’’शशि थरूर का इक्वालिटी बिल एक रास्ता है,जो अंबेडकर के भेदभाव रहित भारत की परिकल्पना का अहसास करवाता है’’ - तरूणभ खेतान,आॅक्सफोर्ड ऐकडेमिक

LiveLaw News Network

31 May 2017 11:39 AM GMT

  • ’’शशि थरूर का इक्वालिटी बिल एक रास्ता है,जो अंबेडकर के भेदभाव रहित भारत की परिकल्पना का अहसास करवाता है’’ - तरूणभ खेतान,आॅक्सफोर्ड ऐकडेमिक

    तरूणभ खेतान आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कानून पढ़ाने वाले एक एसोसिएट प्रोफेसर है। वह  ’ए थ्योरी आॅफ डिस्क्रिमनेशन लाॅ (ओयूपी 2015) के लेखक भी है,यह किताब ऐकडेमिक सर्कल में अच्छी तरह जानी-पहचानी जाती है। वह आगामी ’इंडियन लाॅ रिव्यू’ के जनरल एडिटर भी है। उन्होंने अपनी अंडरग्रेजुएशन की पढ़ाई नेशनल लाॅ स्कूल आॅफ इंडिया यूनिवर्सिटी (बैंगलुरू) से वर्ष 1999-2004 के बीच में पूरी की थी। उसके बाद वह रहाडेस स्काॅलर के तौर पर आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी आ गए और अपनी एक्सटेर कालेज से अपनी पोस्टग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी की। वाधाम में ज्वाइन करने से पहले वह च्रिस्ट चर्च में लाॅ के  पेन्निंगटन स्टूडेंट(फेलो) थे।


    यहां उन्होंने एंटी-डिस्क्रिमनेशन एंड इक्वालिटी बिल 2016 से जुड़े कुछ सवालों के जवाब लाइव लाॅ को दिए। इस बिल को लोकसभा में शशि थरूर ने रखा था,जो कांग्रेस पार्टी के सदस्य है। थरूर ने इस बिल को बनाने में खेतान द्वारा किए गए योगदान को भी स्वीकृत किया।


    लाइव लाॅ--जब सांसद शशि थरूर ने एंटी-डिस्क्रिमनेशन एंड इक्वालिटी बिल 2016 को लोकसभा में प्रस्तावित किया तो इस पर वाद-विवाद शुरू हुआ,जिसमें आपको भी निशाना बनाया गया। थरूर ने इस बिल को बनाने में आपकी भूमिका को स्वीकृत किया। भारत के संदर्भ में किस कारण आपने इस बिल के बारे में सोचा और वह कौन से तथ्य थे,जिनको इस बिल का ड्राफट तैयार करते समय ध्यान में रखा गया।


    तरूणभ खेतान--पिछले डेढ़ दशक से एंटी-डिस्क्रिमनेशन लाॅ पर पाॅलिसी डिबेट चल रहा है। वर्ष 2002 में भोपाल ने घोषणा जारी की थी,जिसमें दलितों का वेलकम करने के लिए समावेश व विविधता और भेदभाव के खिलाफ ’विंडस आॅफ चेंज दाॅ वल्र्ड ओवर’ न्यू कोर्स का चार्ट बनाने की मांग की थी।


    सच्चर कमिटी द्वारा वर्ष 2006 में अनुशंसा किए जाने के बाद एंटी-डिस्क्रिमनेशन लाॅ की जरूरत व इसे आकार देने पर बातचीत शुरू हो गई थी। यूपीए सरकार ने संक्षिप्त तौर पर एक इक्वल आपर्टूनिटी कमीशन का गठन करने पर विचार किया था,परंतु इस आइडिया को दबा दिया गया क्योंकि उस समय इक्वल आपर्टूनिटी कमीशन बिल तैयार नहीं हुआ था और अविकसित था। पिछले समय में एन.डी.ए सरकार ने सभी राज्यों से अनुशंसा की थी कि रियल इस्टेट एक्ट के तहत कानून बनाते समय हाउसिंग में भेदभाव पर रोक लगाए। इससे जाहिर है कि इस आइडिया पर दोनों पार्टियों में कही न कही सहमति है। अब समय आ गया है कि पाॅलिसी डिबेट किया जाए ताकि इस बिल को एक रूप दिया जा सके।


    मैंने इस बिल को बनाने में पिछले तीन साल लगाए है। इस बारे में भारत के एक्टिविस्ट,वकील,राजनीतिज्ञ व ऐकडेमिक से बातचीत की है। रोहित वेमुला की दुखदाई मौत ने इस तरह के मामले की गंभीरता को समझा दिया है। मेरा मानना है कि अगर इस बिल को भारत में लागू किया गया तो कम से कम यह इस तरह की घटनाओं को जरूर रोकेगा,जिसमें कोई इंसान खुद की जिदंगी छीनने को मजबूर हो जाता हैै। आमतौर पर यह बिल एक प्रयास है ताकि लोगों को डाक्टर अंबेडकर की उस परिकल्पना के बारे में अहसास कराया जा सके,जिसमें उन्होंने भेदभाव रहित भारत के बारे में सपना लिया था।




    लाइव लाॅ--आपने इसी तरह के बिल का सुझाव दिल्ली सरकार को भी दिया था। एक हद तक इसे स्वीकार किया जाना था,परंतु बाद में क्या हुआ?




