जस्टिस कर्नन अवमानना में दोषी करार सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने जेल की सजा दी
LiveLaw News Network
31 May 2017 8:09 PM IST
एक अप्रत्यासित फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस सी एस कर्नन को अवमानना के मामले में दोषी करार देते हुए छह महीने कैद की सजा सुनाई है। भारतीय जूडिशियल इतिहास में एेसा पहली बार हुआ है जब सीटिंग हाई कोर्ट के जज को अवमानना मामले में दोषी करार दिया गया हो।
चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि हमारा सर्वसम्मति से यह फैसला है कि जस्टिस सी एस कर्नन ने न्यायपालिका की अवमानना की है। उनके कार्यो से कोर्ट व न्यायिक प्रोसेस की अवमानना हुई है,जो कि काफी गंभीर है। इसलिए उनको कोर्ट की अवमानना का दोषी पाया जाता है और उसी के अनुसार सजा दी जा रही है। हम इस बात से संतुष्ट है कि कर्णन को छह महीने की सजा दी जानी चाहिए। इसलिए अवमानना का दोषी अब कोई भी प्रशासनिक व न्यायिक काम नहीं कर सकता है।
सभी पक्षकार जिसमें एएसजी मनिंद्र सिंह,वकील के के वेणुगोपाल, सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन के प्रेसिडेंट आरएस सूरी ने कहा कि जस्टिस कर्नन के कार्य को माफ नहीं किया जा सकता है और उनको कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए हालांकि वेणुगोपाल ने सुझाव दिया कि कोर्ट को जस्टिस कर्णन के रिटायन होने का इंतजार करना चाहिए,उसके बाद ही उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अवमानना का अधिकार यह भेद नहीं करता है कि कौन क्या है,क्या वह एक जज है या व्यक्ति या निजी व्यक्ति। यदि वह सोचते हैं कि वह सिटिंग जज है और उन्हें दंड नहीं मिलेगा तो ब्लेम हम पर होगा। वहीं जस्टिस पीसी घोष ने भी संक्षिप्त हस्तक्षेप करते कहा कि कोर्ट उन्हें भारत के नागरिक के रूप में देख रहा है और नियम सभी नागरिकों के लिए बराबर है।
इसके साथ ही पीट ने प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रानिक मीडिया को भी कर्णन द्वारा अब पारित किसी भी आदेश या बयान का विवरण प्रसारित या प्रकाशित करने से रोक दिया है।
इस मामले में अवमानना की कार्रवाई झेल रहे जस्टिस कर्णन ने एक दिन पहले ही एक अन्य अचंभित करने वाला आदेश देते हुए अवमानना के मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के सात जजों को एससी/एसटी एक्ट के तहत दोषी करार देते हुए पांच-पांच साल की सजा सुनाई थी। जस्टिस कर्णन ने इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट के कुछ रिटायर हो चुके व वर्तमान में कार्यरत जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
अपने आदेश में जस्टिस कर्णन ने कहा था कि मामले के तथ्यों को देखते हुए और आरोपियों द्वारा दिए गए आदेशों को देखते हुए यह पाया गया है कि आरोपियों की मंशा एक दलित को परेशान करने की थी।
पिछले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन का मेडिकल चेकअप करवाने का आदेश दिया था,यह आदेश सात सदस्यीय संविधान पीठ ने दिया था। खंडपीठ जस्टिस कर्णन द्वारा दिए गए उनके दो आदेशों से काफी नाराज थी,जबकि उनको प्रशासनिक व न्यायिक काम करने से पहले ही रोक दिया गया था। उसके बाद भी उन्होंने सात जजों की खंडपीठ को समन जारी कर दिए थे और एयर कंट्रोल अॅथारिटी को निर्देश दिया था कि वह इन सात जजों को विदेश जाने की अनुमति न दे।
जिसके बाद खंडपीठ ने पाया था कि जस्टिस कर्णन अपना पक्ष रखने की स्थिति में नहीं है। इसलिए पश्चिम बंगाल के डीजीपी को निर्देश दिया था कि वह एक पुलिस टीम का गठन करे,जिसकी देखरेख में कर्णन का मेडिकल चेकअप करवाया जाए। परंतु जस्टिस कर्णन ने मेडिकल टीम को यह कहते हुए वापिस भेज दिया कि वह पूरी तरह ठीक है और उनको एक पत्र भी थमा दिया। यह पत्र कोलकाता के पारलव हाॅस्पिटल के मेडिकल बोर्ड के नाम पर था,जिसमें जस्टिस कर्णन ने मांग की थी कि संविधान पीठ के सात जजों को अपने पदों से इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि उनको लगता है कि वह सिर्फ अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए काम कर रहे है। इस पत्र में यह भी कहा गया था कि उनका मेडिकल चेकअप कराने का जो आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है,वह भी एक दलित जज को प्रताड़ित करने व उसका अनादर करने के समान है। साथ ही कहा था कि सातों जज अपनी ज्यूडिशियल पाॅवर का दुरूपयोग कर रहे है।