गरीबों का इलाज करना डॉक्टरों का संवैधानिक कर्तव्य; छूट की जमीन पर बने अस्पतालों को गरीबों का मुफ्त इलाज करने के दिल्ली सरकार के सर्कुलर को सुप्रीम कोर्ट ने जायज ठहराया [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

11 July 2018 5:10 AM GMT

  • गरीबों का इलाज करना डॉक्टरों का संवैधानिक कर्तव्य; छूट की जमीन पर बने अस्पतालों को गरीबों का मुफ्त इलाज करने के दिल्ली सरकार के सर्कुलर को सुप्रीम कोर्ट ने जायज ठहराया [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में कहा कि गरीबों का इलाज करना डॉक्टरों का संवैधानिक कर्तव्य है और वे उन लोगों का इलाज करने से मना नहीं कर सकते जिनको किसी विशेष दवा या किसी विशेष डॉक्टर से इलाज कराना बहुत जरूरी है मगर उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।

    न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति यूयू ललित ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसमें उसने दिल्ली सरकार के सर्कुलर को ख़ारिज कर दिया था।

    पीठ ने छूट वाली जमीन पर बने दिल्ली के सभी अस्पतालों को निर्देश दिया है कि वे सरकार द्वारा जारी सर्कुलर का पूरी तरह पालन करें और 10 प्रतिशत इनडोर और 25 प्रतिशत आउटडोर गरीब रोगियों का मुफ्त इलाज करें।

    124 पृष्ठ के कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें : 




    • मेडिकल पेशे से जुड़े लोग गरीब लोगों का इलाज करने से मना नहीं कर सकते। अगर वे गरीबों का इलाज इसलिए नहीं करते हैं क्योंकि वे इलाज का खर्च नहीं उठा सकते तो यह मेडिकल पेशे के मौलिक सिद्धांत के खिलाफ होगा और यह पेशा शुद्ध रूप से वाणिज्यिक हो जाएगा जबकि इस पेशे की पवित्रता को देखते हुए इसे ऐसा नहीं होना चाहिए। इस पेशे में मदद करने की पवित्र भावना का लोप हो जाएगा और इसके अलावा यह संवैधानिक कर्तव्यों को नहीं मानने जैसा होगा।

    • आज के अस्पताल कमोबेश वाणिज्यिक शोषण के केंद्र हो गए हैं और ऐसे भी वाकये हुए हैं जब बिल नहीं चुकाने वालों को उनके परिजनों के शव नहीं दिए गए जो कि गैरकानूनी और आपराधिक दोनों है। भविष्य में अगर इस तरह की घटना होती है तो,उस अस्पताल के प्रबंधन और इससे संबंधित सभी डॉक्टरों के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराई जाएगी। एक डॉक्टर को बनाने पर राज्य बड़ी मात्रा में जनता का पैसा निवेश और खर्च करता है और इसलिए गरीबों का इलाज करना उनका कर्त्तव्य है और जो इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकते उनका इलाज करने से मना नहीं किया जा सकता।

    • बीमारी की गलत रिपोर्टिंग, ह्रदय और अन्य अंगों सहित शरीर की अनावश्यक चीड़फाड़ की जाती है; दिल्ली,गुड़गाँव व अन्य सथानों के अस्पतालों के लिए जरूरी है कि वे इस बारे में आत्ममंथन करें।  उन्हें इस  बात पर सोचना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं। क्या यह आपराधिक कार्य नहीं है? सिर्फ इसलिए कि कोई कार्रवाई नहीं की गई, वे अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो जाते। समय आ गया है जब इनको उत्तरदायी बनाया जाए और सड़ी हुई व्यवस्था को ठीक किया जाए। चिकित्सा पेशे के बारे में यह कभी नहीं सोचा गया था कि यह शोषणकारी होगा और इस पेशे में शामिल लोग मरीज की कीमत पर पैसे बनाएंगे जबकि उम्मीद यह की जाती थी कि डॉक्टर उनकी ओर मदद में अपना हाथ बढ़ाएंगे। हर प्रिस्क्रिप्शन Rx से शुरू होता है न की बिल की राशि से। बड़े अंतर्राष्ट्रीय अस्पताल होने का मतलब यह नहीं है कि वे नैतिकता के स्तर के बाहर हो गए हैं। उन्हें इसको हर कीमत पर बनाए रखना होगा और गरीबों को वित्तीय मदद उपलब्ध करानी होगी।

    • आजकल अस्पतालों में पांच सितारा सुविधाएं होती हैं। वाणिज्यिक लाभ के लिए पूरी परिकल्पना ही बदल दी गई है। अब ये अस्पताल पहुँच के बाहर हो गए हैं। इनकी फीस इतनी ज्यादा है कि उनमें इलाज नहीं कराई जा सकती। कई बार तो वे जो इलाज करते हैं उसके लिए ली जाने वाली राशि अनावश्यक रूप से ज्यादा होती है। अस्पताल अपनी इस काली करतूत के बदले आर्थिक रूप से गरीब मरीजों की मदद करके कुछ इज्जत बटोर सकते हैं।


    कोर्ट ने दिल्ली सरकार के सर्कुलर को सही ठहराया और कहा कि जब सरकार की जमीन अस्पताल खोलने के लिए ली गई है तो सरकार को यह अधिकार है कि वह उनपर कुछ दायित्व लादे। कोर्ट ने कहा कि सरकार को इन आदेशों मनवाने के लिए किसी भी तरह का क़ानून बनाने की जरूरत नहीं है।

    यह देखते हुए कि अस्पताल प्रबंधन के एक हिस्से से इसका विरोध होता है और इसलिए सर्कुलर का उल्लंघन हो सकता है,कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह दिल्ली के अस्पतालों द्वारा सर्कुलर का पालन करने के बारे में एक साल के भीतर बीच बीच में रिपोर्ट दाखिल करे।


     
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