    तरूणभ खेतान--हां,शायद उनकी अभिरूचि बदल गई क्योंकि यह बिल उनकी एजेंडा के टाॅप पर नहीं था और अन्य मामलों पर ध्यान दे दिया गया। हमेशा उनको देखकर ऐसा लगता है कि वह भेदभाव के मुद्दे पर काम करना चाहते हैं और मुझे विश्वास है कि वह इसके लिए काम करेंगे। मुझे आशा है कि वह जल्द ही इस मामले पर फिर से विचार करेंगे।


    लाइव लाॅ--शशि थरूर बिल,एक प्राइवेट मैंबर बिल है,इसलिए मीडिया में जगह पा सकता है,परंतु हो सकता है कि सरकार पुराने प्राइवेट मैंबर बिल का हवाला देकर इसे स्वीकार न करें। क्या आप इस बात से सहमत है कि इस तरह की कोई संभावना हो सकती है?


    तरूणभ खेतान--निसंदेह इस तरह की संभावना बन सकती है। परंतु मुझे आशा है कि सरकार इस मामले की गंभीरता को समझेगी और इसे स्वीकार करेगी कि भारत में कई मिलियिन लोग इस तरह के भेदभाव को झेल रहे है। इस बिल को पार्लियामेंट स्टैंडिंग कमेटी के पास समीक्षा के लिए भेजा जाना चाहिए ताकि आम जनता की सलाह-मशविरे पर भी ध्यान दिया जा सके।


    लाइव लाॅ--इस बिल में अन्य बातों के साथ एक सेंट्रल इक्वालिटी कमीशन बनाने की बात भी कही गई है। क्या आप ऐसा नहीं मानते है कि इससे  इस समय मौजूद ब्यूरोक्रेट ढ़ाचे में बढ़ोतरी होगी और जिससे सिविल सर्वेंट को लगाने के मौके मिलेगे,परंतु जमीनी धरातल पर मिलने वाले परिणामों पर कोई ध्यान नहीं देगा। नेशनल कमीशन फाॅर बैकवर्ड क्लास और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए काम करने वाले,इतना ही नहीं ह्ूमन राईट कमीशन जैसी संस्था भी कुछ ज्यादा प्रेरणादायक काम नहीं कर पा रही है।


    तरूणभ खेतान--मैं सहमत हूं कि ट्रिब्यूनल व कमीशनों के फैलाव चिंता का विषय है। पूर्व में एक ड्राफट  के तहत लागू करने का अधिकार सामान्य कोर्ट को देने की बात हुई थी। परंतु एक्टिविस्ट व वकीलों से हुई बातचीत में यह सामने आया कि भारत में सामान्य सिविल कोर्ट के पास क्षमता नहीं है कि वह इस तरह के कड़े कानून से डील कर सके। लोवर ज्यूडिशयिरी को रिफाॅर्म करना बहुत जरूरी है। परंतु जब तक ऐसा नहीं हो जाता है,तब तक असल न्याय देना अपने आप में एक असल समस्या है। इसलिए इस बिल के तहत इक्वालिटी कमीशन का प्रस्ताव रखते समय मैंने प्रकृति,डिजाइन,स्वतंत्रता,कंपो जिशन व लागत पर पूरा ध्यान दिया है। सदस्यता के लिए जो योग्यता जरूरी बनाई गई है,उससे ब्यूरोक्रेट को इसमें नियुक्त करने में काफी मुश्किल आ जाएंगी। यह आयोग सरकार से स्वतंत्र होगा,असल होगा परंतु जिम्मेदार व शक्तिशाली होगा। इस समय बने हुए कमीशनों की सफलता व असफलता को ध्यान में रखते हुए इस कमीशन के डिजाइन को तैयार किया गया है। इतना ही नहीं इस समय स्थित विभिन्न कमीशनों के  चेयरपर्सन इक्वालिटी कमीशन के एक्स-आफिको मैंबर होंगे ताकि वह इस नई संस्था के साथ अपना ज्ञान व अनुभव सांझा कर सकें।


    लाइव लाॅ--एक आम धारणा है कि अल्पसंख्यकों को ही भेदभाव व असामनता सहन करनी पड़ती है। परंतु यह बिल बहुसंख्यक समुदायों के लिए भी है। क्या आपके इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?


