आरटीई अधिनियम के तहत शिक्षा का अधिकार छात्रों को शिक्षित करने के लिए है न की शिक्षकों के संरक्षण के लिए [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

18 Oct 2018 3:40 PM GMT

  • आरटीई अधिनियम के तहत शिक्षा का अधिकार छात्रों को शिक्षित करने के लिए है न की शिक्षकों के संरक्षण के लिए [निर्णय पढ़ें]

    'अतिथि शिक्षकों' की याचिका पर विचार करते हुए, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षा का अधिकार का उद्देश्य शिक्षकों की रक्षा करना नहीं बल्कि छात्रों को शिक्षा देना है।

    मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला की पीठ अतिथि शिक्षकों की याचिका याचिकाओं पर विचार कर रहा था जो सरकार की स्थानांतरण नीति से पीड़ित हैं और जहां अतिथि शिक्षकों की जगह दूसरे अतिथि शिक्षकों के एक अन्य समूह की नियुक्ति की जा रही है।

    राज्य नीति के खिलाफ उनके मंतव्यों को खारिज करते हुए पीठ ने पाया कि इस बारे में कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है कि ऐसे अतिथि शिक्षक जो पर्याप्त मेधावी नहीं हैं उनको सरकारी स्कूलों के छात्रों को पढ़ाने के लिए लगाया जाना चाहिए।

    “…प्राथमिक उद्देश्य यह है कि बच्चों की पढ़ाई होनी चाहिए। और अगर उसको पढ़ना है तो उसे सर्वोत्तम शिक्षक प्राप्त करने का अधिकार है जो उसे पढ़ा सकें। इसलिए, 2,00,000 से अधिक इच्छुक उम्मीदवारों में से ऐसे उम्मीदवार जो की नियुक्ति नहीं पास सके वे अतिथि शिक्षक के रूप में बने रहने का दावा नहीं कर सकते। इसलिए, यदि पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने के बाद 25%अतिथि शिक्षक नियुक्ति के लिए योग्य नहीं पाए जा सके तो यह नहीं कहा जा सकता कि राज्य सरकार की कार्रवाई उचित नहीं है,” कोर्ट ने कहा।

    याचिकाकर्ताओं की दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, “...इस मुद्दे पर गौर करने का कोई तुक नहीं है कि अतिथि शिक्षकों को एक स्कूल से दूसरे स्कूल में स्थानांतरित किया जा रहा है। प्रत्येक अतिथि शिक्षक को 20 स्कूलों का चयन करने और प्रत्येक स्कूल में योग्यता क्रम में अपना स्थान देखने  का विकल्प दिया गया है। स्कूल की पसंद का विकल्प देने से याचिकाकर्ताओं के किसी भी अधिकार का उल्लंघन होता है ऐसा नहीं कहा जा सकता... स्कूलवार योग्य उम्मीदवारों की सूची तैयार की जाती है...योग्यता सूची हाथ से नहीं बनाई जाती... इसलिए, यदि याचिकाकर्ता उस स्कूल की योग्यता सूची में नहीं आ पाए जिसमें वे पढ़ा रहे हैं तो इस वजह से लगभग 70,000 अतिथि शिक्षकों के चयन की पूरी प्रक्रिया को ही खारिज नहीं किया जा सकता है”।

    हालांकि कोर्ट ने कहा की शिक्षकों की नियुक्ति में तदर्थवाद नहीं होना चाहिए और अतिथि शिक्षकों के एक समूह को इसके दूसरे समूह से बदलना न तो उचित है और न ही न्यायोचित। इसके बाद कोर्ट ने इस बारे में कुछ दिशानिर्देश जारी किए -




    • राज्य सरकार राज्य में शिक्षकों के रिक्त पदों को चरणबद्ध तरीके से भरने के लिए नीति तैयार करेगी, पॉलिसी तैयार करने के पांच साल बाद इसे पूरा कर लिया जाएगा;

    • इस नीति को राज्य सरकार की वेबसाइट पर इस अदालत के आदेश से चार महीने के भीतर अपलोड की जाएगी;

    • 7 जुलाई 2018 के परिपत्र के अनुसार अगर अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की गई तो ऐसा इसके लिए पहले से स्कूलवार बने मेरिट लिस्ट के आधार पर किया जाएगा


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