नया अध्याय [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
24 Aug 2017 12:49 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने भारत के संविधान में नए अध्याय को जोड दिया है। अब निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार होगा। एक एेहतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार, यानी राइट टु प्राइवसी को मौलिक अधिकार का हिस्सा करार दिया है। नौ जजों की संविधान पीठ ने 1954 और 1962 में दिए गए फैसलों को पलटते हुए कहा कि राइट टु प्राइवेसी मौलिक अधिकारों के तहत संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन के अधिकार का ही हिस्सा है। जजों ने सहमति जताई लेकिन कारण अलग अलग दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ राइट टू प्राइवेसी को लेकर फैसला सुनाया है। पीठ को ये तय करना था कि निजता मौलिक अधिकार है या नहीं ? क्या ये संविधान का हिस्सा है ? इस फैसले का असर सीधे सीधे विभिन्न सरकारी योजनाओं को आधार कार्ड से जोडने के मामले पर पडेगा। सुप्रीम कोर्ट में कुल 21 याचिकाएं हैं। कोर्ट ने सात दिनों की सुनवाई के बाद 2 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दरअसल 1954 में 8 जजों की बेंच ने और 1962 में 6 जजों की बेंच ने कहा था कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार नहीं है।
इस पीठ में CJI जे एस खेहर, जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस AR बोबडे,जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन, जस्टिस अभय मनोगर स्प्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जजों की टिप्पणी
- अगर मैं अपनी पत्नी के साथ बेडरूम में हूं तो ये प्राइवेसी का हिस्सा है। एेसे में पुलिस मेरे बैडरूम में नहीं घुस सकती। लेकिन अगर मैं बच्चों को स्कूल भेजता हूं तो ये प्राइवेसी के तहत नहीं है क्योंकि ये राइट टू एजूकेशन के तहत आता है ,आप बैंक में अपनी जानकारी देते हैं, मेडिकल इंशोयरेंस और लोन के लिए अपना डाटा देते हैं। ये सब कानून द्वारा संचालित है यहां बात अधिकार की नहीं है।
- आज डिजिटल जमाने में डाटा प्रोटेक्शन बडा मुद्दा है। सरकार को डाटा प्रोटेक्शन के लिए कानून लाने का अधिकार है| सरकार द्वारा गोपनीयता भंग करने एक बात है लेकिन उदाहरण के तौर पर टैक्सी एग्रीगेटर द्वारा आपका दिया डाटा आपके खिलाफ ही इस्तेमाल कर ले प्राइसिंग आदि में वो उतना ही खतरनाक है।
- मैं जज के तौर पर बाजार जाता हूं और आप वकील के तौर पर माल जाते हैं। टैक्सी एग्रीगेटर इस सूचना का इस्तेमाल करते हैं।
- राइट टू प्राइवेसी भी अपने आप में संपूर्ण नहीं क्योंकि आप बैंक में अपनी जानकारी देते हैं, मेडिकल इंशोयरेंस और लोन के लिए अपना डाटा देते हैं। ये सब कानून द्वारा संचालित है यहां बात अधिकार की नहीं है। आज डिजिटल जमाने में डाटा प्रोटेक्शन बडा मुद्दा है। सरकार को डाटा प्रोटेक्शन के लिए कानून लाने का अधिकार है।
- राइट टू प्राइवेसी भी अपने आप में संपूर्ण नहीं | सरकार को वाजिब प्रतिबंध लगाने से नहीं रोक नहीं सकते
- क्या केंद्र के पास आधार के डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए कोई मजबूत मैकेनिज्म है ?
- विचार करने की बात ये है कि मेरे टेलीफोन या ईमेल को सर्विस प्रोवाइडर्स के साथ शेयर क्यों किया जाए ?
