भीमा कोरेगांव हिंसा : बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी तेलतुंबडे को पुणे पुलिस के सामने पेश होने को कहा, गिरफ्तारी की सूरत में देनी होगी जमानत

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12 Feb 2019 10:16 AM GMT

  • भीमा कोरेगांव हिंसा : बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी   तेलतुंबडे को पुणे पुलिस के सामने पेश होने को कहा, गिरफ्तारी की सूरत में देनी होगी जमानत

    महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी एक्टिविस्ट आनंद तेलतुंबडे की याचिका पर सुनवाई कर रहे बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई को 22 फरवरी तक के लिए टाल दिया है।

    लेकिन हाई कोर्ट ने आनंद को यह निर्देश दिया है कि उन्हें जांच और पूछताछ के लिए 14 और 18 फरवरी को पुणे पुलिस के सामने हाजिर होना होगा। हालांकि हाई कोर्ट ने ये भी कहा है कि आनंद की गिरफ्तारी की स्थिति में उन्हें 1 लाख के बांड पर छोड़ दिया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि आनंद को गिरफ्तारी के बाद हिरासत में नहीं रखा जा सकता।

    05 फरवरी को आरोपी आनंद तेलतुंबडे को राहत देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर सरंक्षण को 12 फरवरी की मध्यरात्रि तक बढ़ा दिया था। सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र पुलिस की ओर से पेश सरकारी वकील ने कहा कि ये UAPA की धारा 43 डी के तहत आवेदन है। ट्रायल कोर्ट ने पुलिस द्वारा पेश सामग्री के आधार पर उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने सामग्री का विश्लेषण किया और याचिका को खारिज कर दिया।

    उन्होंने दलील दी थी कि अग्रिम जमानत की सुनवाई नहीं की जानी चाहिए। योग्यता के आधार पर शीर्ष अदालत द्वारा सामग्री का विश्लेषण किया गया है। पुलिस ने हलफनामा दायर करने के लिए समय की मांग की थी।

    गौरतलब है कि 02 फरवरी को भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में आरोपी आनंद तेलतुंबडे को पुणे की अदालत ने ये कहते हुए रिहा कर दिया कि उनकी गिरफ्तारी गैरकानूनी है। गौरतलब।है कि, तेलतुंबडे को सुबह करीब 3.30 बजे पुलिस ने मुंबई एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया था। अदालत ने कहा कि 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को 04 हफ्ते का सरंक्षण दिया था।

    इससे पहले पुणे जिला अदालत में एडिशनल सेशन जज किशोर वडाने ने आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा था कि जांच अधिकारी ने पर्याप्त सबूत पेश किए हैं कि आरोपी बताये गए अपराध में शामिल रहा है।

    14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी आनंद तेलतुंबडे के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने कहा था कि इस मामले में जांच, दिनोंदिन बड़ी होती जा रही है और इस चरण पर कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देगा।

    हालांकि पीठ ने आरोपी को गिरफ्तारी से 4 हफ्ते का सरंक्षण देते हुए कहा कि इस दौरान वो ट्रायल कोर्ट से जमानत का अनुरोध कर सकते हैं। इससे पहले, आरोपी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

    21 दिसंबर 2018 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने आनंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि इस साजिश की जड़ें बहुत गहरी हैं, जिसके नतीजे भी बेहद गंभीर हैं। यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति बी. पी. धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति एस. वी. कोतवाल की पीठ ने आरोपी आनंद तेलतुंबडे की याचिका को खारिज कर दिया था।

    याचिका में तेलतुंबडे ने दावा किया था कि उन्हें इस मामले में फंसाया जा रहा है। अपनी याचिका में उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को गलत बताया था, जबकि पुलिस ने दावा किया था कि उसके पास याचिकाकर्ता के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।

    पीठ ने कहा था कि तेलतुंबडे के खिलाफ अभियोग चलाने लायक सामग्री मौजूद है। पीठ ने यह भी कहा था कि अपराध की प्रकृति गंभीर है। इस मामले में साजिश गहरी है और इसके बेहद गंभीर प्रभाव हैं। साजिश की प्रकृति और गंभीरता देखते हुए यह जरूरी है कि जांच एजेंसी को आरोपी के खिलाफ सबूत खोजने के लिए पर्याप्त मौका दिया जाए।

    हाई कोर्ट ने कहा था कि शुरू में पुलिस की जांच इस साल (2018) 1 जनवरी को हुई हिंसा तक सीमित थी, जो पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में हुई यलगार परिषद के एक दिन बाद हुई थी। पीठ ने कहा था कि बहरहाल अब जांच का दायरा कोरेगांव-भीमा घटना तक सीमित नहीं रह गया है, लेकिन घटना की वजह बनी गतिविधियां और बाद की गतिविधियां भी जांच का विषय हैं। तेलतुंबडे के प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) से संबंध की जांच की जानी चाहिए।

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