दिल्ली हाईकोर्ट ने दुहराया, अदालत मध्यस्थता समझौते की शर्तों को बदल नहीं सकती है [निर्णय पढ़े]

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17 July 2019 9:45 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने दुहराया, अदालत मध्यस्थता समझौते की शर्तों को बदल नहीं सकती है [निर्णय पढ़े]

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दुहराया है कि अदालत विभिन्न पक्षों के बीच मध्यस्थता समझौते की शर्तों को नहीं बदल सकती है और इसके बदले उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी पक्ष इस समझौते को मानें।

    न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने अपने फ़ैसले में कहा, "मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 के तहत क़रार की शर्तों को अदालत बदल नहीं सकती और पक्षकारों को मिश्रित मध्यस्थता की बात नहीं कह सकती है जिसका प्रावधान ज़िला मध्यस्थता समझौते में है"।

    पीठ ने लिब्रा ऑटोमोटिव्स प्राइवेट लिमिटेड की याचिका को ख़ारिज करते हुए यह बात कही। इस याचिका में समझौते को लेकर प्रतिवादी (बीएमडब्ल्यू इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और बीएमडब्ल्यू इंडिया फ़ायनैन्शल सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड) के साथ उसके विवाद को सुलझाने के लिए एकल मध्यस्थ की नियुक्त की माँग उसने की थी।

    याचिकाकर्ता को कई समझौतों के तहत बीएमडब्ल्यू समूह के उत्पादों का डीलर नियुक्त किया गया था। अलग-अलग समझौतों की शर्तें अलग-अलग विशिष्ट थीं।

    दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे पर क़रार की शर्तों को तोड़ने और इस वजह से मौद्रिक देनदारी का दावा किया।

    लिब्रा ऑटमोटिव्स ने समझौते के तहत मध्यस्थता की शर्तों का हवाला 24 जनवरी 2019 और 28 जनवरी 2019 को लिखे पत्र के माध्यम से दिया और प्रतिवादी से आग्रह किया कि या तो वह एक आम मध्यस्थ की नियुक्ति करे ताकि सभी मामलों का त्रिपक्षीय मध्यस्थता से निर्णय किया जा सके या फिर दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर के पास जाए और उनसे एकल मध्यस्थ की नियुक्ति का आग्रह करे। प्रतिवादियों ने इसका कोई जवाब नहीं दिया जिसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।

    अदालत ने हालाँकि कहा कि याचिका क़ानून के तहत पूरी तरह ग़लत है क्योंकि विषयों के उलझ जाने का मतलब यह नहीं है कि दो अलग क़रार के बारे में मध्यस्थता की प्रक्रिया स्वतंत्र रूप से अलग-अलग नहीं चल सकती है"।

    अपने इस फ़ैसले के लिए इंडियन ऑइल कॉर्परेशन बनाम राजा ट्रांसपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड, भारत संघ बनाम सिंह बिल्डर्ज़ सिंडिकेट एवं अन्य मामलों का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति नरूला ने कहा, "जहाँ कहीं आवेदन अधिनियम की धारा 11(6) के तहत दायर की गई है, उस संदर्भ में मध्यस्थ की नियुक्त की प्रक्रिया को समझौते के अनुरूप लागू किया जाना चाहिए और जिन अंतर्निहित प्रक्रिया पर पक्षकारों ने सहमति जताई है उनकी सहमति के बिना अदालत को किसी स्वतंत्र मध्यस्थ की नियुक्ति नहीं करनी चाहिए"।

    "पक्षकार समझौते की शर्तों से अवगत थे और मध्यस्थता की प्रक्रिया की शर्तों को उन्होंने स्वेच्छा से माना था। अब आवेदनकर्ता यह सुझाव दे रहा है कि जिस मंच की मध्यस्थता पर वे सहमत थे, उसको नज़रंदाज़ किया जाए और समझौते के उस हिस्से को अलग कर दिया जाए और यह भी कि प्रतिवादी को उनके सुझाए रास्ते को मानना चाहिए और बदले में मध्यस्थता अधिकरण पर सहमत हो जाना चाहिए जो कि उस समझौते की शर्तों के विपरीत है जिस पर वे सब सहमत थे। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती और इसलिए वर्तमान याचिका में आम मध्यस्थ की नियुक्ति की जिस राहत का दावा किया गया है उसकी अनुमति नहीं दी जा सकती," न्यायमूर्ति नरूला ने कहा।


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