[NHAI Act] मध्यस्थ के कार्य या चूक के लिए भूमि मालिक को कष्ट नहीं उठाना चाहिए, संपत्ति का अधिकार अनुच्छेद 300ए के तहत संवैधानिक अधिकार: हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट

Amir Ahmad

8 May 2024 12:39 PM IST

  • [NHAI Act] मध्यस्थ के कार्य या चूक के लिए भूमि मालिक को कष्ट नहीं उठाना चाहिए, संपत्ति का अधिकार अनुच्छेद 300ए के तहत संवैधानिक अधिकार: हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट के जस्टिस अजय मोहन गोयल की सिंगल बेंच ने कहा कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 29(ए) के अनुसार संदर्भ में प्रवेश करने की तिथि से 12 महीने की अवधि के भीतर निर्णय देने में मध्यस्थ की चूक के लिए भूमि मालिक को कष्ट नहीं उठाना चाहिए। इसने माना कि चूंकि संपत्ति का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार है, इसलिए भूमि मालिक को कानून के अनुसार ही उसकी संपत्ति से वंचित किया जा सकता है।

    भूमि स्वामी की भूमि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम 1956 (National Highways Authority of India Act 1956) के प्रावधानों के तहत अधिग्रहित की गई, इसलिए न्यायालय ने माना कि भूमि स्वामी को कानून के अनुसार अधिग्रहित की गई भूमि के लिए पर्याप्त मुआवजा पाने का अधिकार है।

    संक्षिप्त तथ्य:

    केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग-21 को चार लेन का बनाने के उद्देश्य से हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में भूमि अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी की। NHAI Act 1956 की धारा 3(ए) (1) के तहत अधिसूचना 22.05.2012 को 'द ट्रिब्यून' और 'दैनिक जागरण' में धारा 3(जी)(3) के तहत प्रकाशित की गई। सक्षम प्राधिकारी ने अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य 35 लाख रुपये प्रति बीघा आंका। भूमि स्वामी ने व्यथित होकर मुआवजे में वृद्धि के लिए संदर्भ प्रस्तुत किया जिसमें तर्क दिया गया कि बाजार मूल्य 1.00 करोड़ रुपये प्रति बीघा से अधिक था।

    मध्यस्थ ने अपने निर्णय में 30% क्षतिपूर्ति और 9% ब्याज के साथ 36.00 लाख रुपये प्रति बीघा की दर से मुआवजा देने का आदेश दिया।

    भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम मध्यस्थता अधिनियम(Arbitration and Conciliation Act (Arbitration Act) ) की धारा 34 के तहत मध्यस्थता याचिका की अपील की। ​डिस्ट्रिक्ट जज ने अपने निर्णय में मध्यस्थता अधिनियम की धारा 29(ए) के अनुसार अवार्ड के लिए समय सीमा के मुद्दे को संबोधित किया। धारा के अनुसार मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा संदर्भ में प्रवेश करने की तिथि से 12 महीने के भीतर अवार्ड दिया जाना चाहिए, जिसे आपसी सहमति से छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है। जिला न्यायाधीश ने पाया कि पार्टियों की स्पष्ट सहमति के बिना एक वर्ष की समाप्ति के बाद घोषित किया गया अवार्ड कानून की दृष्टि में अवधि बढ़ाने के लिए असह्य है।

    व्यथित महसूस करते हुए अपीलकर्ता ने हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाइकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियां

    हाइकोर्ट ने रतन चंद और अन्य बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और अन्य में अपने निर्णय का हवाला दिया जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी (सी) संख्या 21144/2023 में बरकरार रखा।

    हाइकोर्ट ने माना कि अधिनियम की धारा 29(ए) के अनुसार, दलीलें पूरी होने के बारह महीने के भीतर मध्यस्थ द्वारा अवार्ड जारी नहीं किया गया। धारा 23(4) के तहत, दावे और बचाव का विवरण मध्यस्थ की नियुक्ति की तारीख से छह महीने के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।

    हालांकि, हाइकोर्ट ने माना कि मध्यस्थ की चूक के कारण अपीलकर्ता को नुकसान नहीं उठाना चाहिए। इसने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300 ए के तहत संपत्ति के संवैधानिक अधिकार पर जोर दिया, जिसमें कहा गया कि अपीलकर्ता को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम 1956 के तहत अधिग्रहित भूमि के लिए पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए। हालांकि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 29 (ए) बारह महीने के बाद मध्यस्थ के जनादेश को समाप्त करने की रूपरेखा तैयार करती है। हाइकोर्ट ने बताया कि उप-धारा (4) न्यायालय को अवार्ड की घोषणा करने की अवधि को निर्दिष्ट समय सीमा से पहले या बाद में बढ़ाने की शक्ति प्रदान करती है।

    हाइकोर्ट ने दोहराया कि क्योंकि मध्यस्थ वैधानिक प्राधिकरण है। इसलिए वैधानिक अवधि के भीतर निर्णय लेना और अवार्ड की घोषणा करना प्राथमिक रूप से उनकी जिम्मेदारी है। यदि मध्यस्थ ऐसा करने में विफल रहता है और पक्ष न्यायालय से विस्तार की मांग नहीं करते हैं, तो पीड़ित पक्ष विशेष रूप से भूमि मालिक को नुकसान नहीं उठाना चाहिए।

    विशेष रूप से इसने नोट किया कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 29 (ए) के तहत पार्टियों के लिए अवार्ड की घोषणा के लिए वैधानिक अवधि की समाप्ति के बाद विस्तार के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए कोई निर्दिष्ट समय सीमा नहीं है। इसलिए जिला न्यायाधीश के निष्कर्षों को बाधित किए बिना हाइकोर्ट ने मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए मध्यस्थ को वापस भेज दिया। हाइकोर्ट ने 21.11.2024 तक नया अवार्ड सुनाने के लिए समय बढ़ा दिया।

    केस टाइटल- हरि राम और अन्य बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण।

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