बिना जागरूकता के गोला-बारूद या अस्त्र-शस्त्र पास रखने से नहीं बनता है शस्त्र अधिनियम के तहत अपराध-दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

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9 Jun 2019 8:49 AM GMT

  • बिना जागरूकता के गोला-बारूद या अस्त्र-शस्त्र पास  रखने से नहीं बनता है शस्त्र अधिनियम के तहत अपराध-दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि पूर्ण जानकारी और जागरूकता के साथ बंदूक या गोला-बारूद पास रखने पर ही शस्त्र अधिनियम 1959 के तहत अपराध बनता हैl

    इस सिद्धांत को लागू करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने हरि किशन नामक एक व्यक्ति के खिलाफ शस्त्र अधिनियम या आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द कर दिया। उस पर आरोप था कि वह अपने साथ जिंदा कारतूस रखे हुए था।

    मालवीय नगर मेट्रो पर डीएमआरसी अधिकारियों को जांच के दौरान हरि किशन के बैग में कारतूस मिला था। हरि किशन का कहना था कि उसे नहीं पता था कि बैग की साइड वाली जेब में कारतूस रखा है क्योंकि उस जेब में न तो चैन लगी थी और न ही कोई ताला। उसका कहना था कि यह कारतूस उसके बैग की जेब में किसी अन्य व्यक्ति ने रखा है,जब वह मेट्रो स्टेशन आने के लिए एक शेयरिंग ऑटो में आ रहा था।

    उसने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि प्राथमिकी में उस पर ऐसा कोई आरोप नहीं है कि उसे अपने पास रखे कारतूस के बारे में पूरी जानकारी थी।

    याचिकाकर्ता ने उन पूर्व निर्णयों का हवाला दिया,जिनमें कहा गया था कि शस्त्र अधिनियम 1959 की धारा 25 के तहत 'कब्जा या पसेशन' शब्द का अर्थ है 'जागरूक कब्जा या जानकारी के साथ किसी वस्तु को अपने पास रखना रखना'। मात्र इस आधार पर अपराध का मामला नहीं बनता कि व्यक्ति की कस्टडी में हथियार थे. यह जरुरी है कि उस व्यक्ति को हथियार की उपस्थिति के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी और जागरूकता हो. (गुणवंत लाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य एआईआर 1972 एससी 1756,संजय दत्त बनाम बाॅम्बे सीबीआई के जरिए राज्य (दो),सिद्धार्थ कपूर बनाम दिल्ली सरकार (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली,दिल्ली सरकार))

    याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 'गगनजोत सिंह बनाम राज्य' मामले में दिए गए फैसले का भी हवाला दिया। इस मामले में भी याचिकाकर्ता के बैग में एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के दौरान एक कारतूस मिला था। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि उसे नहीं पता था कि उसके बैग में कारतूस है। उसने दलील दी थी कि असल में बैग उसके एक अंकल का है और उसने यात्रा के लिए यह बैग उनसे उधार लिया था।

    एक सदस्यीय खंडपीठ की जस्टिस अनु मल्होत्रा ने पाया कि यह केस वर्तमान केस के समान था। इसलिए कोर्ट ने मामले में दायर आरोप पत्र को खारिज करते हुए कहा कि इस तरह का कोई आरोप नहीं है कि याचिकाकर्ता को कारतूस के बारे में जानकारी थी। जस्टिस मल्होत्रा ने यह आदेश दिया कि-

    "इस कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ द्वारा "गगनजोत सिंह'' मामले में दिए गए फैसले को देखते हुए और साथ ही याचिकाकर्ता द्वारा पेश किये गए फैसले, जिनके तथ्य वर्तमान मामले के समान ही है, कोर्ट ने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द किया जाता है।वहीं उसके खिलाफ चल रही अन्य सभी कार्यवाहियों को भी खारिज कर दिया।कोर्ट ने इस बात का भी हवाला दिया कि वर्तमान मामले में दर्ज़ प्राथमिकी में कही भी यह नहीं दिया गया है कि याचिकाकर्ता इस बात की जानकारी रखता था कि उसके पास कारतूस है ल


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