"हम ट्विट की सराहना नहीं करते लेकिन उसे सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता", सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार प्रशांत कनौजिया को रिहा करने का आदेश दिया

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11 Jun 2019 9:20 AM GMT

  • हम ट्विट की सराहना नहीं करते लेकिन उसे सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता, सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार प्रशांत कनौजिया को रिहा करने का आदेश दिया

    उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ऑनलाइन टिप्पणी एवं वीडियो साझा करने के चलते यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पत्रकार प्रशांत कनौजिया को एक बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है।

    जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की अवकाश पीठ ने कनौजिया की पत्नी जगीशा अरोड़ा द्वारा दायर हैबियस कॉरपस याचिका पर ये आदेश जारी किया है।

    कनौजिया के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया रहेगी जारी
    हालांकि पीठ ने यह कहा कि वो कनौजिया द्वारा किए गए ट्विट को मंजूर नहीं करती और उनके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया जारी रहेगी। पीठ ने कहा कि संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दी गई जमानत की शर्तों को पूरा कर प्रशांत को रिहा किया जाए। पीठ ने कहा कि प्रशांत को एक नागरिक के तौर पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

    "गिरफ्तारी केवल सीएम के खिलाफ टिप्पणी को लेकर नहीं"

    इस गिरफ्तारी को सही ठहराने का प्रयास करते हुए यूपी सरकार के लिए पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि गिरफ्तारी केवल सीएम के खिलाफ टिप्पणी के लिए नहीं की गई। ASG ने दिसंबर 2017 की शुरुआत में कनौजिया के कई ट्वीट्स का हवाला दिया और कहा कि वो देवताओं, धार्मिक भावनाओं और सामुदायिक प्रथाओं का अपमान कर रहे थे। इसलिए सार्वजनिक शरारत के लिए गिरफ्तारी की गई है और बाद में एफआईआर में IPC की धारा 505 जोड़ी गई है।

    11 दिन के रिमांड आदेश पर अदालत को हुआ आश्चर्य

    लेकिन बेंच को यकीन नहीं हुआ। "हम उनके इस ट्वीट की सराहना नहीं करते।लेकिन क्या उन्हें इसके लिए सलाखों के पीछे रखा जा सकता है?" न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा। अदालत ने मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए 11 दिनों के रिमांड आदेश पर भी आश्चर्य व्यक्त किया और कहा, "क्या वह हत्या का आरोपी है?"

    ASG ने उठाया रिमांड आदेश को लेकर हैबियस कॉरपस याचिका पर सवाल

    ASG ने जवाब दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले हैं कि रिमांड के आदेशों को हैबियस कॉरपस याचिका में चुनौती नहीं दी जा सकती और यहां उचित उपाय निचली अदालत से जमानत लेने का है।

    लेकिन पीठ वे कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 में "पूर्ण न्याय" करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास उचित शक्तियां हैं।पीठ ने कहा, "अगर कोई भयावह अवैधता है तो हम अपने हाथ नहीं मोड़ सकते और निचली अदालतों में जाने के लिए नहीं कह सकते।"

    "यह गिरफ्तारी थी एक संदेश"

    वहीं यूपी सरकार ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी के माध्यम से यह प्रस्तुत किया कि गिरफ्तारी "एक संदेश भेजने के लिए" आवश्यक थी कि उत्तेजक ट्वीट्स को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। लेकिन पीठ ने इसे खारिज कर दिया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए इसमें दखल देने का फैसला किया।

    "कनौजिया के सोशल मीडिया पोस्ट की सराहना नहीं"

    पीठ ने यह कहा कि वो सोशल मीडिया पोस्ट की सराहना नहीं करती और ना ही कानूनी कार्रवाई में दखल दे रही है। वो तो संविधान द्वारा गारंटीकृत जीने के अधिकार और अभिव्यक्ति के अधिकार को लेकर चिंतित है।

