भीमा- कोरेगांव : सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा, सब कुछ बाज़ की नजर से देखेंगे

LiveLaw News Network

19 Sep 2018 3:15 PM GMT

  • भीमा- कोरेगांव : सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा, सब कुछ बाज़ की नजर से देखेंगे

    भीमा- कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नक्सल से जुडे होने के आरोप में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए कि वो बाज़ जैसी निगाहों से महाराष्ट्र पुलिस के दस्तावेज देखेगा, राज्य सरकार को कहा है कि वो अपना सर्वश्रेष्ठ दस्तावेज दिखाए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने ये भी कहा है कि सिर्फ अनुमान के आधार पर स्वतंत्रता की बलि नहीं दी जा सकती।

    राज्य सरकार की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने जब पुलिस की केस डायरी सीलबंद कवर में दी और कहा कि ये खुद व्याख्यात्मक है तो चीफ जस्टिस ने कहा कि अपना सर्वश्रेष्ठ दस्तावेज दिखाएं। सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी। पांचों एक्टीविस्ट फिलहाल हाउस अरेस्ट ही रहेंगे।

    करीब तीन घंटे तक चली सुनवाई के दौरान  तुषार मेहता ने कहा कि पांचों आरोपियों को पुख्ता सबूतों के आधार पर गिरफ्तार किया गया। 6 महीने की जांच के बाद ये कदम उठाया गया। फोन और लेपटॉप जैसे इलेक्ट्रानिक्स सबूत जब्त किए गए जिन्हें फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है। सब कुछ केस डायरी में दर्ज है और संबंधित कोर्ट को हर कदम की जानकारी दी गई।ये कैसे कहा जा सकता है कि हम उन्हें फंसा रहे हैं।

    इस पर जस्टिस  चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट को सब  बाज़ जैसी नजर से देखना है। याचिका सुनवाई योग्य नहीं है ये मुद्दा नहीं उठाया जाना चाहिए। हम चाहते है कि कोर्ट के कंधे मजबूत हों और कोई प्रतिबंद्ध ना हो। सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी की स्वतंत्रता का बलिदान नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था बिगाड़ने व सरकार को उखाड़ फेंकने और असहमति में अंतर होता है।

    वहीं  पुलिस के सामने शिकायत करने वाले की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि आपराधिक कृत्य और असहमति के बीच अंतर होता है।पुलिस जांच आगे बढ़ने की इजाजत दी जानी चाहिए।

     वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि आरोपियों के नाम दोनों FIR में नहीं हैं। ना ही वो यलगार परिषद की बैठक में मौजूद थे। उसमें सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जज शामिल थे।

    सिंघवी ने कहा कि वरवर  पर 25 मामले दर्ज हुए जिसमें सभी में वो बरी हो गए। गोंजाल्विस पर 18 मामले हुए जिनमें 17 में वो बरी हो गए। एक मामले में सजा हुई जिसमें अपील लंबित है।इसलिए इसकी जांच SIT से होनी चाहिए। पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने भी इसके पक्ष में दलीलें दी और कहा कि मामले की निष्पक्ष जांच जरूरी है।

    वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से आनंद ग्रोवर, राजीव धवन और प्रशांत भूषण ने भी दलीलें पेश कीं।

    दरअसल 17 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि वो पुणे पुलिस के दस्तावेज देखकर तय करेगा कि इस मामले की जांच SIT के आदेश दिए जाएं या नहीं।

    चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने ये भी कहा था जकि अगर दस्तावेजों में आरोप संबंधी कुछ नहीं पाया गया तो केस को रद्द करने के आदेश भी जारी किए जा सकते हैं।

     हाई वोल्टेज सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश ASG मनिंदर सिंह ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दखल का विरोध किया। उन्होंने कहा कि नक्सलवाद गंभीर समस्या है और ये देशभर में फैला है। निचली अदालत को ही ऐसे मामलों को सुनना चाहिए। तीसरे पक्ष द्वारा दाखिल याचिका पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गलत उदाहरण पेश करेगी।

     ये याचिका रोमिला थापर, देवकी जैन, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे और माया दारूवाला की ओर से दाखिल की गई है। दरअसल  हैदराबाद में वामपंथी कार्यकर्ता और कवि वरवर राव, मुंबई में कार्यकर्ता वरनन गोन्जाल्विस और अरुण फरेरा, छत्तीसगढ़ में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और दिल्ली में रहनेवाले गौतम नवलखा के घरों की तलाशी ली गई और उन्हें गिरफ्तार किया गया। 29 अगस्त को इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए उन्हें  उनके घरों में ही हाउस अरेस्ट रखने के आदेश जारी किए थे।

    गौरतलब है कि 6 सितंबर को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस पर सवाल उठाए थे और नाराजगी जताई थी।वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने कहा था कि कि आरोपियों के खिलाफ सबूत हैं और उन्हें हाउस अरेस्ट नहीं रखा जाना चाहिए। वो जांच को प्रभावित कर सकते हैं।

    इससे पहले महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि ये याचिका सुनवाई योग्य नही है और याचिकाकर्ताओं का आरोपियों से कोई लेना-देना नहीं है।

     हलफनामे में कहा गया है कि आरोपियों को मतभेद सोच या विचारों से असहमति की वजह से गिरफ्तार नहीं किया गया है बल्कि आपराधिक मामले की जांच और भरोसेमंद सबूतों के आधार पर कार्रवाई की गई है।

    महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि गिरफ्तार किए गए पांचों मानवाधिकार कार्यकर्ता समाज मे अशांति फैलाने की योजना बना रहे थे।  इस बात के सबूत पुलिस को मिले हैं कि पांचों प्रतिबंधित माओवादी संगठन के सदस्य हैं। इनके पास से आपत्तिजनक सामग्री भी बरामद की गई है।

    पुलिस इन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है।साथ ही इनमें से कुछ का आपराधिक इतिहास भी रहा है।

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