सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया की मां को दोषी अक्षय की पुनर्विचार याचिका में पक्ष रखने के अनुमति दी

LiveLaw News Network

13 Dec 2019 7:41 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया की मां को दोषी अक्षय की पुनर्विचार याचिका में पक्ष रखने के अनुमति दी

    सुप्रीम कोर्ट ने  2012 के निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में मौत की सजा पाने वाले चार दोषियों में से एक अक्षय सिंह की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान पीड़िता की मां को भी दलीलें देने की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच 17 दिसंबर को इस पर सुनवाई करेगी।

    शुक्रवार को निर्भया की मां की ओर से मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे से उन्हें भी हस्तक्षेप करने की इजाजत मांगी और उन्हें ये अनुमति दे दी गई।

    दरअसल इस मामले में मौत की सजा पाने वाले चार दोषियों में से एक अक्षय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में 5 मई, 2017 को शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए फैसले पर सवाल उठाते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल की है, जिसमें मौत की सजा को बरकरार रखा गया है।

    फैसले के खिलाफ दलीलों के अलावा, उन्होंने याचिका में कुछ अजीबोगरीब दलीलें भी दी हैं। उसके अनुसार , मौत की सजा अनावश्यक है क्योंकि दिल्ली की बिगड़ती हवा और पानी की गुणवत्ता खराब हो चुकी है।

    "यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दिल्ली-एनसीआर और मेट्रो शहर की वायु गुणवत्ता एक गैस चेंबर की तरह है। इतना ही नहीं, दिल्ली-एनसीआर का पानी भी जहर से भरा है। यह तथ्य भारत सरकार की रिपोर्ट से साबित होता है जो संसद में प्रस्तुत की गई सभी को पता है कि दिल्ली-एनसीआर में हवा और पानी के संबंध में क्या हो रहा है। जीवन छोटा होता जा रहा है, फिर मौत की सजा क्यों? " वकील ए पी सिंह ने ये याचिका दायर की है।

    याचिका में कहा गया है कि "कलयुग" में पिछले समय के जीवन काल की तुलना में लोगों का जीवनकाल घटकर 50-60 साल हो गया है। जब कोई व्यक्ति जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना करता है और प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरता है तो वह मृत शरीर से बेहतर नहीं होता।

    पुनर्विचार याचिका में कहा गया है,

    " जब उम्र कम हो रही है तो मृत्युदंड क्यों?हमारे वेद, पुराणों और उपनिषदों में यह उल्लेख किया गया है कि सतयुग में लोग हजार साल का जीवन जीते थे। द्वापर में वे सैकड़ों साल तक जीवित रहते थे। यह कलियुग है, इस युग में, मनुष्यों की आयु बहुत कम हो गई है। यह अब 50-60 साल हो गया है, और शायद ही कभी हम एक ऐसे व्यक्ति के बारे में सुनते हैं जिसकी 100 वर्ष की आयु है। बहुत कम लोग 80-90 वर्ष की आयु तक पहुँचते हैं। यह लगभग बहुत ही सच्चा विश्लेषण है। जब हम अपने आस-पास देखते हैं तो हम निष्कर्ष पर आते है।जब कोई व्यक्ति जीवन की कठोर वास्तविकताओं का सामना करता है और विपरीत परिस्थितियों से गुजरता है तो वहए क मृत शरीर से बेहतर नहीं है। "

    याचिका में यह भी कहा गया कि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी एन भगवती ने कहा है कि केवल गरीबों को मौत की सजा दी जाती है जबकि अमीर फांसी से बच जाते हैं।

    याचिकाकर्ता ने कहा, "याचिकाकर्ता गरीब लेकिन सम्मानित परिवार से है और बड़े परिवार का एकमात्र कर्ता-धर्ता है।"

    मृत्युदंड की अमानवीय प्रकृति पर तर्क भी इस याचिका में किए गए हैं।

    दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में तीन अन्य मृत्युदंड दोषियों मुकेश कुमार, विनय शर्मा और पवन कुमार गुप्ता- की पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2017 में मृत्युदंड को बरकरार रखा था।

    यह अपराध 16 दिसंबर, 2012 को हुआ था, जब दिल्ली की एक बस में 23 साल की प्रशिक्षु फिजियोथेरेपिस्ट और उसके पुरुष मित्र को पांच आरोपियों व एक किशोर ने फुसलाया, जहां उन्होंने महिला के साथ बार-बार बलात्कार किया और फेंकने से पहले लोहे की रॉड से पीटा। बाद में निर्भया (जिसका अर्थ निर्भय) ने दो सप्ताह बाद दम तोड़ दिया। चार दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई, जबकि पांचवें ने जेल में खुदकुशी कर ली

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