क्या हम बेहतर नहीं कर सकतेः  आर. बसंत, सुप्रीम कोर्ट सीनियर एडवोकेट द्वारा शृंखला का पहला भाग

LiveLaw News Network

2 July 2017 7:41 AM GMT

  • क्या हम बेहतर नहीं कर सकतेः  आर. बसंत, सुप्रीम कोर्ट सीनियर एडवोकेट द्वारा शृंखला का पहला भाग

    स्कूली बच्चों की तरह छुट्टियों के बाद कोर्ट खुलने का मैं भी इंतजार कर रहा हूं। मैने 9 मई को सुप्रीम कोर्ट बंद होने के बाद कालीकट के लिए पहली फ्लाइट पकड़ी थी। अब एक जुलाई को कोर्ट खुलने पर दिल्ली वापस आ रहा हूं ताकि नए जूडिशियल ईयर में सुप्रीम कोर्ट में उसे वेलकम कर सकूं। 


    मैं स्वीकार करता हूं कि सीनियर एडवोकेट छुट्टियों में ज्यादा रिसर्च और अपडेशन नहीं करते। केरल का मौसम बेहतरीन था और इस दौरान परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर अच्छा वक्त बिताया। काफी आलस वाला समय था और उसको खूब एनजॉय किया। उस वक्त खुद से भी बात करने का मौका मिला। 


    देखा जाए तो कानून  सबसे ज्यादा नोबल यानी आदर्श पेशा है। ये जेंटलमैन का पेशा है और वकीलों से उम्मीद की जाती है कि वह जेंटलमैन रहें और इसके साथ-साथ कानून की समझ रखने वाले बेहतर जज बनते हैं। वकील जो जेंटलमैन हैं वह संवेदनशील भी हों और भाषा भी संयमित होना जरूरी है। जब मैं जूनियर था और उन दिनों मेरे सीनियर वकील के. भास्करन नैयर ने कहा था कि कोर्ट को हमेशा सम्मान के साथ संबोधित करना चाहिए। आप ये न देखें कि कौन बैठा है बल्कि ये देखें कि कहां और किस कुर्सी पर बैठे हुए हैं। आप कुर्सी को देखें। अपने साथी वकील का भी सम्मान करें। आप कोर्ट में अति तीव्रता न दिखाएं बल्कि कोर्ट के गरिमा का खयाल करें। अपने साथी वकील को दलील के बीच में न रोकें बल्कि आपको पूरा चांस मिलेगा। आपका वक्त आएगा तब आप एक-एक पॉइंट पर अपनी दलील रख सकते हैं और तब आप बेहतर तरीके से अपनी बात रख सकते हैं मेरे सीनियर की उक्त बातें अभी तक मेरे कानों में गूंजती है। 


    पिछले दिनों कुछ युवा वकीलों को लाइब्रेरी 2 में देखा और एक अजीब सा अखड़पन दिखा था। ये गलत धारणाएं उनके मन में पनप रही है कि कई बार कोर्ट प्रीजूडिश हो जाता है। लेकिन ये गलत धारणाएं हैं। पहले गलत  धाराएं उनके मन से निकालना होगा। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक अजीब से अनुभूति तब हुई थी जब एक मामले की सुनवाई के दौरान जज ने कहा था कि  कोर्ट किसी को भी उपकृत नहीं करती और न ही किसी से वह उपकृत होना चाहती है। जब भी मैं केस खारिज होते वक्त जजों के मुंह से सॉरी सुनता हूं तो मैं अपने आप से पूछता हूं कि हमें खुश होना चाहिए क्योंकि केस में मेरिट नहीं था। ये मामला सॉरी का नहीं है बल्कि ये जजों की शालीनता का परिचायक है। सुप्रीम कोर्ट देश का पहला कोर्ट है और ये रोल मॉडल है और यहां बेस्ट और आदर्श स्थापित होना चाहिए। हमारे कंधे पर भी इसके लिए दायित्व है और कोर्ट ओपन होने पर हम बेहतर करें और हम कर सकते हैं। 

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