मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 'सपेरों' पर प्रतिबंध लगाने वाले वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों को समाप्त करने की याचिका ख़ारिज की [आर्डर पढ़े]

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18 March 2019 9:36 AM GMT

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 'सपेरा' समुदाय के एक व्यक्ति की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें उसने वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 9 और 11 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी।

    महावीर नाथ ने हाईकोर्ट के ग्वालियर पीठ में अर्ज़ी देकर यह कहा कि उसे सपेरों के परंपरागत कार्य करने से रोका जा रहा है जो कि उसकी आजीविका का साधन रहा है। उसने कहा कि नाथ/सपेरा समुदाय के परम्परागत पेशे पर अचानक ही पाबंदी लगा दी गई है और उन्हें सांपों को रखने से रोक दिया गया है। उसने या भी कहा कि उनका समुदाय ग्वालियर और इसके आसपास के दूर दराज़ के क्षेत्र में समूह में रहते हैं और वे सांपों को दिखाकर अपनी आजीविका चलाते हैं।

    अधिनियम की धारा 9 किसी भी ऐसे जंगली जानवर को नुक़सान पहुँचाने से रोकता है जिनको अनुसूची I, II, III और IV में शामिल किया गया है और जो मानव जीवन के लिए ख़तरनाक हैं या फिर वे इतने बीमार या अक्षम हैं कि वे ठीक नहीं हो सकते और इसलिए किसी को भी इनका शिकार करने की इजाज़त नहीं है।

    पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता न्यायालय के समक्ष कोई भी ऐसा सही सबूत पेश नहीं कर पाया है नाथ समुदाय के पास सपेरे के काम के अलावा जीविकोपार्जन का और कोई साधान नहीं है।

    कोर्ट ने इस व्यक्ति की याचिका ख़ारिज कर दी और कहा कि सिर्फ़ मुश्किलातों की वजह से एक अच्छे क़ानून को रद्द नहीं किया जा सकता।


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