जम्मू-कश्मीर में प्रतिबंध : सरकार के वकीलों के पेश न होने से सुप्रीम कोर्ट हुआ नाराज, याचिकाकर्ताओं ने कहा, जीने के अधिकार का उल्लंघन

LiveLaw News Network

19 Nov 2019 4:06 PM GMT

  • जम्मू-कश्मीर में प्रतिबंध : सरकार के  वकीलों के पेश न होने से सुप्रीम कोर्ट हुआ नाराज, याचिकाकर्ताओं ने कहा, जीने के अधिकार का उल्लंघन

    जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने के बाद इंटरनेट, संचार माध्यमों व अन्य प्रतिबंध लगाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की ओर से वकीलों के पेश ना होने पर नाराज़गी जताई।

    मंगलवार को जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई ने अनुराधा भसीन, गुलाम नबी आजाद और अन्य लोगों द्वारा दाखिल जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा, " ऐसा लगता है कि सरकार के वकील इस मामले को लेकर गंभीर नहीं हैं। किसी को जिम्मेदारी लेनी पडे़गी, मामले में गंभीरता नहीं है।"

    बाद में जम्मू-कश्मीर की ओर से सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत में आए और पीठ को बताया कि वो भूमि अधिग्रहण पर संविधान पीठ में सुनवाई में हैं।

    इस पर पीठ ने तुषार मेहता से बुधवार को दलीलें शुरू करने को कहा लेकिन उन्होंने कहा, " बुधवार को कुछ कठिनाई है। वो और AG व्यस्त हैं, इसलिए गुरुवार को सुनवाई हो।" कोर्ट ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए गुरुवार के लिए मामले को सूचीबद्ध किया है। हालांकि दोपहर में ASG केएम नटराज और विक्रमजीत बनर्जी भी कोर्ट में मौजूद रहे।

    सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने मामले की सुनवाई में देरी का आरोप लगाया तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताई और कहा, " आपको सावधानी बरतनी चाहिए। क्या आप देरी के लिए अदालत को दोषी मानते हैं?"

    दवे ने कहा, " हम कोर्ट के खिलाफ नहीं बल्कि सरकार के खिलाफ हैं। सरकार प्रतिबंध क्यों नहीं हटा रही है। "

    वरिष्ठ वकील हुज़ेफ़ा अहमदी, दुष्यंत दवे और मीनाक्षी अरोड़ा विभिन्न याचिकाकर्ताओं के लिए उपस्थित हुए। उन्होंने कहा कि कानून और व्यवस्था की समस्या हो सकती है और 100 दिनों से अधिक प्रतिबंधों के अस्तित्व में बने रहने के आधार पर पूरे राज्य में प्रतिबंध लगाए गए हैं।

    उन्होंने यह भी कहा कि इंटरनेट पर प्रतिबंध बोलने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। जीने के अधिकार का भी उल्लंघन किया गया क्योंकि इंटरनेट तक पहुंच की कमी से चिकित्सा उपचार तक पहुंच को रोक दिया गया। परिवहन की कमी ने उनकी समस्याओं को भी बढ़ा दिया है। सरकार ने आलोचना को रोकने और बचने के लिए इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया है और हर नागरिक को आतंकवादी मानते हुए सभी को चुप करा दिया गया है।

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