    तरूणभ खेतान--एंटी-डिस्क्रिमनेशन लाॅ अल्पसंख्यक व बहसंख्यक दोनों को प्रोटेक्ट करेगा हालांकि सकारात्मक एक्शन के लिए अल्पसंख्यकों को अनुमति होगी,जो ग्लोबल नियम है। इसके लिए कई अच्छे कारण है। एंटी-डिस्क्रिमनेशन लाॅ की सफलता के लिए यह जरूरी है कि यह बहुसंख्यकों को भी सुरक्षित करे। संतुलित लाॅ किसी में असंतोष उत्पन्न नहीं करते है। दूसरा, यह भी सच है कि अल्पसंख्यक अक्सर भेदभाव के शिकार बनते है और कई बार ऐसा बहुसंख्यक समूह के लोगों द्वारा ऐसा किया जाता है।


    पितृसत्ता को सिर्फ महिलाओं के डोमिनेशन व रूद्धिबढ़ता को समाप्त करने से खत्म नहीं किया जा सकता है। इसके लिए एक पुरूष द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका को भी समाप्त करना होगा। किसी भी जोड़े को जबरन अलग करना गलत है,चाहे वह अल्पसंख्यक का हो या बहुसंख्यक समुदाय का। जहां तक कानून के दुरूपयोग की बात है,तो संतुलित कानून अच्छे विकल्प है।


    लाइव लाॅ--इस बिल की धारा 15 के अनुसार सभी पब्लिक अॅथारिटी,लैंडलोर्ड या हाउसिंग सोसायटी को मैनेज करने वाले,जिसमें 50 से ज्यादा रिहायशी मकान हो या संस्थान हो,अपनी डाइवर्सिटी इंडेक्स रिपोर्ट स्टेट इक्वालिटी कमीशन को सौंपनी होगी। आप क्या सोचते है कि क्या यह संभव है या जो इस तरह के नियम का पालन नहीं करेंगे,उनको कुछ सजा दी जाएगी।


    तरूणभ खेतान--यह आशा की जा रही है कि कमीशन इस तरह की रिपोर्ट के लिए बहुत आसान शैली उपलब्ध कराएगा। बिल लागू होने के तीन साल बाद इस तरह की पहली रिपोर्ट देनी होगी। वहीं छोटे व्यवसायी व हाउसिंग सोसायटी को इस तरह की रिपोर्ट से छूट दी जाएगी। वहीं इस ड्यूटी को लागू करवाने वाले प्रावधान बहुत हल्के हैं। आप यह कह सकते है कि बिल का यह प्रावधान आकांशापूर्ण शैली बनाएगा,जो समय के साथ एक शेप ले लेगी। पंरतु शुरूआत में भेदभाव के मामलों से निपटने के लिए इस तरह के हल्के प्रावधान उचित है।

    लाइव लाॅ--बिल के अनुसार अगर कोई बडे़ स्तर पर भेदभाव करता पाया जाएगा तो उसे हर्जाना देना होगा,इसके अलावा उसे अपने भेदभाव पूर्ण रवैया व नीति में संशोधन करना होगा। अगर किसी आरोपी को मुआवजा व रवैया बदलने देने का आदेश दिया गया है और वह इस आदेश को मानने से इंकार कर देता है,तो क्या होगा?


    तरूणभ खेतान--इस बिल का मुख्य फीचर ये है कि भेदभाव को आमतौर पर सिविल के तौर पर देखा जाता है,न कि अपराध के तौर पर। इसलिए बिल का फोकस मुआवजा दिलाने व पीड़ित को राहत पहुंचाने पर है,न कि किसी भेदभाव करने वाले को सजा देने पर। आदेश का पालन न करने पर उसकी तरीके को लागू किया जो सिविल कोर्ट के आदेश लागू न करने पर लागू किया जाता है। इस बिल की सिविल प्रकृति से अलग सिर्फ यह तथ्य है कि कुछ विशेष प्रावधान बनाए गए है,जिसमें भेदभाव झेलने वाला अपने प्रोटेक्शन आर्डर के लिए दंडाधिकारी के पास जा सकता है।


    लाइव लाॅ--धारा 8 के तहत उस भेदभाव से छूट दी गई है,जो धर्म के संबंध में है और धार्मिक पूजा स्थल पर किया गया हो,विशेषतौर पर उन गतिविधियों के लिए धर्म के लिए जरूरी है। क्या सबरीमाला मामले में महिलाओं के साथ किया गया भेदभाव इस छूट के तहत आता है?




    तरूणभ खेतान--नहीं,छूट सिर्फ धर्म से संबंधित भेदभाव के लिए है। ऐसे में एक हिंदू मंदिर को यह छूट होगी कि वह किसी क्रिश्चियन को अपना पुजारी बनाने से इंकार कर दे। परंतु यह छूट लिंग या धर्म के अलावा किए जाने वाले अन्य भेदभाव के लिए नहीं है।

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