एनएलयू दिल्ली के प्रोफेसर ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा, तिहाड़ जेल की कई महिला कैदियों पर गलती से चल रहे हैं बलात्कार और ताकझांक के मामले [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

14 Dec 2017 1:08 PM GMT

  • एनएलयू दिल्ली के प्रोफेसर ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा, तिहाड़ जेल की कई महिला कैदियों पर गलती से चल रहे हैं बलात्कार और ताकझांक के मामले [आर्डर पढ़े]

    तिहाड़ जेल में कई महिलाओं पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376(1) के तहत बलात्कार; कईयों पर अगवा और बलात्कार; सामूहिक बलात्कार; अगवा और सामूहिक बलात्कार एवं ताकझाँक जैसे आरोपों के लिए आईपीसी की धारा 354(c) के तहत मुकदमा चल रहा है।

    दिल्ली हाई कोर्ट को यह जानकारी नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के प्रो. मृणाल सतीश और डॉ. अपर्णा चंद्रा ने दी। ये लोग सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ के पत्र पर दायर स्वतः संज्ञान याचिका में कोर्ट की मदद कर रहे हैं।

    न्यायमूर्ति जोसफ को तिहाड़ जेल के 612 महिला कैदियों की ओर से एक पत्र मिला था जिसमें इन लोगों ने तिहाड़ के जेल नंबर छह में, जहाँ पर इन्हें रखा गया है, के हालात का जिक्र किया था। इन कैदियों ने कहा था कि उनके जेल में जरूरत से ज्यादा कैदी हैं, उनके मामलों की सुनवाई में देरी होती है और जमानत के लिए मुचलका नहीं भर पाने पर उनको जमानत पर नहीं छोड़ा जाता है। इन कैदियों ने जज को यह भी बताया था कि छह वर्ष या इससे ज्यादा उम्र के बच्चों को उनकी माँ से अलग रखा जाता है।

    इस पत्र के मिलने के बाद उन्होंने मुख्य न्यायाधीश से इस बारे में “उचित कदम उठाने का आग्रह किया था ताकि न्याय मिलने की पुकार को क़ानून के अनुरूप उसी व्यग्रता से सुनी जा सके जिस व्यग्रता से कोई माँ अपने बच्चों की पुकार सुनती है।”

    हाल में इस मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ को जेल नंबर छह की महिला कैदियों के बारे में कुछ “संवेदनशील मुद्दों” की जानकारी दी गई।

    प्रो. सतीश ने इसके बाद कहा कि इन कैदियों पर बलात्कार जैसे आरोप के तहत मुकदमा चलाना “क़ानून के बिल्कुल विरुद्ध” है। उन्होंने जो रिपोर्ट पेश की है उसकी सूचनाओं को कैदियों को जारी चार्जशीट की कॉपी और उनके खिलाफ जारी वारंट से मिलाया गया है।

    कोर्ट ने कहा कि जो बातें उसके सामने रखी गई हैं उसको देखते हुए दोनों प्रोफेसरों को सुनवाई अदालत के रिकॉर्ड का अध्ययन करने की इजाजत दी जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा, “इन कैदियों के बारे में और जिन मामलों में उन पर मुकदमा चलाया गया है उसके बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराने के लिए और समय की माँगी गई है ताकि इस अदालत को इस मामले में सार्थक फैसला सुनाने में मदद मिले। इसलिए ये सारी सूचनाएं इस मामले की अगली सुनवाई के पहले अदालत के समक्ष पेश कर दी जाए।”

    इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि अब 15 जनवरी निर्धारित की गई है।


     
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