फर्जी आधार कार्ड: दिल्ली हाईकोर्ट ने यूआईडीएआई को कथित रूप से शामिल 400 से अधिक व्यक्तियों की जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया

Update: 2022-01-23 04:00 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को उन 400 से अधिक आधार कार्ड धारकों की जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया, जिन्हें शहर में नागरिक सुरक्षा प्रशिक्षण में नामांकन के उद्देश्य से कथित रूप से फर्जी आधार कार्ड प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं।

जस्टिस चंद्रधारी सिंह एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसमें जांच से पता चला कि वर्ष 2019 में शाहदरा के तत्कालीन जिलाधिकारी ने अन्य लोक सेवकों के साथ अपात्र व्यक्तियों को लाभ देने के लिए अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करके आपराधिक कदाचार किया था। फर्जी आधार कार्ड वाले लगभग 450 उम्मीदवारों ने नागरिक सुरक्षा में प्रशिक्षण के लिए नामांकन किया था।

यह मामला शहर की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को एक शिकायत मिलने के बाद सामने आया। इसमें आरोप लगाया गया कि डीटीसी बसों के लिए मार्शलों की भर्ती का तरीका अवैध था।

यह आरोप लगाया गया कि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा भर्ती प्रक्रिया में हेरफेर किया गया था। उन्होंने अपने गृह राज्य राजस्थान के 400 से अधिक लोगों को आधार कार्ड बनाने के लिए दिल्ली के निवासियों के रूप में नकली प्रमाण पत्र जारी किए।

इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि 11 और 12 अगस्त, 2019 को जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में कार्यरत आधार केंद्र पर राजस्थान के व्यक्तियों के लिए फर्जी दिल्ली पते वाले बड़ी संख्या में आधार कार्ड बनाए गए।

तदनुसार, 24 जनवरी, 2020 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा सात के सपठित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

इसलिए अभियोजन पक्ष की ओर से पेश एपीपी कुसुम ढल्ला ने यूआईडीएआई को सूचना के प्रकटीकरण के लिए मामले की जांच के लिए आवश्यक कथित रूप से नकली आधार कार्ड के संबंध में आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 की धारा 33(1) के तहत निर्देश देने की प्रार्थना की।

उक्त प्रावधान कुछ मामलों में सूचना के प्रकटीकरण का प्रावधान करता है।

"अधिनियम की धारा 28 की उपधारा (2) या उपधारा (5) या धारा 29 की उप-धारा (2) में निहित कुछ भी जानकारी के किसी भी प्रकटीकरण के संबंध में लागू नहीं होगा, जिसमें पहचान की जानकारी या प्रमाणीकरण रिकॉर्ड शामिल हैं। अधिनियम की धारा 33(1) के अनुसार, अदालत का आदेश जिला न्यायाधीश के आदेश से कम नहीं है।"

इसलिए यह प्रस्तुत किया गया कि आधार अधिनियम के तहत सूचना के प्रकटीकरण से निपटने वाले अधिनियम के 33(1) को आधार और अन्य कानून (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित किया गया। इस प्रकार न्यायालय को पहचान और प्रमाणीकरण जानकारी सहित सूचना के प्रकटीकरण पर आदेश देने में सक्षम बनाता है।

आगे यह प्रस्तुत किया गया कि जांच एजेंसी द्वारा सत्यापन के उद्देश्य से मांगी जा रही जानकारी आधार अधिनियम की धारा 2 (एन) के तहत परिभाषित 'पहचान जानकारी' के दायरे में आती है।

यह भी जोड़ा गया कि यूआईडीएआई द्वारा इस तरह की जानकारी का खुलासा किसी भी तरह से कार्डधारकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा।

दूसरी ओर, यूआईडीएआई की ओर से पेश अधिवक्ता निधि रमन ने कहा कि प्राधिकरण को उक्त जानकारी को आधार अधिनियम के प्रावधानों के तहत अनुमत सीमा तक और तरीके से साझा करने में कोई आपत्ति नहीं है।

तदनुसार, न्यायालय ने निर्देश दिया:

"प्रतिवादी को एतद्द्वारा निर्देश दिया जाता है कि वह आधार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार जांच के प्रयोजनों के लिए आवश्यक याचिका के अनुलग्नक पी-3 में नामित व्यक्तियों के लिए सभी प्रासंगिक जानकारी प्रदान करे। मामले के संबंध में अनुरोधित जानकारी प्राप्त करने के लिए क़ानून के प्रावधानों के संबंध में जांच एजेंसी को भी जांच के लिए निर्देशित किया जाता है।"

तद्नुसार याचिका का निस्तारण किया गया।

केस शीर्षक: राज्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार बनाम भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई)

प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 35

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