सात साल की बच्ची के साथ बलात्कार के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आरोपी की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

17 Oct 2018 2:51 PM GMT

  • सात साल की बच्ची के साथ बलात्कार के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आरोपी की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला [निर्णय पढ़ें]

    मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने सात साल की बच्ची के साथ बलात्कार करने वाले आरोपी की मौत की सजा को बदल दिया है।

    निचली अदालत ने 46 दिनों के भीतर मुकदमा पूरा कर लिया था और 7 जुलाई 2018 को अपने फैसले में अभियुक्त को मौत की सजा सुनाई थी। पिछले हफ्ते, मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला समेत उच्च न्यायालय की पहली खंडपीठ ने हालांकि उसको दोषी माना पर मृत्युदंड की उसकी सजा को कम कर दिया।

    सात साल की इस बच्ची के साथ बलात्कार इस साल 21 मई को मंदिर परिसर में हुआ था। वहां प्रत्यक्ष गवाह थे जिन्होंने अपनी गवाही में इस बात की पुष्टि की कि आरोपी ने इस लड़की के साथ बलात्कार किया। जब वे घटनास्थल पर आए, तो आरोपी भाग गया और लड़की रो रही थी। उसी दिन प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अगले ही दिन आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया था और आरोपपत्र 72 घंटे के भीतर निचली अदालत के समक्ष दायर किया गया था।

    निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की नई धारा 376 (एबी) लगाया जो कि 12 साल से कम उम्र के लड़कियों के बलात्कारियों को मौत की सजा का प्रावधान करता है। खंडपीठ ने पाया कि, संशोधन के बाद भी, 12 वर्ष से कम उम्र के महिला के मामले में मृत्युदंड देने के मानदंड वही होंगे जिसकी संशोधन से पहले विभिन्न निर्णयों में की गई है, यानी कि विरल से ही विरल मामलों में यह दिया जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने साबित कर दिया है कि घटना के समय बच्ची की उम्र 12 साल से भी कम थी और आरोपी ने उसके साथ बलात्कार किया है। हालांकि विरल से भी विरल मामले को लागू करने पर, न्यायमूर्ति शुक्ला ने कहा कि यह घटना उस श्रेणी की नहीं है।

    कोर्ट ने कहा, “...तथ्योंप्रकृतिउद्देश्य और अपराध के तरीके को समग्र रूप से ध्यान में रखते हुए और आगे यह भी कि अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड के रूप में ऐसा कुछ भी पेश नहीं किया गया है जिससे यह साबित हो सके कि अभियुक्त को कोई आपराधिक रिकॉर्ड रहा है और उसके पुनर्वास और सुधार की संभावना भी नहीं है। इस बात को साबित करने के लिए हमारे सामने कुछ भी साक्ष्य नहीं रखा गया है जो यह कह बता सके कि वह समाज के लिए उपयोगी नहीं हो सकता है। हमारी राय में,यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें वैकल्पिक दंड मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पर्याप्त नहीं होगा”।

    कोर्ट ने इसके बाद कहा कि धारा 376(एबी) के तहत उसकी मृत्युदंड की सजा को बकर आजीवन कारावास किया जा रहा है।


     
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