    अधिवक्ता नित्या रामाकृष्णन द्वारा दाखिल इस प्रतिनिधित्व याचिका में अरोड़ा ने अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए कहा, "कथित पोस्ट में अपराध नहीं है और यह अभिव्यक्ति की आजादी और जीवन के अधिकार पर एक अनुचित हमला है।"

    दायर हुई थी हैबियस कॉरपस याचिका

    दरअसल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा शनिवार को गिरफ्तार किये गए पत्रकार प्रशांत कनौजिया की पत्नी जगीशा अरोड़ा ने उनकी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉरपस याचिका दायर की थी।

    कनौजिया ने किया था ट्विटर पर एक वीडियो साझा
    द इंडियन एक्सप्रेस और द वायर हिंदी में काम के अनुभव वाले भारतीय जन संचार संस्थान के पूर्व छात्र कनौजिया ने दरअसल ट्विटर पर एक महिला के बारे में यह दावा करते हुए एक वीडियो साझा किया कि वह योगी आदित्यनाथ के साथ रिश्ते में थी और वह उनसे शादी करना चाहती थी।

    दिल्ली के पश्चिम विनोद नगर से किये गए गिरफ्तार
    इस खबर को बीते हफ्ते गुरुवार शाम को कनौजिया ने एक मजाकिया टिप्पणी के साथ साझा किया था। शनिवार दोपहर को यूपी पुलिस ने कनौजिया को लखनऊ के हजरतगंज पुलिस थाने में दर्ज FIR के आधार पर दिल्ली के पश्चिम विनोद नगर स्थित उनके घर से उन्हें गिरफ्तार किया।

    उत्तर प्रदेश पुलिस का कनौजिया पर आरोप
    यूपी पुलिस द्वारा "suo moto" FIR भारतीय दंड संहिता की धारा 500 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 के तहत दर्ज की गई है जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि कनौजिया ने अपने ट्विटर सोशल मीडिया से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी कर "मुख्यमंत्री की छवि खराब करने" का प्रयास किया है।

    याचिका में गिरफ्तारी को बताया गया मनमाना
    कनौजिया की पत्नी द्वारा दायर याचिका में गिरफ्तारी को अवैध और मनमाना बताया गया था। यह कहा गया था कि आपराधिक मानहानि से निपटने के लिए धारा 500 एक गैर-संज्ञेय अपराध है। आईटी अधिनियम की धारा 66, जो "कपटपूर्ण तरीके से या बेईमानी से एक कंप्यूटर सिस्टम के जरिए नुकसान पहुंचाने" से संबंधित है, इस मामले में लागू नहीं होती है।

    गिरफ्तारी, डीके बसु के मामले के खिलाफ
    याचिका में यह भी कहा गया था कि यह गिरफ्तारी डीके बसु के मामले में SC द्वारा निर्धारित अनिवार्य प्रक्रिया का पालन किए बिना पुलिस के लोगों द्वारा सादे कपड़ों में की गई थी। इन टिप्पणियों को लेकर कनौजिया के अलावा 2 और पत्रकारों को यूपी पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इनमें न्यूज चैनल नेशन लाइव की चैनल हेड इशिका सिंह और संपादक अनुज शुक्ला शामिल हैं। इन्होंने यूपी के सीएम के साथ संबंध होने का दावा करने वाली महिला के बारे में चर्चा की थी।

    गिरफ्तारी के खिलाफ सोशल मीडिया पर रोष
    इस गिरफ्तारी के खिलाफ सोशल मीडिया में भारी आक्रोश पनप रहा है। एडिटर्स गिल्ड ने एक बयान जारी कर इसकी निंदा की है। गिल्ड ने एक बयान में कहा, "पुलिस की कार्रवाई उच्चस्तरीय और मनमानी है और कानून के दुरुपयोग के समान है। गिल्ड इसे प्रेस की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को धमकी और प्रेस को डराने के प्रयास के रूप में देखता है।"

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