- मेरे टेलाफोन पर काल आती हैं तो विज्ञापन भी आते हैं। तो मेरा मोबाइल नंबर सर्विस प्रोवाइडर्स से क्यों शेयर किया जाना चाहिए,
- क्या केंद्र सरकार के पास डेटा प्रोटेक्ट करने के लिए ठोस सिस्टम है ? सरकार के पास डेटा को संरक्षण करने लिए ठोस मैकेनिज्म होना चाहिए
- हम जानते हैं कि सरकार कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार डेटा इकट्ठा कर रहे हें लेकिन ये भी सुनिश्चित हो कि डेटा सुरक्षित रहे - क्या कोर्ट प्राइवेसी की व्याख्या कर सकता है ?
- आप यही केटेलाग नहीं बना सकते कि किन तत्वों से मिलकर प्राइवेसी बनती है
- प्राइवेसी का आकार इतना बडा है कि ये हर मुद्दे में शामिल है। अगर हम प्राइवेसी को सूचीबद्ध करने का प्रयास करेंगे तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे प्राइवेसी सही में लिबर्टी का एक सब सेक्शन है।
- अगर राइट टू प्रिवेसी संविधान के प्रावधान में है तो इसे कहाँ ढूढें ? हमारे साथ दिक्कत ये है क्या इसे एक से ज्यादा संविधान के प्रावधानों में तलाशा जाए ?
- संविधान की अनुछेद 21 में इसे तलाशना कम कष्टकारी होगा लेकिन अगर ये आर्टिकल 19 आदि में है तो हमें ये ढूढ़ना होगा कि किस केस के हिसाब ये कहाँ सही ठहरता है ?
केंद्र की ओर से AG वे के वेणुगोपाल की दलील
- प्राइवेसी को पूरी तरह मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता
- हालांकि कोर्ट को प्राइवेसी का वर्गीकरण करना चाहिए और इसके कुछ हिस्सों को मौलिक अधिकारों के तहत सरंक्षण दिया जा सकता है
- कोर्ट ने पूछा कि आपके हिसाब से किस हिस्से को मौलिक अधिकार माना जा सकता है ?
- राइट टू लाइफ एंड लिबर्टी भी अपने आप में संपूर्ण नहीं।
- इसलिए हमारे देश में फांसी की सजा और कैद का प्रावधान है।
- राइट टू प्राइवेसी से राइट टू लाइफ जैसा मौलिक अधिकार कहीं बडा है
- क्या किसी के राइट टू प्राइवेसी को बचाने के लिए राइट टू लाइफ का उल्लंघन किया जा सकता है?
UIDAI की दलील
ASG तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया
- ये डेटा पूरी तरह प्रोटेक्टिड है
- डेटा प्रोटेक्शन को लेकर सरकार कानून ला रही है और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई है।
गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा की बीजेपी सरकारों ने कोर्ट में कहा
- प्राइवेसी एक मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि एक धारणा है। प्राइवेसी की व्याख्या नहीं की जा सकती
- ये कोई अलग से अधिकार नहीं है।
- याचिकाकर्ताओं की ये दलील गलत है कि 40 साल से सुप्रीम कोर्ट मानता रहा है कि प्राइवेसी मौलिक अधिकार है।
गैर बीजेपी सरकार वाले चार राज्यों पंजाब, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और पुदुचेरी की ओर कपिल सिब्बल ने कहा
- 1954 और 1962 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में उस तरह कभी विचार नहीं किया जा सकता था जैसी तकनीक आज 21 वीं सदी में मौजूद है
- प्राइवेसी संपूर्ण राइट नहीं है ना ही हो सकती है लेकिन कोर्ट को इसमें संतुलन बनाना है
- प्राइवेसी का मुद्दा सिर्फ राज्य और नागरिक के बीच नहीं है बल्कि गैर सरकार और नागरिक के बीच भी है।
- प्राइवेसी के मुद्दे पर दोनों पुराने जजमेंट मौजूदा दौर में कोई प्रासंगिकता नहीं रखते