सीबीआई जज लोया की मौत की जांच की याचिकाओं पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में, बॉम्बे हाईकोर्ट से भी केस ट्रांसफर [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

22 Jan 2018 2:38 PM GMT

  • सीबीआई जज लोया की मौत की जांच की याचिकाओं पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में, बॉम्बे हाईकोर्ट से भी केस ट्रांसफर [आर्डर पढ़े]

    सीबीआई जज बीएच लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की याचिकाओं पर अब सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट में लंबित दोनों याचिकाओं को ट्रांसफर कर लिया है और किसी भी हाईकोर्ट को इस मुद्दे पर सुनवाई करने से रोक दिया है।

    चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने सभी पक्षकारों को सीलबंद लिफाफे में केस से जुडे दस्तावेज कोर्ट में दाखिल करने को कहा है। मामले की सुनवाई दो फरवरी को होगी।

    सोमवार को सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इस संबंध में जज लोया की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और ईसीजी रिपोर्ट दी जाए।  इसके बाद महाराष्ट्र राज्य की ओर से उपस्थित वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने  बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और सरकार को सौंपी गई जांच की नवंबर 2017 की रिपोर्ट पर बेंच का ध्यान खींचते हुए कहा, "यह रिपोर्ट बताती है कि पुलिस महानिरीक्षक द्वारा की गई जांच जिसमें उन न्यायिक अधिकारियों से बयान शामिल हैं जो न्यायाधीश लोया के साथ थे और उन्होंने उनकी मौत के कारण घटनाओं के पूरे अनुक्रम के साथ बताया है।”

    इसके बाद साल्वे  ने उस बयान के उन हिस्सों को पढ़ा जिसमें बताया गया था कि कैसे जज लोया सुबह छाती की दर्द की शिकायत करते हैं, उन्हें एक कार में अस्पताल ले जाया गया, एक स्ट्रेचर पर रखा गया और आईसीयू में ले गया।साल्वे मे कहा,  "ये सभी न्यायिक अधिकारियों के बयान हैं जिन्होंने इन बयानों को अपने हस्ताक्षर के तहत दिया है। सबूत के तौर और क्या जरूरी है?”

    उसी वक्त बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन, जिसने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है, की ओर से पेश वरिष्ठ  वकील दुष्यंत दवे ने हस्तक्षेप करते हुए कहा , "उत्तरदाताओं द्वारा बताया हया सिद्धांत विरोधाभासी है। नागपुर में सरकार सर्किट हाउस की प्रविष्टियां जहां लोया ठहरे थे, वह कथित तथ्य की पुष्टि नहीं करता है। मैं पूछना चाहूंगा कि बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने जज लोया के परिवार को  गेस्ट हाउस में क्यों नहीं बुलाया जब लोया बीमार हो गए थे? हमने आरटीआई प्रश्नों के तहत कुछ दस्तावेज हासिल किए हैं जो कि हम इस अदालत में दाखिल करना चाहते हैं  जो इन विरोधाभासों को सामने लाएगा। " इसके अलावा दवे ने इस मामले में साल्वे की उपस्थिति का विरोध व्यक्त किया,  "साल्वे को इस मामले में सहायता करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। वह पहले अमित शाह के लिए उपस्थित हुए थे,  अटार्नी जनरल को केस के लिए बुलाया जाना चाहिए।”।

     इस बिंदु पर वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने इसका विरोध किया और दलील दी, "यह स्पष्ट है कि लोया ने सुबह 4 बजे सीने में दर्द की शिकायत की। उन्हें 4 न्यायिक अधिकारियों और उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार द्वारा 'ए' अस्पताल ले जाया गया। वहां से उन्हें 'बी' अस्पताल ले जाया जा रहा था, लेकिन रास्ते में दिल का दौरा पडने  की वजह से मौत हो गई। यही कारण है कि पोस्टमार्टम भी किया गया था। “ उन्होंने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट में इसी तरह की याचिकाओं पर सुनवाई होनी है।

    वहीं दवे ने कहा, "लोया के पिता और बहन ने उनकी मृत्यु की जांच की मांग की है और उनके 1 9 वर्षीय बेटे ने जांच के लिए अनुरोध किया था। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि हाईकोर्ट  के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने अपने कक्ष में बेटे से मुलाकात की और इसके बाद कहा गया कि बेटे कोई जांच नहीं चाहता है "।

    इस दौरान  वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने भी  सिविल सोसाइटी की ओर से हस्तक्षेप करने की अनुमति मांगी और कहा,   "दस्तावेजों का रिकॉर्ड पूरा नहीं हुआ है। हम कुछ और दस्तावेज तैयार करना चाहते हैं।”

    तब जस्टिस  चंद्रचूड ने दोनों पक्षों को एक सूचीबद्ध तरीके से अपने कब्जे में सभी दस्तावेजों को दाखिल करने के निर्देश दिया और कहा, "हम सब कुछ देखना चाहेंगे। हम कारवां, इंडियन एक्सप्रेस, वायर या स्क्रॉल में प्रदर्शित होने वाले लेखों पर पूरी तरह से विश्लेषण नहीं कर सकते। हमारे पास दस्तावेजों की एक सूची होनी चाहिए क्योंकि हम किसी तदर्थ के आधार पर रिकॉर्ड की जांच नहीं कर सकते हैं "।

    दवे के साल्वे के बारे में टिप्पणी करने पर जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि इस मामले में वकील के विवेक पर ही छोड देना चाहिए कि वो केस में शामिल होना चाहता है या नहीं। इस दौरान साल्वे ने कहा कि केस से संबंधित दस्तावेज वकीलों के अलावा किसी को ना दिए जाएं तो वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने इसका पुरजोर विरोध किया और ये गैग ऑर्डर के समान है। दवे ने कहा, “ पूरा सिस्टम एक व्यक्ति को बचाने की कोशिश कर रहा है। हम आज सहमत हैं कि लोया एक प्राकृतिक मौत थी। लेकिन केवल इसलिए कि मामला न्यायपालिका के अधीन है, राष्ट्र इस बहस क्यों नहीं सकता ? शशि थरूर और चिदंबरम के मामलों में ऐसा आदेश जारी नहीं किया गया था। लेकिन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस पल नाराजगी जताई और कहा, “ "हमने उस प्रभाव के लिए कोई भी आदेश पारित नहीं किया है। स्पष्ट रूप से अपना बयान वापस लें और कृपया ऐसी टिप्पणी न करें।”

    दरअसल सुप्रीम कोर्ट  सोहराबुद्दीन केस के ट्रायल को देख रहे सीबीआई जज बृजगोपाल हरिकिशन लोया की 2014 में हुई मौत की जांच को लेकर दाखिल दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।

    दरअसल 48 साल के जज लोया, जो सीबीआई केस की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें बीजेपी चीफ अमित शाह आरोपी थे, लेकिन बाद में आरोपमुक्त हो गए, की एक दिसंबर 2014 को नागपुर में दिल का दौरा पडने से मौत हो गई थी। उस वक्त वो शादी समारोह में हिस्सा लेने गए थे।

    याचिकाओं में कारवां मैगजीन की उन दो रिपोर्ट का हवाला दिया गया है जिसमें लोया के परिवार के सदस्यों द्वारा लोया की मौत के दौरान हैलात पर संदेह जताया गया है।

    सुप्रीम कोर्ट के अलावा बॉम्बे हाईकोर्ट में भी इसी तरह की दो याचिकाएं दाखिल की गई। इनमें से एक बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन और दूसरी सूर्यकांत लोजे द्वारा दाखिल की गई है।


     
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