दिल्ली हाईकोर्ट ने 38 अस्थायी रैन बसेरों को बंद करने पर अंतरिम रोक लगाई [आर्डर और याचिका पढ़े]

LiveLaw News Network

17 March 2018 7:16 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने 38 अस्थायी रैन बसेरों को बंद करने पर अंतरिम रोक लगाई [आर्डर और याचिका पढ़े]

    शहर मे सैकड़ो बेघर लोगों की सहायता के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली में 38  रैन बसेरों को बंद करने पर अंतरिम रोक लगा दी।

    कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता सुनील कुमार अलेदिया  द्वारा एक याचिका पर तत्काल इन-चेंबर की सुनवाई में दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) को ये निर्देश दिया कि 38 अस्थायी टेंट में चलने वाले रैन बसेरों पर सुनवाई की अगली तारीख यानी  2 अप्रैल तक यथास्थिति बनाए रखी जाए।  इस संबंध में एक स्टेटस  रिपोर्ट की मांगी गई है।

    अलेदिया को 12 मार्च के डिप्टी डायरेक्टर, डीयूएसआईबी, नाइट शेल्टर, द्वितीय द्वारा पारित कार्यालय आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर तत्काल सुनवाई प्रदान की गई थी, जिसके तहत 38रैन बसेरों को 31 मार्च तक  बंद करने का आदेश दिया गया है।

     इस दौरान DUSIB  ने स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए वक्त मांगा।  अदालत ने इस मामले को 2 अप्रैल को सुनवाई के सूचीबद्ध करते हुए दस दिन का समय दिया।

    यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि DUSIB ने 15 मार्च से अस्थायी आवासों (तंबू में) को कम उपस्थिति और गर्मी के मौसम की शुरुआत का हवाला देकर बंद करने का निर्णय लिया है।

     हालांकि, अलेदिया के वकील कमलेश कुमार मिश्रा ने सूचित किया कि यह मुद्दा बेघर व्यक्तियों के जीवन और आजीविका से जुड़ा है और डीयूएसआईबी ने इन अस्थायी आश्रयों को बंद करने का फैसला किया है, जबकि जमीनी वास्तविकता पूरी तरह विपरीत है।

    उन्होंने डीओएसआईबी की वेबसाइट पर उपलब्ध विभिन्न गैर सरकारी संगठनों की रिपोर्ट पर भी भरोसा किया, जो स्पष्ट रूप से 38 आश्रयों में, विशेष रूप से कश्मीरी गेट, यमुना पुश्ता, चांदनी चौक, फतेहपुरी, फाउंटेन चौक आदि जैसे बेघर लोगों की बहुलता वाले क्षेत्रों में बड़ी उपस्थिति दिखाते हैं।

     वकील मिश्रा और संजय बनिवाल द्वारा दायर याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि डीयूएसआईबी ने रैन  बसेरों की सुरक्षा लेखा परीक्षा करने के लिए संबंधित मामले में उच्च न्यायालय द्वारा आदेश दिए जाने के बाद अस्थायी आवासों को बंद करने का निर्णय लिया है।मिश्रा ने सूचित किया कि DUSIB तीन प्रकार के आश्रय - स्थायी, पोटा केबिन और टेंट (अस्थायी) चलाता है।

    उन्होंने कहा कि 6 मार्च को दांडी पार्क के रैन बसेरे  में घातक आग के बाद उच्च न्यायालय ने सरकारी एजेंसियों को दो सप्ताह में बिजली की सुविधाएं और अग्नि सुरक्षा लेखापरीक्षा का संयुक्त निरीक्षण करने का निर्देश दिया था और उचित कार्रवाई कि रैन बसेरों  में विद्युत सुविधाएं और अग्नि सुरक्षा उपायों के प्रावधान के बारे में एक मानक दस्तावेज़ तैयार करने को कहा था।   4 मार्च को कश्मीर गेट आईएसबीटी के निकट उत्तर दिल्ली में दांडी पार्क रैन बसेरे  में आग लगने से  एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।

    अलेदिया ने ये भी प्रार्थना की है कि दिल्ली में बेघर व्यक्तियों की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिए उपयुक्त एजेंसी डीयूएसआईबी सहित राज्य की एजेंसियों द्वारा एक सर्वेक्षण किया जाना चाहिए जिससे  उनके जीवन, सुरक्षा और रोजी रोटी व्यवस्था के लिए उपयुक्त योजनाएं तैयार की जा सकें।

    उन्होंने यह भी आग्रह किया कि अस्थायी आश्रयों की बजाय, सरकार को  बेघर व्यक्तियों  विशेषकर निजामुद्दीन, कश्मीरी गेट, बंगला  साहिब, कनॉट प्लेस, आजादपुर, चांदनी चौक, रामलीला मैदान आदि जैसे स्थानों पर  स्थायी रूप से बेघर आश्रय प्रदान करना चाहिए।

    मिश्रा ने अहमदाबाद नगर निगम बनाम नवाब खान गुलाब खान और अन्य  पर भरोसा किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में कहा था कि यह राज्य का कर्तव्य है कि संवैधानिक उद्देश्यों  के लिए वह समाज के गरीब और दुर्बल कमजोर वर्गों को आश्रय का अधिकार प्रदान करे। उन्होंने कहा कि निवास और निपटान का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (ई) के तहत एक मौलिक अधिकार है और यह अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अविभाज्य सार्थक अधिकार का एक पहलू है, जैसा कि पीजी गुप्ता बनाम गुजरात राज्य व अन्य में कहा गया है।






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