कोर्ट वकीलों के मौखिक आश्वासन पर पक्षकारों को पंचाट के पास नहीं भेज सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

12 March 2018 9:13 AM GMT

  • कोर्ट वकीलों के मौखिक आश्वासन पर पक्षकारों को पंचाट के पास नहीं भेज सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने केएसईबी बनाम कुरियन कलाथिल  मामले में कहा कि मध्यस्थता समझौता की अनुपस्थिति में कोर्ट पक्षकारों को पंचाट में जाने को तभी कह सकता है जब पक्षकार इसके लिए लिखित में अपनी सहमति दें या इस बारे में संयुक्त अपील या आवेदन दें। उनके वकीलों की मौखिक सहमति पर ऐसा नहीं किया जा सकता।

    न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और आर बनुमथी की पीठ ने केएसईबी की एक अपील पर गौर करते हुए यह बात कही। इस अपील में हाई कोर्ट में उठे इस सवाल को चुनौती दी गई कि क्या पक्षकारों को उनकी लिखित सहमति के बिना वकीलों की मौखिक सहमति पर पंचाट के पास भेजने का हाई कोर्ट का निर्णय सही था या नहीं।

    इस संदर्भ में, ठेकेदार कुरियन ई कलाथिल द्वारा हाई कोर्ट में दाखिल रिट याचिका को पक्षकारों के वकीलों के कहने पर इस मामले के फैसले की जिम्मेदारी न्यायमूर्ति केए नायर को दे दी गई। पंचाट से इस मामले का फैसला कराने को लेकर पक्षकारों में कोई समझौता नहीं हुआ था। हाई कोर्ट ने बोर्ड और ठेकेदार के बीच इस विवाद को सुलझाने के क्रम में केएसईबी को 9% के साधारण ब्याज के साथ 12,92,29,378 रुपए के भुगतान का आदेश दिया। पर केएसईबी ने इस आदेश को चुनौती दी।

    पीठ ने कहा कि वकीलों की मौखिक सहमति पर मामले को पंचाट में भेजना सीपीसी की धारा 89 की शर्तों को पूरा नहीं करता। पीठ ने कहा, “पक्षकारों को पंचाट में जाने को कहने का मतलब है उनको दीवानी अदालत से दूर ले जाना और मध्यस्थता के किसी भी तरह के समझौते के बिना इसकी कठिन प्रक्रिया में झोंकना है; खासकर तब जब अपील करने वाले बोर्ड जैसी वैधानिक संस्था इसमें शामिल है।


     
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