इलाहबाद हाईकोर्ट ने जिला न्यायपालिका में रिक्त पदों और बुनियादी सुविधाओं के अभाव पर राज्य की खिंचाई की; सचिवों को अगली सुनवाई में कोर्ट में मौजूद रहने को कहा

LiveLaw News Network

31 Aug 2018 2:06 PM GMT

  • इलाहबाद हाईकोर्ट ने जिला न्यायपालिका में रिक्त पदों और बुनियादी सुविधाओं के अभाव पर राज्य की खिंचाई की; सचिवों को अगली सुनवाई में कोर्ट में मौजूद रहने को कहा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने सोमवार को प्रधान सचिव, विधि, प्रधान सचिव वित्त या पीडब्ल्यूडी को कोर्ट में उपस्थिर रहने का निर्देश दिया ताकि वे राज्य में जिला स्तर की न्यायपालिका को पेश आ रही मुश्किलों को सुलझाने के बारे में समय सीमा बता सकें।

     मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीबी भोसले, गोविन्द माथुर और यशवंत वर्मा की पीठ ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से उपरोक्त मुद्दे पर समय सीमा निर्धारित किये जाने पर उनका पक्ष जानना चाहा।

     उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सचिव को भी निर्देश दिया गया है कि वह निचली अदालत में पदों को भरने में देरी क्यों हो रही है इस बारे में विस्तार से कारण बताएं।

     कोर्ट ने जिला न्यायपालिका में रिक्त पदों पर स्वतः संज्ञान लिया है।

     कोर्ट ने कहा, “समय की मांग है कि संसाधनों और न्यायिक व्यवस्था में बुनियादी सुविधाओं को दुरुस्त तत्काल दुरुस्त किया जाए ताकि लाखों लोगों को अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रयोग और न्याय तक उनकी पहुँच को सफल बनाया जा सके।”

     राज्य की न्यायिक व्यवस्था के सामने जो समस्याएँ हैं उसके बारे में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर गौर करते हुए पीठ ने निम्नलिखित कमियों की ओर ध्यान खींचा -




    1. जिला न्यायपालिका में 1217 अधिकारियों के पद विभिन्न कैडर में रिक्त हैं।

    2. 751 न्यायालय ऐसे हैं जिनमें अभी काम शुरू नहीं हुआ है क्योंकि इन अदालतों में न्यूनतम बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं।

    3. वर्ष 2012 में जो अदालत गठित किये गए उन्होंने अभी तक काम करना शुरू
      नहीं
      किया है क्योंकि उनको तो जमीन दी गई है और ही अन्य बुनियादी सुविधाएं।

    4. फंड नहीं होने की वजह से निर्माणाधीन अदालत कक्षों का निर्माण कार्य रोक दिया गया है।

    5. जिला न्यायालय में ऐसी जगह का नितांत अभाव है जहां अधिकारी रह सकें।

    6. फंड नहीं होने की वजह से 422 निवासों का निर्माण कार्य रुक गया है।

    7. हाईकोर्ट की बड़ी परियोजनाएं, जो सिर्फ झालवा परियोजना और 30 कोर्ट हॉल वाले भवन तक ही सीमित नहीं हैं,भी फंड नहीं
      होने
      के कारण अधर में लटकी हैं।


    कोर्ट ने कहा कि जिला न्यायालय के विभिन्न कैडर में उसने 610 पदों पर भर्ती के बारे में लिखा था पर आयोग ने इन नियुक्तियों की प्रक्रिया भी शुरू नहीं की है और इस बारे में अभी तक विज्ञापन भी जारी नहीं किया गया है। आयोग की ओर से कोर्ट में पेश एमएन सिंह ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने अभी तक आयोग को इन रिक्तियों को भरने के बारे में कोई सूचना नहीं दी है।

     राज्य इस बात पर भी राजी नहीं हुआ कि आयोग को नियुक्ति की इस प्रक्रिया से दूर रखकर कोर्ट खुद ही इस नियुक्ति को अंजाम दे। इसके बाद कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किया -

     “(a) उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव निजी हलफनामा दायर कर उल्लिखित मामलों को सुलझाने के लिए समय सीमा निर्धारित करेंगे।

     (b) आयोग के सचिव भी अपना निजी हलफनामा दायर करेंगे और भर्ती में हुई देरी का कारण बताएंगे। सचिव कोर्ट को यह भी बताएंगे कि भर्ती की सारी प्रक्रिया को वे कब तक पूरी कर लेंगें।

     (c) प्रधान सचिव, विधि, पीडब्ल्यूडी के सचिव के साथ अगली सुनवाई के दिन अदालत में हाजिर रहेंगे ताकि समस्या को सुलझाने के लिए समयबद्ध कार्यक्रम बनाया जा सके। हम आयोग के सचिव को भी यह निर्देश देते हैं कि वे भी सुनवाई की अगली तारिख को अन्य लोगों के साथ अदालत में उपस्थित रहेंगे।

     मामले की अगली सुनवाई हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ अब 12 सितंबर को करेगी।

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