मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने दो से अधिक बच्चों के पिता और डीजे बनने की ख्वाहिश रखने वाले व्यक्ति को योग्य ठहराने को सही बताया [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

12 April 2018 8:43 AM GMT

  • मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने दो से अधिक बच्चों के पिता और डीजे बनने की ख्वाहिश रखने वाले व्यक्ति को योग्य ठहराने को सही बताया [निर्णय पढ़ें]

    मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक जिला जज के उस फैसले को सही ठहराया है जिसमें उन्होंने जिला जज के लिए मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार पास करने वाले एक महिला को इसलिए योग्य ठहरा दिया है क्योंकि उसके दो से अधिक बच्चे हैं और यह मध्य प्रदेश सिविल सेवा परीक्षा (सेवा की सामान्य परिस्थिति) नियम, 1961 के खिलाफ है।

    हाई कोर्ट द्वारा जारी विज्ञापन के अनुबंध 3 में यह स्पष्ट कहा गया है कि अगर कोई उम्मीदवार एमपी उच्च न्यायिक सेवा नियम 1994 और एमपी सिविल सेवा नियम, 1961 का पालन नहीं करता तो उसे योग्य घोषित कर दिया जाएगा। उक्त नियम को चुनौती देते हुए यह कहा गया कि ये नियम हाई कोर्ट से विचार विमर्श के बाद नहीं बनाए गए और ये नियम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कहा, “...उच्च न्यायिक सेवा पर लागू होने वाले 1961 के नियम मूल न्यायिक सेवा से संबंधित नहीं हैं पर इनका संबंध प्रक्रियागत बातों से है और इसका न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ता।”

    कोर्ट ने कहा कि यह दलील कि ये नियम हाई कोर्ट से परामर्श के बिना बनाए गए वह टिकने वाला नहीं है क्योंकि हाई कोर्ट ने विज्ञापन में स्पष्ट कहा है इन शर्तों को पूरा नहीं करने वाले को योग्य घोषित कर दिया जाएगा।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ इसलिए कि कोई मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार में बैठा है, उसको नियुक्ति के योग्य नहीं बना देता। नियुक्ति के पहले एक उम्मीदवार को 1961 के नियम के तहत अगर योग्य ठहरा दिया गया है तो याचिकाकर्ता को कोई अधिकार नहीं मिलता।

    हाई कोर्ट ने अपने हाल के एक फैसले में दो न्यायिक अधिकारियों को दो से अधिक बच्चे होने के कारण अयोग्य ठहराने के निर्णय को पलट दिया क्योंकि आवेदन पत्र में उनसे इस बारे में नहीं पूछा गया था और कोर्ट ने इस फैसले पर भरोसा किया।

    पीठ ने हालांकि इस दलील को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उक्त फैसले में नियम 3 और नियम 6(6) की वैधता की पड़ताल नहीं की गई और इसलिए इस मामले का फैसला वर्तमान मामले में लागू नहीं हो सकता।

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