न्यायमूर्ति एसआर सेन ने जताया क्षोभ, कहा - कोई भी अथॉरिटी अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह को नहीं रोक सकता है [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

24 Dec 2018 8:39 AM GMT

  • न्यायमूर्ति एसआर सेन ने जताया क्षोभ, कहा - कोई भी अथॉरिटी अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह को नहीं रोक सकता है [निर्णय पढ़ें]

    अपने विवादास्पद बयान के लिए सूरखियों में आए मेघालय हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुदीप रंजन सेन ने हाल ही में एक शिक्षक को इसलिए हटाए जाने पर ग़ुस्से का इज़हार किया क्योंकि उसने अपने जाति से बाहर किसी अन्य जाति की महिला से शादी की थी।

    "पहले तो यह कि मैं इस पूरे मामले पर अपना ग़ुस्सा और नाराज़गी ज़ाहिर करता हूँ। किसी भी अथॉरिटी को अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह करने को रोकने का अधिकार नहीं है। यह निर्णय करने का अधिकार, उस वर या वधू को है जो शादी कर रहे हैं और उनकी शादी किसी भी तरह उनकी सेवा या नौकरी से जुड़ी हुई नहीं है," जज ने अपनी टिप्पणी में कहा।

    दासुकलांग खरजाना ने हाईकोर्ट में अर्ज़ी दी थी और कहा था कि उसे सहायक शिक्षक के पद से इस्तीफ़ा देने के लिए बाध्य किया गया इस आधार पर कि मैंने एक ऐसी महिला से शादी की है जो मेरे धर्म से अलग रोमन कैथलिक है।

    कोर्ट ने अरमुगम सेरवाई बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का उल्लेख किया जिसमें कहा गया कि अंतरजातीय विवाह वास्तव में देश हित में है क्योंकि यह जाति व्यवस्था को नष्ट करेगा।

    "मैं क्षुब्ध हूँ कि 21वीं सदी में भी हम इस तरह के संकीर्ण विचारों से दो चार हो रहे हैं", जज ने कहा। जज ने इसके बाद स्कूल प्रबंधन को निर्देश दिया कि वह इस शिक्षक को तुरंत नौकरी पर बहाल करे। स्कूल को यह भी कहा गया कि वह इस शिक्षक को ₹50 हज़ार रुपए को मुआवज़ा चुकाए।

    पिछले सप्ताह इस जज ने जो एक फ़ैसला दिया था उसने काफ़ी ज़्यादा विवाद उत्पन्न किया। उन्होंने सेना में भर्ती के लिए जाने वाले एक व्यक्ति को रिहाईशी प्रमाणपत्र नहीं देने के मामले में न्यायमूर्ति सेन ने कहा था कि आज़ादी मिलने के बाद भारत को एक हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी कहा था कि जो भी व्यक्ति भारत के क़ानून और उसके संविधान का विरोध करता है उसे भारतीय नागरिक नहीं माना जा सकता।

    उनके इस बयान से देश में काफ़ी हो-हल्ला मचा था और राजनीतिक दलों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। माकपा ने तो यहाँ तक कह दिया था कि इस जज को पद से हटाने के लिए वे संसद में अन्य दलों से भी सम्पर्क करेंगे।

    कुछ दिनों के बाद न्यायमूर्ति सेन ने एक सफ़ाई दी, "मैं किसी राजनीतिक दल का समर्थक नहीं हूँ और न ही रिटायर होने के बाद वे किसी पद की इच्छा रखते हैं…मैं यह भी बता देना चाहता हूँ कि मैं कोई धार्मिक दृष्टि से कट्टर व्यक्ति नहीं हूँ, मैं हर धर्म का सम्मान करता हूँ क्योंकि ईश्वर एक ही है।"


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